7 सितंबर 2012

आधा किलो आटा

एक नगर का सेठ अपार धन सम्पदा का स्वामी था। एक दिन उसे अपनी सम्पत्ति के मूल्य निर्धारण की इच्छा हुई। उसने तत्काल अपने लेखा अधिकारी को बुलाया और आदेश दिया कि मेरी सम्पूर्ण सम्पत्ति का मूल्य निर्धारण कर ब्यौरा दीजिए, पता तो चले मेरे पास कुल कितनी सम्पदा है।

सप्ताह भर बाद लेखाधिकारी ब्यौरा लेकर सेठ की सेवा में उपस्थित हुआ। सेठ ने पूछा- “कुल कितनी सम्पदा है?” लेखाधिकारी नें कहा – “सेठ जी, मोटे तौर पर कहूँ तो आपकी सात पीढ़ी बिना कुछ किए धरे आनन्द से भोग सके इतनी सम्पदा है आपकी”

लेखाधिकारी के जाने के बाद सेठ चिंता में डूब गए, 'तो क्या मेरी आठवी पीढ़ी भूखों मरेगी?' वे रात दिन चिंता में रहने लगे।  तनाव ग्रस्त रहते, भूख भाग चुकी थी, कुछ ही दिनों में कृशकाय हो गए। सेठानी द्वारा बार बार तनाव का कारण पूछने पर भी जवाब नहीं देते। सेठानी से हालत देखी नहीं जा रही थी। उसने मन स्थिरता व शान्त्ति के किए साधु संत के पास सत्संग में जाने को प्रेरित किया। सेठ को भी यह विचार पसंद आया। चलो अच्छा है, संत अवश्य कोई विद्या जानते होंगे जिससे मेरे दुख दूर हो जाय।

सेठ सीधा संत समागम में पहूँचा और एकांत में मिलकर अपनी समस्या का निदान जानना चाहा। सेठ नें कहा- "महाराज मेरे दुख का तो पार नहीं है, मेरी आठवी पीढ़ी भूखों मर जाएगी। मेरे पास मात्र अपनी सात पीढ़ी के लिए पर्याप्त हो इतनी ही सम्पत्ति है। कृपया कोई उपाय बताएँ कि मेरे पास और सम्पत्ति आए और अगली पीढ़ियाँ भूखी न मरे। आप जो भी बताएं मैं अनुष्ठान ,विधी आदि करने को तैयार हूँ”

संत ने समस्या समझी और बोले- "इसका तो हल बड़ा आसान है। ध्यान से सुनो सेठ, बस्ती के अन्तिम छोर पर एक बुढ़िया रहती है, एक दम कंगाल और विपन्न। उसके न कोई कमानेवाला है और न वह कुछ कमा पाने में समर्थ है। उसे मात्र आधा किलो आटा दान दे दो। अगर वह यह दान स्वीकार कर ले तो इतना पुण्य उपार्जित हो जाएगा कि तुम्हारी समस्त मनोकामना पूर्ण हो जाएगी। तुम्हें अवश्य अपना वांछित प्राप्त होगा।"

सेठ को बड़ा आसान उपाय मिल गया। उसे सब्र कहां था, घर पहुंच कर सेवक के साथ क्वीन्टल भर आटा लेकर पहुँच गया बुढिया के झोपडे पर। सेठ नें कहा- “माताजी मैं आपके लिए आटा लाया हूँ इसे स्वीकार कीजिए”

बूढ़ी मां ने कहा- “बेटा आटा तो मेरे पास है, मुझे नहीं चाहिए”

सेठ ने कहा- "फिर भी रख लीजिए"

बूढ़ी मां ने कहा- "क्या करूंगी रख के मुझे आवश्यकता नहीं है"

सेठ ने कहा- "अच्छा, कोई बात नहीं, क्विंटल नहीं तो यह आधा किलो तो रख लीजिए"

बूढ़ी मां ने कहा- "बेटा, आज खाने के लिए जरूरी, आधा किलो आटा पहले से ही  मेरे पास है, मुझे अतिरिक्त की जरूरत नहीं है"

सेठ ने कहा- "तो फिर इसे कल के लिए रख लीजिए"

बूढ़ी मां ने कहा- "बेटा, कल की चिंता मैं आज क्यों करूँ, जैसे हमेशा प्रबंध होता है कल के लिए कल प्रबंध हो जाएगा"  बूढ़ी मां ने लेने से साफ इन्कार कर दिया।

सेठ की आँख खुल चुकी थी, एक गरीब बुढ़िया कल के भोजन की चिंता नहीं कर रही और मेरे पास अथाह धन सामग्री होते हुए भी मैं आठवी पीढ़ी की चिन्ता में घुल रहा हूँ। मेरी चिंता का कारण अभाव नहीं तृष्णा है।

वाकई तृष्णा का कोई अन्त नहीं है। संग्रहखोरी तो दूषण ही है। संतोष में ही शान्ति व सुख निहित है।

अन्य सूत्र......
आसक्ति की मृगतृष्णा
मधुबिन्दु
लोभ
भोग-उपभोग

18 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुन्दर कथा.....
    आत्म संतोष हो तो जीवन सुखी....

    सादर
    अनु

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  2. तृष्णा का कोई अन्त नहीं, संग्रहखोरी दूषण है संतोष में ही शान्ति व सुख निहित है।
    सच्‍चा सुख तो इसी में है ... समझा जाये तो
    बेहद सार्थक प्रस्‍तुति ... आभार

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  3. संग्रह-खोरी है बुरी, तृष्णा का ना अंत |
    शांत निहित संतोष में, सुखी सुज्ञ श्रीमंत |
    सुखी सुज्ञ श्रीमंत, सातवीं पीढी सोंचे |
    गर दूजी उद्दंड, बाल सब सिर के नोचे |
    शाहजहाँ सा बाप, कैद में चना चखाया |
    करो फैसला आप, कहो क्या खाना खाया ??

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  4. संतोष करे सुख मिले,मिले शांती मन को
    तृष्णा करे कष्ट मिले .दुख देय जीवन को,,,,

    बहुत सार्थक बेहतरीन प्रस्तुति,,,,
    RECENT POST,तुम जो मुस्करा दो,


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  5. सच तृष्णा का कोई अंत नहीं होता ...बहुत सुंदर कथा ...

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  6. सब जानते हैं मगर फिर भी संग्रह में लगे हैं ...अपनी सात पीढ़ियों के लिए !

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  7. सुन्दर प्रसंग, आभार!

    तुल्यनिन्दास्तुतिर्मौनी सन्तुष्टो येन केनचित्
    अनिकेतः स्थिरमतिर्भक्तिमान्मे प्रियो नरः॥

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  8. इच्छाओं का कोई अंत नहीं ... शांति मन में ही ढूंढनी पड़ती है ...
    सुन्दर पोस्ट ...

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  9. सच है तृष्णा का अंत नहीं ... मन की शान्ति जरूरी है ...

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  10. कल के बारे में ईश्वर ध्यान रखेंगे।

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  11. इस लोभी असंतोष ने ही बहुतेरे गृहस्थियों के सुख-चैन को छीना हुआ है.... सेठ बिरादरी के भाइयों को इस संबंध में अकसर एक दोहा सुनाया जाता है...

    "पूत सपूत तो क्या धन्य संचय, पूत कपूत तो क्या धन्य संचय"

    मम्मी ने जमा ही जमा किया... भोंदू बेटे ने उड़ाया ही उड़ाया.

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  12. भूल सुधार:
    धन का कब धन्य हो गया ... मालुम अब चला...
    तेज गति की टाइपिंग में ऎसी त्रुटियाँ हो ही जाती हैं.

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  13. सेठ को सही सत्संग और संत मिल गए यह उसका सौभाग्य है.
    वरना कोई गोल गप्पे,काला पर्स आदि बताने वाला (कु)संत
    मिलजाता तो बंटाधार ही हो जाता उसका.

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  14. संतोष परम सुखम।
    शानदार प्रेरणादायी कहानी।

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