10 अगस्त 2011

अभिप्रायः बोध : नयज्ञान -अनेकान्तवाद


नेकांतवाद शृंखला के इस लेख से जुड़ने के लिए, जिन बंधुओ ने पिछ्ले लेख न देखे हो, कृपया एक बार दृष्टि अवश्य डालें। ताकि आप विषय से जुड़ सकें।

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जिस में हमने सात में से मात्र दो नय नैगमनयऔर संग्रहनयके बारे में उदाहरण सहित जाना, अब……

3-व्यवहारनय संग्रहनय से ग्रहण हुए पदार्थों अथवा तथ्यों का योग्य रिति से पृथकत्व करने वाला अभिप्रायः व्यवहार नय है। संग्रह नय के अर्थ का विशेष रूप से बोध करने के लिए उसका पृथक् करण आवश्यक हो जाता है। हर वस्तु के भेद-प्रभेद करना इस नय का कार्य है यह नय सामान्य की उपेक्षा करके विशेष को ग्रहण करता है।जैसे-ज्वर एक सामान्य रोग है किन्तु मस्तिष्क ज्वर से किसी ज्वर विशेष का बोध होता है।सामान्य एक समूह है जबकि विशेष उसका एक विशिष्ट भाग. सामान्य से विशिष्ट की खोज में निरंतर सूक्ष्मता की आवश्यकता होती है।

4-ॠजुनय मात्र वर्तमान कालवर्ती प्रयाय को मान्य करने वाले अभिप्रायः को ॠजुनय कहते है। क्योंकि भूतकाल विनिष्ट और भविष्यकाल अनुत्पन्न होने के कारण, केवल वर्तमान कालवर्ती पर्याय को ही ग्रहण करता है। जैसे- वर्तमान में यदि आत्मा सुख अनुभव कर रही हो तो ही यह नय उस आत्मा को सुखी कहेगा। यानि यहाँ क्षण स्थायी पर्याय से सुखी दुखी मान लिया जाता है।

5-शब्दनय – यह नय शब्दप्रधान नय है। पर्यायवाची शब्दों में भी काल,कारक, लिंग, संख्या और उपसर्ग भेद से अर्थ भेद मानना शब्दनय है। जैसे- काल भेद से ‘गंगा थी,गंगा है,गंगा होगी’ इन शब्दों को तीन अर्थ-भेद से स्वीकार करेगा। यदि काल, लिंग, और वचनादि भेद नहीं हो तो यह नय भिन्न अर्थ होने पर भी शब्द के भेद नहीं करता। अर्थात् पर्यायवाची शब्दों का एक ही अर्थ मानता है।

6-समभिरूढनय – यह शब्दनय से भी सूक्ष्म है। शब्दनय जहाँ अनेक पर्यायवाची शब्द का एक ही अर्थ मानता है, उसमें भेद नहीं करता, वहाँ समभिरूढनय पर्यायवाची शब्द के भेद से अर्थ-भेद मानता है। इसके अभिप्रायः से कोई भी दो शब्द, एक अर्थ के वाचक नहीं हो सकते। जैसे- इन्द्र और पुरन्दर पर्यायवाची है फिर भी इनके अर्थ में अन्तर है। ‘इन्द्र’ शब्द से ऐश्वर्यशाली का बोध होता है और ‘पुरन्दर’ शब्द से ‘पुरों अर्थात् नगरों का नाश करने वाला’ ग्रहण होता है। यह नय शब्दों के मूल अर्थ को ग्रहण करता है, प्रचलित अर्थ को नहीं। इस प्रकार अर्थ भिन्नता को मुख्यता देकर समभिरूढनय अपना अभिप्रायः प्रकट करता है।

7-एवंभूतनय – यह नय समभिरूढनय से भी सूक्ष्म है। जिस समय पदार्थों में जो क्रिया होती है, उस समय क्रिया के अनुकूल शब्दों से अर्थ के प्रतिपादन करने को एवंभूत नय कहते है। यह सक्रियता के आधार पर उसी अनुकूल अर्थ पर बल देता है। जैसे- जब इन्द्र नगरों का नाश कर रहा हो तब उसे इन्द्र कहना व्यर्थ है, तब वह पुरन्दर है। जब वह ऐश्वर्य भोग रहा हो उसी समय उसमें इन्द्रत्व है। यथा खाली दूध की भगोली को दूध की भगोली कहना व्यर्थ है। जिस समय उसमें दूध हो उसे दूध की भगोली कहा जा सकता है। इस नय में उपयोग सहित क्रिया ही प्रधान है। यह वस्तु की पूर्णता को ही ग्रहण करता है। वस्तु में एक अंश कमी हो तो इस नय के विषय से बाहर रहती है।

इस प्रकार हर प्रतिक्रिया किसी न किसी नय से अपेक्षित होती है। नय समझ जाने पर हमें यह समझ आ जाता है कि कथन किस अपेक्षा से किया गया है। और हमें वक्ता के अभिप्राय: का निर्णय हो जाता है।

11 टिप्‍पणियां:

  1. ज्ञान में डुबकी लगा रहे हैं।

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  2. बहुत बढ़िया जानकारी दी है आपने...
    सादर आभार..
    मेरा आपसे निवेदन है कि 16 अगस्त से आप एक हफ्ता देश के नाम करें, अन्ना के आमरण अनशन के शुरू होने के साथ ही आप भी अनशन करें, सड़कों पर उतरें। अपने घर के सामने बैठ जाइए या फिर किसी चौराहे या पार्क में तिरंगा लेकर भ्रष्टाचार के खिलाफ नारे लगाइए। इस बार चूके तो फिर पता नहीं कि यह मौका दोबारा कब आए

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  3. व्यवहार नय में सामान्य और विशेष इन दो शब्दों का प्रयोग किया गया है. विभेदात्मक ज्ञान के लिए यह आवश्यक है. न्यायालयीन कार्यों में विधिविनिश्चय हेतु एवं चिकत्सा कार्यों में differential diagnosis एवं treatment के लिए इस नय का उपयोग व्यवहृत होता है.
    यथा चोरी एक सामान्य शब्द है, इससे केवल किसी चोरी की घटना का बोध भर होता है, किन्तु यूनीवर्सिटी में सूरदास के साहित्य पर लिखी गयी थीसिस की चोरी से चोरी की घटना विशेष का बोध होता है. इसी तरह ज्वर एक सामान्य रोग है किन्तु मस्तिष्क ज्वर से किसी ज्वर विशेष का बोध होता है.
    सामान्य एक समूह है जबकि विशेष उसका एक विशिष्ट भाग. सामान्य से विशिष्ट की खोज में निरंतर सूक्ष्मता की आवश्यकता होती है......कई अनपेक्षित पहलुओं को छोड़ते हुए केवल अभीष्ट तक पहुँचना सामान्य में से विशिष्ट को पृथक करना है. महर्षियों ने सामान्य और विशेष का लक्षण इस प्रकार दिया है -

    "सर्वदा सर्व भावानां सामान्यं वृद्धि कारणं , ह्रास हेतुर्विशेषश्च पृथुकं पृथु दर्शिनः ."

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  4. बहुत ही अच्‍छी जानकारी दे रहे हैं आप इस श्रृंखला में आभार ।

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  5. कौशलेन्द्र जी,

    वाह!! अतिविद्वत यथार्थ व्याख्या!!!!!
    व्यवहार नय को मैं विस्तार से समझा न पाया था। और उदाहरण भी प्रस्तुत न हुआ था।
    आपने स्पष्ठ रूप से सामान्य में से विशिष्ट को पृथक करने के यथार्थ और सम्यक उदाहरण दिए। जिसे में पोस्ट से जोडना चाहुँगा।

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  6. बोध को व्याख्या देते ये नय बहुत ही ज्ञानवर्धक रहे। आभार इस जानकारी के लिए।

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  7. Very descriptive and appealing post ! Worth reading !

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  8. बहुत बढ़िया जानकारी मिली, आभार!

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