पुराने समय की बात है जब ठाकुरों में आन बान शान और उसका दंभ हमेशा सिर चढ़ा रहता था। गांव में एक ठाकुर और एक बनिए का घर आमने सामने था। प्रातः काल दोनो ही अपनी दातुन विधी, घर के बाहरी चौकी पर सम्पन्न किया करते थे। प्रायः ठाकुर दातुन के पश्चात भीगी मूँछों पर ताव दिया करते, और सामने बैठा बनिया भी मुंह धोने के बाद सहज ही मूँछों पर दोनों हाथ फेरा करता था। ठाकुर को अपने सामने ही एक भीरू बनिए का यूँ मूँछों पर ताव देना हमेशा नागवार गुजरता था। मन तो करता था उसी समय बनिए को सबक सिखा दे लेकिन घर परिवार की उपस्थित में ठीक न मानकर मन मसोस कर रह जाते। प्रतिदिन की यह क्रिया उनके रोष की ज्वाला को और भी तीव्र किए जाती थी।
संयोगवश एक दिन गांव के बाहर मार्ग में दोनो का आमना सामना हो ही गया। ठाकुर ने बनिए को देखते ही गर्जना की- “क्यों बे बनिए, शूरवीरता बढ़ गई है जो हमेशा मेरे सामने ही अपनी मूँछो पर ताव देता है?” बनिया भांप गया, आज तो गए काम से। किन्तु फिर भी अपने आप को सम्हालते हुए बोला, “वीरता और बहादुरी किसी की बपौती थोडे ही है”
ठाकुर फिर गरजा- “ अच्छा!? तो निकाल अपनी तलवार, आज बहादुरी और बल का फैसला हो ही जाय”
तत्काल बनिया नम्र होते हुए बोला- "देखिए ठाकुर साहब, अगर लड़ाई होगी तो हम में से किसी एक का वीरगति को प्राप्त होना निश्चित है। मरने के बाद निश्चित ही हमारा परिवार अनाथ हो जाएगा। उन्हें पिछे देखने वाला कौन? अतः क्यों न हम पहले पिछे की झंझट का सफाया कर दें, फिर निश्चिंत होकर बलाबल की परीक्षा करें?"
ठाकुर साहब मान गए। घर जाकर, सफाया करके पुनः निर्णय स्थल पर आ गए। थोडी ही देर में बनिया जी भी आ गए। ठाकुर ने कहा- “ले अब आ जा मैदान में”
बनिए नें कहा- “ठहरीए ठाकुर साहब! क्या है कि मैं जब सफाया करने घर गया तो सेठानी नें कहा कि- यह सब करने की जरूरत नहीं आप अपनी मूँछ नीचे कर देना और कभी ताव न देने का वादा कर देना, अनावश्यक लडाई का क्या फायदा?”
"इसलिए लीजिए मैं अपनी मूँछ नीचे करता हूँ और आपके सामने कभी उन पर ताव नहीं दूँगा।"
"चल फुट्ट बे डरपोक कहीं का!!" कहते हुए दूसरे ही क्षण ठाकुर साहब, दोनो हाथों से अपना सर पकडते हुए वहीं पस्त होकर बैठ गए।
बहादुरी का अतिशय दंभ व्यक्ति को मूढ़ बना देता है।
संयोगवश एक दिन गांव के बाहर मार्ग में दोनो का आमना सामना हो ही गया। ठाकुर ने बनिए को देखते ही गर्जना की- “क्यों बे बनिए, शूरवीरता बढ़ गई है जो हमेशा मेरे सामने ही अपनी मूँछो पर ताव देता है?” बनिया भांप गया, आज तो गए काम से। किन्तु फिर भी अपने आप को सम्हालते हुए बोला, “वीरता और बहादुरी किसी की बपौती थोडे ही है”
ठाकुर फिर गरजा- “ अच्छा!? तो निकाल अपनी तलवार, आज बहादुरी और बल का फैसला हो ही जाय”
तत्काल बनिया नम्र होते हुए बोला- "देखिए ठाकुर साहब, अगर लड़ाई होगी तो हम में से किसी एक का वीरगति को प्राप्त होना निश्चित है। मरने के बाद निश्चित ही हमारा परिवार अनाथ हो जाएगा। उन्हें पिछे देखने वाला कौन? अतः क्यों न हम पहले पिछे की झंझट का सफाया कर दें, फिर निश्चिंत होकर बलाबल की परीक्षा करें?"
ठाकुर साहब मान गए। घर जाकर, सफाया करके पुनः निर्णय स्थल पर आ गए। थोडी ही देर में बनिया जी भी आ गए। ठाकुर ने कहा- “ले अब आ जा मैदान में”
बनिए नें कहा- “ठहरीए ठाकुर साहब! क्या है कि मैं जब सफाया करने घर गया तो सेठानी नें कहा कि- यह सब करने की जरूरत नहीं आप अपनी मूँछ नीचे कर देना और कभी ताव न देने का वादा कर देना, अनावश्यक लडाई का क्या फायदा?”
"इसलिए लीजिए मैं अपनी मूँछ नीचे करता हूँ और आपके सामने कभी उन पर ताव नहीं दूँगा।"
"चल फुट्ट बे डरपोक कहीं का!!" कहते हुए दूसरे ही क्षण ठाकुर साहब, दोनो हाथों से अपना सर पकडते हुए वहीं पस्त होकर बैठ गए।
बहादुरी का अतिशय दंभ व्यक्ति को मूढ़ बना देता है।
(यह एक दंत कथा है)
हम सभी तो उस ठाकुर के नक़्शे कदम पर चले जा रहे हैं :(
जवाब देंहटाएंKaash ham is jhoothe dambh ke jaal me n fansein.
जवाब देंहटाएंबहादुरी का अतिशय दंभ व्यक्ति को मूढ़ बना देता है।
जवाब देंहटाएंबिल्कुल सही एवं सार्थक प्रस्तुति ... आभार
prashansneey kahani
जवाब देंहटाएं:):):)
जवाब देंहटाएंpranam.
- हर सफल सेठ के पीछे एक सेठानी होती है :)
जवाब देंहटाएंएक सम्पूर्ण मनुष्य का निर्माण करने के लिए समयानुसार इस तरह की कहानियाँ रोचक तरीके से अच्छे गुणों को बालपन से ही बालमन में स्थापित करने का प्रयास रही होंगी|
इस दंतकथा से एक और निष्कर्ष निकाल सकते हैं -
बिना विचारे जो करे, सो पाछे पछताय,
काम बिगाड़े आपना, जग में होत हँसाय|
हमारे मुँह की बात हमसे पहले ही पहुँच गई! :)
हटाएं@- हर सफल सेठ के पीछे एक सेठानी होती है :)
हटाएंजोश में होश भूल ठाकुर ने ठकुराईन को यह अवसर भी न दिया :)
@बिना विचारे जो करे, सो पाछे पछताय,
काम बिगाड़े आपना, जग में होत हँसाय|
निष्कर्ष तो यही है जी…… बस "बिना विचारे" में दम्भ की बेहोशी है।
सही कहा
हटाएं@ हर सफल सेठ के पीछे एक सेठानी होती है :)
हटाएंइसे हमारी भी टिप्पणी माना जाये !!
ऊफ ! कुछ समझदारी स्त्रिया ना होती तो संसार की क्या दशा होती !!!!
वाकई ....
जवाब देंहटाएंबहादुरी का अतिशय दंभ व्यक्ति को मूढ़ बना देता है।
जवाब देंहटाएं@ क्या उसी तरह जैसे सौन्दर्य का अतिशय दंभ उसे बाज़ार में बिठा देता है. प्रदर्शन को उतावला बनाता है.
प्रतुल जी,
हटाएंजब दंभ निर्णायक होता है तो नतीजा मूढ़ता ही होता है। मूढ़ता में सारे अनर्थ ही होते है।
:) - sahi hai
जवाब देंहटाएंमूँछों पर तो बड़े बड़े युद्ध हो गये।
जवाब देंहटाएंबहादुरी का अतिशय दंभ व्यक्ति को मूढ़ बना देता है।,,,,आपके इस कथन से सहमत,,,
जवाब देंहटाएंRECENT POST ...: जिला अनूपपुर अपना,,,
baniyon me aisee hoshiyari bahut dekhne me aati hai .nice presentation. संघ भाजपा -मुस्लिम हितैषी :विचित्र किन्तु सत्य
जवाब देंहटाएंbaniyon me aisee hoshiyari bahut dekhne me milti hai.nice presentation. संघ भाजपा -मुस्लिम हितैषी :विचित्र किन्तु सत्य
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी सीख !
जवाब देंहटाएंसच में !
जवाब देंहटाएंदंभ व्यक्ति को मूढ़ बना देता है और वही मूंछें जो पुरुषार्थ का प्रतीक रही हों, आँखों की पट्टी बन जाती हैं!!
जवाब देंहटाएंवाह!! सलिल जी,
हटाएं'आँखो' पर 'मूँछ' का आवरण!!
:)
हटाएं...झूठी शान कइयों की जान ले लेती है !
जवाब देंहटाएंसार्थक प्रस्तुति ....
जवाब देंहटाएंइस प्रविष्ठि के चर्चा मंच में सूत्रांकन के लिए आभार!!
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया ..
जवाब देंहटाएं