प्राचीन मिथिला देश में नरहन (सरसा) राज्य का भी बड़ा महत्व था। वहां का राजा बड़ा उदार और विद्वान् था। अपनी प्रजा के प्रति सदैव वात्सल्य भाव रखता था। प्रजा को वह सन्तान की तरह चाहता था, प्रजा भी उसे पिता की तरह मानती थी। किन्तु उसकी राजधानी में एक गरीब आदमी था, जो हर घड़ी राजा की आलोचना किया करता। राजा को इस बात की जानकरी थी किन्तु वे इस आलोचना के प्रति उपेक्षा भाव ही रखते।
एक दिन राजा ने इस बारे में गम्भीरता से सोचा। फिर अपने सेवक को 'गेहूं के आटे के बडे मटके', 'वस्त्र धोने का क्षार', 'गुड़ की ढेलियां' बैलगाड़ी पर लाद कर उसके यहां भेजा।
राजा से उपहार में इन वस्तुओं को पाकर वह आदमी गर्व से फूल उठा। हो न हो, राजा ने ये वस्तुएँ उससे डर कर भेजी हैं। सामान को घर में रखकर वह अभिमान के साथ राजगुरु के पास पहुँचा। सारी बात बताकर बोला, "गुरुदेव! आप मुझसे हमेशा चुप रहने को कहा करते थे। यह देखिये, राजा मुझसे डरता है।"
राजगुरु बोले, "बलिहारी है तुम्हारी समझ की! अरे! राजा को अपने अपयश का डर नहीं है उसे मात्र यह चिंता है कि तुम्हारी आलोचनाओं पर विश्वास करके कोई अभिलाषी याचना से ही वंचित न रह जाय। राजा ने इन उपहारों द्वारा तुम्हे सार्थक सीख देने का प्रयास किया है। वह यह कि हर समय मात्र निंदा में ही रत न रहो, संतुष्ट रहो, शुभ-चिंतन करो और मधुर संभाषण भी कर लिया करो। आटे के यह मटके तुम्हारे पेट पुष्टि के साथ तुम्हारे संतुष्ट भाव के लिए हैं, क्षार तुम्हारे वस्त्रो के मैल दूर करने के साथ ही मन का मैल दूर करने के लिए है और गुड़ की ये ढेलियां तुम्हारी कड़ुवी जबान को मीठी बनाने के लिए हैं।"
एक दिन राजा ने इस बारे में गम्भीरता से सोचा। फिर अपने सेवक को 'गेहूं के आटे के बडे मटके', 'वस्त्र धोने का क्षार', 'गुड़ की ढेलियां' बैलगाड़ी पर लाद कर उसके यहां भेजा।
राजा से उपहार में इन वस्तुओं को पाकर वह आदमी गर्व से फूल उठा। हो न हो, राजा ने ये वस्तुएँ उससे डर कर भेजी हैं। सामान को घर में रखकर वह अभिमान के साथ राजगुरु के पास पहुँचा। सारी बात बताकर बोला, "गुरुदेव! आप मुझसे हमेशा चुप रहने को कहा करते थे। यह देखिये, राजा मुझसे डरता है।"
राजगुरु बोले, "बलिहारी है तुम्हारी समझ की! अरे! राजा को अपने अपयश का डर नहीं है उसे मात्र यह चिंता है कि तुम्हारी आलोचनाओं पर विश्वास करके कोई अभिलाषी याचना से ही वंचित न रह जाय। राजा ने इन उपहारों द्वारा तुम्हे सार्थक सीख देने का प्रयास किया है। वह यह कि हर समय मात्र निंदा में ही रत न रहो, संतुष्ट रहो, शुभ-चिंतन करो और मधुर संभाषण भी कर लिया करो। आटे के यह मटके तुम्हारे पेट पुष्टि के साथ तुम्हारे संतुष्ट भाव के लिए हैं, क्षार तुम्हारे वस्त्रो के मैल दूर करने के साथ ही मन का मैल दूर करने के लिए है और गुड़ की ये ढेलियां तुम्हारी कड़ुवी जबान को मीठी बनाने के लिए हैं।"
शिक्षाप्रद कथा !
जवाब देंहटाएंबहुत सराहनीय प्रस्तुति.
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर बात कही है इन पंक्तियों में. दिल को छू गयी. आभार !
सही सीख दी है राजा ने।
जवाब देंहटाएंगहन भाव लिए शिक्षाप्रद प्रस्तुति ... आभार
जवाब देंहटाएंवर्तमान में यह राज्य कहाँ है सुज्ञ जी? वहीं बसा जाए :)
जवाब देंहटाएंकहीं मेरी खींचाई तो नहीं कर रहे संजय जी :)
हटाएंकि कहाँ तो आज वो समय है और कहाँ वो राजा?
किन्तु सदाचार कभी काल बाधित नहीं रहा, इससे प्रेरणा सदैव प्रासंगिक रहेगी। :)
Sanjay ji, pata chale to hamein bhi bataiye :)
हटाएंAbhaar sugya ji, badhiya bodh dene ka prayas kiya , kintu baat ulti samajh aayi... Burai karo, inam Pao :)
jaisee buddhi, vaisa bodh ...
शिल्पा जी,
हटाएंलो!! आप भी कर लो खींचाई
@badhiya bodh dene ka prayas kiya
अब प्रयास ही अपना अधिकार क्षेत्र है :)
@jaisee buddhi, vaisa bodh ...
जब बुद्धि पहले से ही स्टैबल है तो बोध की आवश्यकता भी क्या… :)
दुहाई है मॉनीटर भैया, ऐसी बात भी नहीं सोचनी चाहिए| हमसे ही सावधान रहिएगा? कोई जरूरत नहीं है|
हटाएंवो क्या है कि आटा, क्षार और गुड की सोचकर थोड़ा लालच आ गया था:)
सदाचरण के प्रयासों का हमेशा अभिनन्दन है सुज्ञ जी| बल्कि अपना मानना ये है कि जितना अन्धेरा घना होगा, ऐसे प्रयास उतने ही प्रकाशित\प्रकाशमय होंगे|
समझ तो गया था यह आटा, क्षार और गुड की खोज है किन्तु आपके बहाने क्यों न सभी को मॉनीटरिंग कर दें :) ईजी इच्छुक वह तर्क न दे :)
हटाएंप्रयास निढ़ाल न हो अतः समर्थन तो चाहिए ही चाहिए, आपका आभार
सुंदर शिक्षाप्रद कहानी .....
जवाब देंहटाएंसबको ग्रहण करने जैसी है !
सीख देते समय ये भी ध्यान रखना चाहिए की जिसे सीख दी जा रही है उसे वो बात समझ में भी आ रही है की नहीं , यदि उसे समझ ही नहीं आये तो ऐसी सीख देने से क्या फायदा |
जवाब देंहटाएंअंशुमाला जी,
हटाएंसीख देने से पहले ही कैसे निर्णय किया जाय कि उसे समझ आएगी या नहीं, फिर भी प्रयास तो किए ही जा सकते है अन्यथा यह अफसोस कि 'कुछ भी न करने से कुछ तो किया गया होता'
वस्तुतः ग्रहणीय होगी या न होगी, कई कारण हो सकते है काल, वातावरण, परिस्थिति, मनस्थिति, भाषा, प्रस्तु्ति बहुत से कारक होते है। यह चांस हमेशा लिया जाना चाहिए क्योंकि जाने कब संयोग से सभी बातें अनुकूल फिट बैठ जाय :)
प्राचीन मिथिला देश में नरहन (सरसा) राज्य का भी बड़ा महत्व था। वहां का राजा बड़ा उदार और विद्वान् था। अपनी प्रजा के प्रति सदैव "वत्सल्य"(वात्सल्य ) भाव रखता था
जवाब देंहटाएंसुज्ञ साहब ब्लॉग जगत में भी कई ऐसे ब्लोगिये और ब्लोग्नियाँ मौजूद हैं जो संभाषण करना भूल गए हैं .बहुत बढ़िया बोध को उत्प्रेरिक करती कथा .
मंगलवार, 28 अगस्त 2012
Hip ,Sacroiliac Leg Problems
Hip ,Sacroiliac Leg Problems
http://veerubhai1947.blogspot.com/
प्रेरक और शिक्षाप्रद..
जवाब देंहटाएं.शानदार प्रस्तुति.बधाई.तुम मुझको क्या दे पाओगे?
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