1 मार्च 2015

सदुपयोग

पुराने समय की बात है, छोटे से गाँव में एक किसान रहता था। वह रोज़ भोर में उठकर दूर झरने से स्वच्छ पानी लाया करता था। इस काम के लिए वह अपने साथ दो बड़े घड़े ले जाता था, जिन्हें एक लाठी से कावड़ की तरह कंधे के दोनों ओर लटका लेता था।

उनमे से एक घड़ा तो सही था किन्तु दूसरा कहीं से फूटा हुआ था। इसी वजह से रोज़ घर पहुँचते -पहुचते आधा हो जाता था। किसान घर डेढ़ घड़ा पानी ही ले जा पाता था। ऐसा दो वर्षों तक चलता रहा।

साबूत घड़े को बड़ा घमंड था कि वह अखंड है और पूरा पानी घर पहुंचता है, उसमें कोई कमी नहीं है। वहीँ दूसरी तरफ फूटा घड़ा इस पर शर्मिंदा रहता कि वह आधा पानी ही घर पंहुचा पाता था। उसे ग्लानि होती कि उसके कारण किसान की मेहनत बेकार चली जाती है। फूटा घड़ा यह सोच कर परेशान रहने लगा। उससे रहा नहीं गया और एक दिन उसने किसान से कहा ,“मैं खुद पर शर्मिंदा हूँ और आपसे क्षमा मांगना चाहता हूँ”

“क्यों ?", किसान ने पूछा , “ तुम किस बात से शर्मिंदा हो ?”

“शायद आप नहीं जानते पर मैं एक जगह से फूटा हुआ हूँ , और पिछले दो सालों से आधा ही पानी पहुंचा पाया हूँ, मुझमें यह बहुत बड़ी कमी है, और इसकारण आपकी मेहनत बर्बाद होती रही है”, फूटे घड़े ने दुखी स्वर में कहा।

किसान को घड़े की बात सुनकर दुःख हुआ और वह बोला, “कोई बात नहीं, मैं चाहता हूँ कि आज तुम लौटते समय रास्ते में पड़ने वाले सुन्दर फूलों को देखो”

घड़े ने वैसा ही किया, वह रास्ते भर सुन्दर फूलों को देखता आया , खिले हुए फूलों को देखकर उसकी उदासी कुछ दूर हुई मगर घर पहुँचते – पहुँचते फिर वह आधा खाली हो चुका था, वह मायूस हो, पुनः किसान से अफसोस व्यक्त करने लगा।

किसान ने कहा,”शायद तुमने ध्यान नहीं दिया, रास्ते के एक किनारे ही हरियाली व फूल खिले थे। वे फूल केवल तुम्हारी तरफ के किनारे थे। साबूत घड़े की तरफ के किनारे एक भी फूल नहीं था। ऐसा इसलिए था क्योंकि मैं हमेशा से तुम्हारे अन्दर की कमी को जानता था, मैंने उस कमी का सदुपयोग किया और तुम्हारी तरफ के किनारे भाँती भाँती के फूलों के बीज बिखेर दिए। तुम रोज़ थोडा-थोडा कर उन्हें सींचते रहे और इस तरह तुम्हारे छिद्र से होते स्राव ने रास्ते को खूबसूरत बना दिया। तुम्ही सोचो अगर तुम्हारे में यह छिद्र न होता तो तुम कभी सिंचाई न कर पाते और यह मार्ग इतना मनोरम न बनता।”

फूटा घड़ा अपनी कमी का भी सदुपयोग होते देख आत्मविश्वास से भर उठा।

मित्रों सभी सम्पूर्ण नहीं होते। कोई न कोई कमी हम सभी में होती है। ये कमियां ही हमें अनोखा बनाती हैं। यदि हम किसी कमी पर आत्मग्लानि महसूस करने की जगह उस कमी के भी सदुपयोग का मार्ग निकाल लें तो जीवन किसी भी दशा में मूल्यवान हो जाता है।

4 टिप्‍पणियां:

  1. कोई सम्पूर्ण नहीं, सभी में कुछ ऐसा अवश्य है जो उसे अन्यों से विशेष बनाता है।
    ये कथा पढ़ी तो मुझे अपने कार्यक्षेत्र के लिए अत्यंत उपयोगी लगी।
    सभी साथियों को इस कथा को प्रेषित कर रहा हूँ और वाचिक रूप से सुना भी रहा हूँ।
    मैं सोचता हूँ - शिक्षा क्षेत्र से जुड़े मेरे सभी साथी ऐसी प्रेरक कथा का सदुपयोग अवश्य करेंगे।
    आदरणीय सुज्ञ जी, आभारी हूँ ऐसा कथा बाँटने के लिए।

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    1. आपके प्रोत्साहन से हमेशा हृदयकमल खिल जाता है, प्रतुल जी!!

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  2. हमें अपनी कमियां खलती है,परंतु हम अपनी कमियों को किसी से जोड़ कर सहयोग प्राप्त कर सकते है।सहयोग द्वारा जीवन सार्थक बनता है।

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