9 जून 2013

बडा हुआ तो क्या हुआ......

एक शेर अपनी शेरनी और दो शावकों के साथ वन मे रहता था। शिकार मारकर घर लेकर आता और सभी मिलकर उस शिकार को खाते। एक बार शेर को पूरा दिन कोई शिकार नही मिला, वह वापस अपनी गुफा के लिए शाम को लौट रहा था तो उसे रास्ते मे एक गीदड का छोटा सा बच्चा दिखा। इतने छोटे बच्चे को देखकर शेर को दया आ गई। उसे मारने के बजाए वह अपने दांतो से हल्के पकड कर गुफा मे ले आया। गुफा मे पहुँचा तो शेरनी को बहुत तेज भूख लग रही थी, किन्तु उसे भी इस छोटे से बच्चे पर दया आ गई और शेरनी ने उसे अपने ही पास रख लिया। अपने दोनों बच्चो के साथ उसे भी पालने लगी। तीनों बच्चे साथ साथ खेलते कूदते बड़े होने लगे। शेर के बच्चो को ये नही पता था की हमारे साथ यह बच्चा गीदड है। वे उसे भी अपने जैसा शेर ही समझने लगे। गीदड का बच्चा शेर के बच्चो से उम्र मे बड़ा था, वह भी स्वयं को शेर और दोनो का बडा भाई समझने लगा। दोनों बच्चे उसका बहुत आदर किया करते थे।

एक दिन जब तीनों जंगल मे घूम रहे तो तो अचानक उन्हें सामने एक हाथी आया। शेर के बच्चे हाथी को देखकर गरज कर उस पर कूदने को ही थे कि एकाएक गीदड बोला, "यह हाथी है हम शेरो का कट्टर दुश्मन इससे उलझना ठीक नही है, चलो यहाँ से भाग चलते है" यह कहते हुए गीदड अपनी दुम दबाकर भागा। शेर के बच्चे भी उसके आदेश के कारण एक दूसरे का मुँह देखते हुए उसके पीछे चल दिए। घर पहुँचकर दोनों ने हँसते हुए अपने बड़े भाई की कायरता की कहानी माँ और पिता को बताई, की हाथी को देखकर बड़े भय्या तो ऐसे भागे जैसे आसमान सर पर गिरा हो और ठहाका मारने लगे। दूसरे ने हँसी मे शामिल होते हुए कहा यह तमाशा तो हमने पहली बार देखा है शेर और शेरनी मुस्कराने लगे गीदड को बहुत बुरा लगा की सभी उसकी हँसी उड़ा रहे है। क्रोध से उसकी आँखें लाल हो गई और वह उफनते हुए दोनों शेर के बच्चों को कहा, "तुम दोनों अपने बड़े भाई की हँसी उड़ा रहे हो तुम अपने आप को समझते क्या हो?"

शेरनी ने जब देखा की बात लड़ाई पर आ गई है तो गीदड को एक और ले जाकर समझाने लगी बेटे ये तुम्हारे छोटे भाई है। इनपर इस तरह क्रोध करना ठीक नही है। गीदड बोला, "वीरता और समझदारी में मै इनसे क्या कम हूँ जो ये मेरी हँसी उड़ा रहे है" गीदड अपने को शेर समझकर बोले जा रहा था। आखिर मे शेरनी ने सोचा की इसे असली बात बतानी ही पड़ेगी, वर्ना ये बेचारा फालतू मे ही मारा जाएगा। उसने गीदड को बोला, "मैं जानती हूँ बेटा तुम वीर हो, सुंदर हो, समझदार भी हो लेकिन तुम जिस कुल मे जन्मे हो, उससे हाथी नही मारे जाते है। तुम गीदड हो। हमने तुम पर दया कर अपने बच्चे की तरह पाला। इसके पहले की तुम्हारी हकीकत उन्हें पता चले यहाँ से भाग जाओ नही तो ये तुम्हें दो मिनट भी जिंदा नही छोड़ेंगे।" यह सुनकर गीदड बहुत डर गया और उसी समय शेरनी से विदा लेकर वहाँ से भाग गया ॥

स्वभाव का अपना महत्व है। विचारधारा अपना प्रभाव दिखाती ही है। स्वभाव की अपनी नियति नियत है।

13 टिप्‍पणियां:

  1. साहस उतना ही दिखाना चाहिए जितना हममे है , अपनी एक पोस्ट का शीर्षक लिखा था :)

    जवाब देंहटाएं
  2. स्वभाव कहाँ छोड़ा जा सकता है।

    जवाब देंहटाएं
  3. कायरता जीव के डी.एन.ए. में होता है और यह एक संक्रमित होने वाला गुण है.. शायद शेरनी को यह भी भय सता रहा होगा कि उसके शावक कहीं कायरता के गुण से संक्रमित न हो जाएँ, अतः भेद खोलना ही उचित समझा और उस गीदड को जाने दिया!!
    प्रेरक कथा.. महाभारत का वह दृश्य याद आ गया जब शल्य अपनी बातों से कर्ण को हतोत्साहित कर रहे थे!!

    जवाब देंहटाएं
  4. बहुत ही बेहतरीन और सार्थक प्रस्तुति,आभार।

    जवाब देंहटाएं
  5. मनुष्य का स्वभाव भी इसी तरह वातावरण से प्रभावित एवँ प्रेरित होता है ! लेकिन वंशगत विशेषताएं भी अपने स्थान पर अटल होती हैं !

    जवाब देंहटाएं
  6. रोचक रूपक। हमारा स्वभाव काफी हद तक हमारे जीवन की दिशा निर्धारित करता है।

    जवाब देंहटाएं
  7. एकदम सत्य और खरी कथा है. शेर, गीदड़ और हाथी के जरिये स्वभावगत और जिनेटिक अन्तर को दर्शाया गया है.

    जवाब देंहटाएं
  8. एकदम सत्य और खरी कथा है. शेर, गीदड़ और हाथी के जरिये स्वभावगत और जिनेटिक अन्तर को दर्शाया गया है.

    जवाब देंहटाएं
  9. प्राणी का स्वभाव कभी नहीं बदलता है..

    जवाब देंहटाएं

LinkWithin

Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...