उस ज्ञान का कोई अर्थ नहीं, जिसके साथ बुध्दि, विवेक, सजगता और सावधानी न हो।
हंस: श्वेतो बक: श्वेतो को भेदो बकहंसयो:।
नीरक्षीरविवेके तु हंस: हंसो बको बक: ॥
रामकृष्ण परमहंस ने अपने शिष्यों से वार्तालाप में एक बार बताया कि ईश्वर द्वारा बनायी गयी इस सृष्टि के कण-कण में परमेश्वर का वास है। अत: प्रत्येक जीव के लिए हमें अपने मन में आदर एवं प्रेम का भाव रखना चाहिए।
एक शिष्य ने इस बात को मन में बैठा लिया। कुछ दिन बाद वह कहीं जा रहा था। उसने देखा कि सामने से एक हाथी आ रहा है। हाथी पर बैठा महावत चिल्ला रहा था - सामने से हट जाओ, हाथी पागल है। वह मेरे काबू में भी नहीं है। शिष्य ने यह बात सुनी; पर उसने सोचा कि गुरुजी ने कहा था कि सृष्टि के कण-कण में परमेश्वर का वास है। अत: इस हाथी में भी परमेश्वर होगा। फिर वह मुझे हानि कैसे पहुँचा सकता है ? यह सोचकर उसने महावत की चेतावनी पर कोई ध्यान नहीं दिया। जब वह हाथी के निकट आया, तो परमेश्वर का रूप मानकर उसने हाथी को साष्टांग प्रणाम किया। इससे हाथी भड़क गया। उसने शिष्य को सूंड में लपेटा और दूर फेंक दिया। शिष्य को बहुत चोट आयी।
वह कराहता हुआ रामकृष्ण परमहंस के पास आया और बोला - आपने जो बताया था, वह सच नहीं है। यदि मुझमें भी वही ईश्वर है, जो हाथी में है, तो उसने मुझे फेंक क्यों दिया ? परमहंस जी ने हँस कर पूछा - क्या हाथी अकेला था ? शिष्य ने कहा - नहीं, उस पर महावत बैठा चिल्ला रहा था कि हाथी पागल है। उसके पास मत आओ। इस पर परमहंस जी ने कहा - पगले, हाथी परमेश्वर का रूप था, तो उस पर बैठा महावत भी तो उसी का रूप था। तुमने महावत रूपी परमेश्वर की बात नहीं मानी, इसलिए तुम्हें हानि उठानी पड़ी।
कथा का अभिप्राय यह है कि प्रत्येक धारणा को, उसमें निहित विचार को विवेक बुद्धि से ग्रहण करना चाहिए। भक्ति या आदर भाव से ज्यों का त्यों पकड़ना, सरलता नहीं, मूढ़ता है। बेशक! विचार-विलास भरी वक्रता न हो, स्थितप्रज्ञ सम जड़ता भी किसी काम की नहीं है।
हंस: श्वेतो बक: श्वेतो को भेदो बकहंसयो:।
नीरक्षीरविवेके तु हंस: हंसो बको बक: ॥
रामकृष्ण परमहंस ने अपने शिष्यों से वार्तालाप में एक बार बताया कि ईश्वर द्वारा बनायी गयी इस सृष्टि के कण-कण में परमेश्वर का वास है। अत: प्रत्येक जीव के लिए हमें अपने मन में आदर एवं प्रेम का भाव रखना चाहिए।
एक शिष्य ने इस बात को मन में बैठा लिया। कुछ दिन बाद वह कहीं जा रहा था। उसने देखा कि सामने से एक हाथी आ रहा है। हाथी पर बैठा महावत चिल्ला रहा था - सामने से हट जाओ, हाथी पागल है। वह मेरे काबू में भी नहीं है। शिष्य ने यह बात सुनी; पर उसने सोचा कि गुरुजी ने कहा था कि सृष्टि के कण-कण में परमेश्वर का वास है। अत: इस हाथी में भी परमेश्वर होगा। फिर वह मुझे हानि कैसे पहुँचा सकता है ? यह सोचकर उसने महावत की चेतावनी पर कोई ध्यान नहीं दिया। जब वह हाथी के निकट आया, तो परमेश्वर का रूप मानकर उसने हाथी को साष्टांग प्रणाम किया। इससे हाथी भड़क गया। उसने शिष्य को सूंड में लपेटा और दूर फेंक दिया। शिष्य को बहुत चोट आयी।
वह कराहता हुआ रामकृष्ण परमहंस के पास आया और बोला - आपने जो बताया था, वह सच नहीं है। यदि मुझमें भी वही ईश्वर है, जो हाथी में है, तो उसने मुझे फेंक क्यों दिया ? परमहंस जी ने हँस कर पूछा - क्या हाथी अकेला था ? शिष्य ने कहा - नहीं, उस पर महावत बैठा चिल्ला रहा था कि हाथी पागल है। उसके पास मत आओ। इस पर परमहंस जी ने कहा - पगले, हाथी परमेश्वर का रूप था, तो उस पर बैठा महावत भी तो उसी का रूप था। तुमने महावत रूपी परमेश्वर की बात नहीं मानी, इसलिए तुम्हें हानि उठानी पड़ी।
कथा का अभिप्राय यह है कि प्रत्येक धारणा को, उसमें निहित विचार को विवेक बुद्धि से ग्रहण करना चाहिए। भक्ति या आदर भाव से ज्यों का त्यों पकड़ना, सरलता नहीं, मूढ़ता है। बेशक! विचार-विलास भरी वक्रता न हो, स्थितप्रज्ञ सम जड़ता भी किसी काम की नहीं है।
रूप नहीं , गुण पर रहे हमारा आश्रय। वाक्य नहीं विवेक पर ठहरे हमारे कर्म।
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया प्रेरक कथा,आभार
जवाब देंहटाएंRecent Post : अमन के लिए.
बहुत ही सुन्दर प्रेरक सन्देश,आभार.
जवाब देंहटाएंसुंदर संदेश पर प्रवीण जी की सटीक टिप्पणी। ...वाह!
जवाब देंहटाएंगोस्वामी जी ने इसीलिये विवेक के प्रयोग की बात कही है.
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार (14-04-2013) के चर्चा मंच 1214 पर लिंक की गई है कृपया पधारें. सूचनार्थ
जवाब देंहटाएंआभार अरुन शर्मा जी!!
हटाएंशब्द का अपना महत्व है, भावों का अपना महत्व। किसको, कब और कितना महत्व देना है, विवेक ही तय करे तो सबसे अच्छा।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रेरणादायक आख्यान है.
जवाब देंहटाएंआदमी को विवेक से कम लेना चाहिए.
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बिलकुल..... अच्छी बोधकथा
जवाब देंहटाएंज्ञान विवेक से ही चैतन्य होता है -विवेकहीन ज्ञान जड़ बोध मात्र है!
जवाब देंहटाएंनवरात्रों की बहुत बहुत शुभकामनाये
जवाब देंहटाएंआपके ब्लाग पर बहुत दिनों के बाद आने के लिए माफ़ी चाहता हूँ
बहुत खूब बेह्तरीन अभिव्यक्ति!शुभकामनायें
आज की मेरी नई रचना आपके विचारो के इंतजार में
मेरी मांग
बहुत प्रेरक सन्देश...
जवाब देंहटाएंनिर्देशों के साथ स्वविवेक भी आवश्यक है !
जवाब देंहटाएंसार्थक सन्देश !
सुज्ञ जी!
जवाब देंहटाएंयाद है ऐसी ही एक कथा थी जहाँ चार शिष्य गुरुकुल से मृत शरीर को जीवित करने की विद्या सीखकर लौट रहे थे और रास्ते में एक सिंह के कंकाल पर उन्होंने अपनी विद्या का प्रभाव देखना चाहा.. परिणाम इस कथा से भी भयानक रहा..
आज समाज में ज्ञान के नाम पर हम केवल सूचना का भंडारण उपलब्ध करा रहे हैं.. ज्ञान की व्यावहारिकता विवेक से ही आती है.. या बुद्धि और विवेक के संतुलित प्रयोग द्वारा..
प्रेरक!!!
सुन्दर प्रसंग....
जवाब देंहटाएंप्रेरणादायी !!!
आभार
अनु