3 जून 2013

क्षमा, क्षांति

क्षमा आत्मा का नैसर्गिक गुण है. यह आत्मा का स्वभाव है. जब हम विकारों से ग्रस्त हो जाते है तो स्वभाव से विभाव में चले जाते है. यह विभाव क्रोध, भय, द्वेष, एवं घृणा के विकार रूप में प्रकट होते है. जब इन विकारों को परास्त किया जाता है तो हमारी आत्मा में क्षमा का शांत झरना बहने लगता है.

क्रोध से क्रोध ही प्रज्वल्लित होता है. क्षमा के स्वभाव को आवृत करने वाले क्रोध को, पहले जीतना आवश्यक है. अक्रोध से क्रोध जीता जाता है. क्योंकि क्रोध का अभाव ही क्षमा है. अतः क्रोध को धैर्य एवं विवेक से उपशांत करके, क्षमा के स्वधर्म को प्राप्त करना चाहिए. बडा व्यक्ति या बडे दिल वाला कौन कहलाता है? वह जो सहन करना जानता है, जो क्षमा करना जानता है. क्षांति जो आत्मा का प्रथम और प्रधान धर्म है. क्षमा के लिए ”क्षांति” शब्द अधिक उपयुक्त है. क्षांति शब्द में क्षमा सहित सहिष्णुता, धैर्य, और तितिक्षा अंतर्निहित है.

क्षमा में लेश मात्र भी कायरता नहीं है. सहिष्णुता, समता, सहनशीलता, मैत्रीभाव व उदारता जैसे सामर्थ्य युक्त गुण, पुरूषार्थ हीन या अधैर्यवान लोगों में उत्पन्न नहीं हो सकते. निश्चित ही इन गुणों को पाने में अक्षम लोग ही प्रायः क्षमा को कायरता बताने का प्रयास करते है. यह अधीरों का, कठिन पुरूषार्थ से बचने का उपक्रम होता है. जबकि क्षमा व्यक्तित्व में तेजस्विता उत्पन्न करता है. वस्तुतः आत्मा के मूल स्वभाव क्षमा पर छाये हुए क्रोध के आवरण को अनावृत करने के लिए, दृढ पुरूषार्थ, वीरता, निर्भयता, साहस, उदारता और दृढ मनोबल चाहिए, इसीलिए “क्षमा वीरस्य भूषणम्” कहा जाता है.

दान करने के लिए धन खर्चना पडता है, तप करने के लिए काया को कष्ट देना पडता है, ज्ञान पाने के लिए बुद्धि को कसना पडता है. किंतु क्षमा करने के लिए न धन-खर्च, न काय-कष्ट, न बुद्धि-श्रम लगता है. फिर भी क्षमा जैसे कठिन पुरूषार्थ युक्त गुण का आरोहण हो जाता है.

क्षमा ही दुखों से मुक्ति का द्वार है. क्षमा मन की कुंठित गांठों को खोलती है. और दया, सहिष्णुता, उदारता, संयम व संतोष की प्रवृतियों को विकसित करती है.

क्षमापना से निम्न गुणों की प्राप्ति होती है-

1. चित्त में आह्लाद - मन वचन काय के योग से किए गए अपराधों की क्षमा माँगने से मन और आत्मा का बोझ हल्का हो जाता है. क्योंकि क्षमायाचना करना उदात्त भाव है. क्षमायाचक अपराध बोध से मुक्त हो जाता है परिणाम स्वरूप उसका चित्त प्रफुल्ल हो जाता है.

2. मैत्रीभाव ‌- क्षमापना में चित्त की निर्मलता ही आधारभूत है. क्षमायाचना से वैरभाव समाप्त होकर मैत्री भाव का उदय होता है. “आत्मवत् सर्वभूतेषु” का सद्भाव ही मैत्रीभाव की आधारभूमि है.

3. भावविशुद्धि – क्षमापना से विपरित भाव- क्रोध,वैर, कटुता, ईर्ष्या आदि समाप्त होते है और शुद्ध भाव सहिष्णुता, तितिक्षा, आत्मसंतोष, उदारता, करूणा, स्नेह, दया आदि उद्भूत होते है. क्रोध का वैकारिक विभाव हटते ही क्षमा का शुद्ध भाव अस्तित्व में आ जाता है.

4. निर्भयता – क्रोध, बैर, ईर्ष्या और प्रतिशोध में जीते हुए व्यक्ति भयग्रस्त ही रहता है. किंतु क्रोध निग्रह के बाद सहिष्णुता और क्षमाशीलता से व्यक्ति निर्भय हो जाता है. स्वयं तो अभय होता ही है साथ ही अपने सम्पर्क में आने वाले समस्त सत्व भूत प्राणियों और लोगों को अभय प्रदान करता है.

5. द्विपक्षीय शुभ आत्म परिणाम – क्रोध शमन और क्षमाभाव के संधान से द्विपक्षीय शुभ आत्मपरिणाम होते है. क्षमा से सामने वाला व्यक्ति भी निर्वेरता प्राप्त कर मैत्रीभाव का अनुभव करता है. प्रतिक्रिया में स्वयं भी क्षमा प्रदान कर हल्का महसुस करते हुए निर्भय महसुस करता है. क्षमायाचक साहसपूर्वक क्षमा करके अपने हृदय में निर्मलता, निश्चिंतता, निर्भयता और सहृदयता अनुभव करता है. अतः क्षमा करने वाले और प्राप्त करने वाले दोनो पक्षों को सौहार्द युक्त शांति का भाव स्थापित होता है.

क्षमाभाव मानवता के लिए वरदान है. जगत में शांति सौहार्द सहिष्णुता सहनशीलता और समता को प्रसारित करने का अमोघ उपाय है.

18 टिप्‍पणियां:

  1. आपने लिखा....
    हमने पढ़ा....
    और लोग भी पढ़ें;
    इसलिए बुधवार 05/06/2013 को http://nayi-purani-halchal.blogspot.in
    पर लिंक की जाएगी.
    आप भी देख लीजिएगा एक नज़र ....
    लिंक में आपका स्वागत है .
    धन्यवाद!

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  2. क्षमा...
    माँगा...
    तो समझा गया
    ये तो कायर है
    लड़ नहीं सकता
    पर..
    जब खुद पर बीती
    तो जाना..
    वो बड़ा वीर है
    जिसने माँगा था
    क्षमा....
    कुछ ही दिन पहले

    क्षमा वीरस्य भूषणम्

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  3. क्षमा शोभती उस भुजंग को जिसके पास गरल हो.मैं तो यही कहना चाहूँगा. एक अच्छा लेख.

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  4. क्षमा करने वाला, क्षमा मांगने वाले से अधिक साहसी है।..सुंदर पोस्ट।

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  5. बहुत सरल भाषा में समझाया गया कठिन भाव। क्षमा सहज ही नहीं आती है, उसके लिये भी पात्रता और योग्यता चाहिये।

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  6. बहुत बेहतरीन .सुंदर पोस्ट।

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  7. क्षमा तो मनुष्यत्व का सबसे उदार, सबसे साहसिक और सबसे सदाशयतापूर्ण गुण है ! बहुत ही उत्कृष्ट आलेख ! शुभकामनायें स्वीकार करें !

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  8. सहजता से कह दिया क्षमा का ज्ञान ...
    बहुत ही अच्छा लेख ..

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  9. ज्ञानवर्धक पोस्ट धन्यवाद हंसराज जी.

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  10. दान करने के लिए धन खर्चना पडता है, तपा करने के लिए काया को कष्ट देना पडता है, ज्ञान पाने के लिए बुद्धि को कसना पडता है. किंतु क्षमा करने के लिए न धन-खर्च, न काय-कष्ट, न बुद्धि-श्रम लगता है.

    शायद इसीलिये क्षमा करना सबसे कठिन कार्य है क्योंकि इसके लिये कोई प्रतिफ़ल नही देना पडता और क्षमा एक शुद्ध एकात्म तत्व होता है. संसारी लोग एकात्म में नही बल्कि द्वंद में आनंदित रहते हैं. इसीलिये क्षमा कोई महावीर ही कर सकता है.

    बहुत ही उपयोगी एवम पठनीय, अनुकरणीय पोस्ट के लिये आभार.

    रामराम.

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  11. बहुत अच्छा लेख ।किन्तु क्षमा अनिवार्य रूप से क्रोध का अभाव नहीं है।आप अपने ऑफिस जाने में एक दो बार लेट हो गए और आप पर पेनेल्टी लगा दी गई या ट्रेफिक पुलिसकर्मी ने सिग्नल तोडने के कारण चालान काट दिया वहाँ क्रोध नहीं है परंतु सजा फिर भी दी जा रही है।कई बार ये भी होता है कि गलती की वजह से क्रोध नहीं आता पर सामने वाला अपनी गलती न मानें और दूसरे को ही गलत ठहराने लगे तो उसकी ये आदत गुस्सा दिला देती है।

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  12. ताऊ से सहमत ...
    क्षमा आसान नहीं ..

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  13. गलती की अहसास होने पर क्षमा मांगना साहसिक बात है, क्षमा करने वाले की बड़प्पन है -दोनों ही बात अति उत्तम है -बहुत अच्छा लेख है
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  14. क्षमा सचमुच एक बड़ी कठिन परीक्षा है.. जहाँ क्षमा याचना करने वाले से अधिक क्षमा करने वाले का योग्य होना अत्यंत अनिवार्य है!!
    एक बहुत ही सार्थक पोस्ट!!

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  15. बुकमार्क करने लायक पोस्ट है.
    कर भी ली है.

    मेरा भी मानना है कि क्षमा करना आसान नहीं होता..

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