18 सितंबर 2012

सामर्थ्य का दुरुपयोग

एक था चूहा, एक थी गिलहरी। चूहा शरारती था। दिन भर 'चीं-चीं' करता हुआ मौज उड़ाता। गिलहरी भोली थी।'टी-टी' करती हुई इधर-उधर घूमा करती।

संयोग से एक बार दोनों का आमना-सामना हो गया। अपनी प्रशंसा करते हुए चूहे ने कहा, "मुझे लोग मूषकराज कहते हैं और गणेशजी की सवारी के रुप मे रूप में खूब जानते हैं। मेरे पैने-पैने हथियार सरीखे दांत लोहे के पिंजरे तो क्या, किसी भी चीज को काट सकते हैं।"

मासूम-सी गिलहरी को यह सुनकर  बुरा सा लगा। बोली, "भाई, तुम दूसरों का नुकसान करते हो, फायदा नहीं। यदि अपने दाँतों पर तुम्हें इतना गर्व है, तो इनसे कोई नक्काशी क्यों नहीं करते? इनका उपयोग करो, तो जानू! जहां तक मेरा सवाल है, दाँत तो मेरे भी तेज है,कितना भी कठोर बीज हो तोड, साफ करके संतोष से खा लेती हूं। पर मनमर्जी दुरुपयोग नहीं करती। मुझ में कोई खाश गुण तो नहीं पर मेरे बदन पर तीन धारियां देख रहे हो न, बस ये ही मेरा संदेश है।"

चूहा बोला, "तुम्हारी तीन धारियों की विशेषता क्या है?"

गिलहरी बोली, "वाह! तुम्हें पता नहीं? दो काली धारियों के बीच एक सफेद धारी है। यह तमस के मध्य आशाओँ का प्रकाश है। दो काली अंधेरी रातों के बीच ही एक सुनहरा दिन छिपा रहता है, भरोसा रखो। यह प्रतीक है कि कठिनाइयों की परतों के बीच मेँ ही असली सुख बसता है।" संदेश सुनकर चूहा लज्जित हो गया।

सामर्थ्य का उपयोग दूसरोँ को हानि पहुँचाने मेँ नहीं, उनके मार्ग में आशा दीप जगाने मेँ होना चाहिए.

19 टिप्‍पणियां:

  1. दो रातों के बीच एक दिन भी छिपा रहता है।

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  2. कहानी पढ़ने के बाद सोचने लगा कि जिन प्रदेशों की गिलहरियाँ बिना धारियों की (मतलब प्लेन कलर की) होंगी वे अपनी खासियत 'घमंडी चूहे' को कैसे बतायेंगी? :)

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    1. वे गिलहरियाँ बैठने पर अपनी उत्तंग रहती पूँछ से उल्हास और आशा का संदेश दे :)
      प्रकृति में जीवट के संदेश बिखरे पडे है, किसी को भी आधार बनाया जा सकता है यदि आशय सार्थक संदेश देना है तो………

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  3. कुछ विषयांतर बातों से ....

    आजकल घर में काफी छोटी-छोटी चुहियाँ हो गयी हैं... और न जाने कहाँ से रात में एक मोटा चूहा भी आ जाता है. चूहे की सामर्थ्य में बहुत कुछ है लेकिन मेरी सामर्थ्य में उन्हें घर से बाहर करने के लिये केवल एक चूहेदानी रख देना ही है. वे दुछत्ती पर रखी मेरी एकमात्र प्रकाशित पुस्तकों के ढेर को कुतरने का दुखद स्वर मुझे रात्रि में सुनाते हैं और सुबह के समय बुहारन पर मुझे उनके द्वारा उत्पादित चूरन गोलियों का अवसाद भी मिलता है.

    निरामिष कक्षाओं में निरंतर आने के कारण कई बार पशोपेश में पड़ जाता हूँ ... कि कहीं चूहों को लोभ में उलझाकर-पकड़कर उनके बसे-बसाए परिवार से ही उन्हें दूर कर आना कितना उचित है?

    ___________________

    गिलहरियाँ भी बहुत आक्रामक हो गयी हैं... शायद अधिक खाने को मिल जाने के कारण उनकी तादात बढ़ गयी है... और वे एक-दूसरे का पीछा करते हुए कभी-कभी कमरों ने घुस आती हैं... एक बार तो एक गिलहरी बच्चा कमरे में ही तीन-चार दिन तक रहा... हमने जब तक कमरे का पूरा सामान नहीं निकाल दिया उसे कमरे से निकाल ही न पाये. कभी-कभी तो चूहेदानी में गिलहरी फँसी देखकर अचम्भा होता है...

    आजकल जीव-जंतुओं की आदतें बड़ी तेज़ी से बदल रही हैं... प्रतीक बनाना और रूपक गढ़ना उतना आसान नहीं रहा जितना कि पहले था.

    - छिपकली दीवार से उतरकर फर्श पर शिकार करने लगी है. - कुत्ते और गय्यायें रोटी खाना छोड़ रहे हैं. - गिलहरियाँ चूहों की माफिक रसोई और कमरों में खुरापात करने लगी हैं. - मच्छरों ने दिन में भी ड्यूटी देना शुरू कर दिया है.

    यहाँ तक कि 'दीमकों' ने साल की लकड़ी की कड़ियों को खोखला करना शुरू कर दिया है. जबकि मेरे पिता इसे मानने को तैयार ही नहीं कि 'साल' में दीमक लग सकती है. मैंने उन्हें साल की लकड़ी को खुरचकर उसमें दीमक लगी दिखायी.

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    1. गौरतलब बात हैं दोस्त| मानव व्यवहार जहां बदल रहा है, जीव-जंतु भी अपना व्यवहार बदल रहे हैं| मक्खी, मच्छर मारने-भगाने के लिए जिस डीडीटी पाउडर को किसी समय एक बहुत कारगर ईजाद माना जाता था, आज उसमें मक्खियाँ और मच्छर बड़े मजे में दंड पलते देखे जा सकते हैं| या तो उन्हें भी डार्विन का 'survival of the fittest' सिलेबस में पढ़ाया जाने लगा है या फिर उन्होंने अपनी adaptability और resisting power बढ़ा ली है|

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    2. प्रतुल जी,

      सही कहा संजय जी ने…… प्रकृति पर्यवरण के साथ मानव का हस्तक्षेप ही वह अतिक्रमण है जो प्रकृति सहित सभी जैविक राशी के व्यवहार स्वभाव को बदले का एक मात्र कारण है।

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  4. @ सामर्थ्य का उपयोग दूसरोँ को हानि पहुँचाने मेँ नही, आशा जगाने मेँ होने चाहिए.

    सहमत तो होना बनता ही है, यह उचित भी है| शुभ उद्देश्य और शुभ विचार दोनों ही जरूरी हैं|

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  5. नजरिया,,,,,,
    ये कैसा कलयुग है ,
    चारो ओर धुंधला
    दो काली रातो के बीच
    एक दिन निकला
    जब की
    ऐसी नहीं है कोई बात
    दो दिनों के बीच
    आती है एक काली रात
    परिस्थित एक ही है
    मगर
    दोनों के नजरिये में
    कितना फर्क है l

    RECENT P0ST फिर मिलने का

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  6. सुंदर, सरल, सार्थक बात...... ये कहानी तो चैतन्य को भी सुनाई जाएगी...... :)

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  7. दो काली अंधेरी रातों के बीच ही एक सुनहरा दिन छिपा रहता है...
    आभार आपका भाई जी !

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  8. उत्कृष्ट प्रस्तुति आज बुधवार के चर्चा मंच पर ।।

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  9. सहज़ एवं सरल शब्‍दों में ज्ञानवर्धक प्रस्‍त‍ुति

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  10. सुन्दर , सरल शब्दों में बहुत ही
    अच्छी सिख देती रचना...
    :-)

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  11. गिलहरी बोली, "वाह! तुम्हें पता नहीं? दो काली धारियो(धारियों ) के बिच(बीच ) एक सफेद धारी है। यह तमस के मध्य आशाओँ का प्रकाश है दो काली अंधेरी रातों के बीच ही एक सुनहरा दिन छिपा रहता है। यह प्रतीक है कि कठिनाइयों की परतों के बीच मेँ ही असली सुख बसता है।"

    धारियों /बीच /उड़ाता

    एक था चूहा, एक थी गिलहरी। चूहा शरारती था। दिन भर 'चीं-चीं' करता हुआ मौज उड़ता(उड़ाता )। गिलहरी भोली थी।'टी-टी' करती हुई इधर-उधर घूमा करती।

    बेहतरीन बोध कथा .आज ये सारे गणतंत्री चूहे संसद में आगये ,प्रजातंत्र को कुतर कुतर खा गए ,......

    ram ram bhai
    मंगलवार, 18 सितम्बर 2012
    कमर के बीच वाले भाग और पसली की हड्डियों (पर्शुका )की तकलीफें :काइरोप्रेक्टिक समाधान

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  12. वाह - बोधकथाओं से बातों को समझाना तो कोई आपसे सीखे :) |

    आभार आपका इस कहानी को शेअर करने के लिए |

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  13. दो काली धारियों के बीच एक सफेद धारी है। यह तमस के मध्य आशाओँ का प्रकाश है दो काली अंधेरी रातों के बीच ही एक सुनहरा दिन छिपा रहता है। यह प्रतीक है कि कठिनाइयों की परतों के बीच मेँ ही असली सुख बसता है।"

    बहुत ही सरलता और रोचकता से आपने पते की बात
    चूहे और गिलहरी की कथा के माध्यम से बता दी.

    आप सुज्ञ नाम को सुंदरता से सार्थक करते हैं,सुज्ञ जी.

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