या धार्मिक
विधानो के तौर पर
कितने ही………
- अच्छे अच्छे जीवन तरीके अपनालो,
- सुन्दर वेश, परिवेश, गणवेश धारण कर लो,
- पुरानी रिति, निति, परम्पराएं और प्रतीक अपना लो,
- आधा दिन भूखे रहो, और आधा दिन डट कर पेट भरो,
- या कुछ दिन भूखे रहो और अन्य सभी दिन खाद्य व्यर्थ करो,
- हिंसा करके दान करो, या बुरी कमाई से पुण्य करो,
- यात्रा करो, पहाड़ चढ़ो, नदी, पोख़रों,सोतों में नहाओ,
- भोगवाद को धर्मानुष्ठान बनालो
यदि आपका यह
सारा उपक्रम मानवता के हित में अंश भर भी योगदान नहीं करता,
समस्त प्रकृति
के जीवन हित में कुछ भी सहयोग नहीं करता,
तो व्यर्थ है,
निर्थक है। वह निश्चित ही धर्म नहीं है। मोहांध विकार है, पाखण्ड है।
यकीनन मानवता से परे धर्म की कल्पना महज कल्पना ही है
जवाब देंहटाएंsach hai swarth me jeena dhrm nhi hai,ye srif dikhawa hai
जवाब देंहटाएंबिलकुल सही विचार ... पूर्ण सहमत
जवाब देंहटाएंअनमोल है ये वचन.. जीवन सार!!
जवाब देंहटाएंसच कहा आपने..
जवाब देंहटाएंसच है !! सच है !! सच है !! सच है !! सच है !!
जवाब देंहटाएंयदि आपका यह सारा उपक्रम मानवता के हित में अंश भर भी योगदान नहीं करता,
जवाब देंहटाएंसमस्त प्रकृति के जीवन हित में कुछ भी सहयोग नहीं करता,
तो व्यर्थ है, निर्थक है। वह धर्म नहीं है। नहीं है। नहीं है।
जो आपने कहा वह सच है.
कबीर की वाणी में कहें तो
बहुतक पीर कहावते ,बहुत करत हैं भेष
यह मन कहर खुदाय का, मारे सो दरवेश
मन को मारने से अर्थात अंत:करण के शुद्ध करने
से ही हममें सुधार संभव हो सकेगा.
सेवा भाव,जग कल्याण और परहित करते रहना अंत:करण को
शुद्ध करने की एक सक्षम साधना है.
सुन्दर प्रेरक प्रस्तुति के लिए हार्दिक आभार,सुज्ञ जी.
मैं यह सोचता हूँ कि जो हमें मिलता है उसका कितना अंश हम वापस कर पाते हैं (मैं इस सम्बन्ध में अभी थोडा भी नहीं पाया). यदि हम मानवता के लिए कुछ नहीं करते तो सब कुछ व्यर्थ है. आभार.
जवाब देंहटाएंआपसे एकदम सहमत हूँ... बेहद सुन्दर आपकी रचना और मन का उदगार
जवाब देंहटाएंतो व्यर्थ है, निर्थक है। वह धर्म नहीं है। नहीं है। नहीं है।
जवाब देंहटाएंबहुत सही कहा है आपने ...आभार ।
आपकी पोस्ट आज के चर्चा मंच पर प्रस्तुत की गई है
जवाब देंहटाएंकृपया पधारें
चर्चा मंच-756:चर्चाकार-दिलबाग विर्क
स्वार्थी जीवन का कोई लाभ नहीं
जवाब देंहटाएंठीक कहा है आपने..
पधारें ..
kalamdaan.blogspot.com
आपकी बात से पूर्णतः सहमत हूँ ... धर्म वही है जो मानव कल्याण और उसके उत्थान के लिए है ...
जवाब देंहटाएंपर कितने लोग इसे समझते हैं ? इस सच को कम देखते हैं
जवाब देंहटाएंअन्य का तो नहीं पता,परन्तु उपवास, अच्छी जीवन शैली,सुन्दर वेश,परिवेश,रीति-नीति,यात्रा,तीर्थ-स्नान आदि प्रकृति के जीवन-हित में काफी सहयोगी हैं। यह सोच भी बहुत दंभकारी है कि मैं कुछ ऐसा कर रहा हूं जो मानवता के हित में है।
जवाब देंहटाएं@ अन्य का तो नहीं पता,परन्तु उपवास, अच्छी जीवन शैली,सुन्दर वेश,परिवेश,रीति-नीति,यात्रा,तीर्थ-स्नान आदि प्रकृति के जीवन-हित में काफी सहयोगी हैं।
जवाब देंहटाएंनिस्संदेह, सहयोगी है...किन्तु यहाँ प्रसंग यह है कि भोगवाद में लिप्त रहते हुए .....और तदनंतर किये गए वश्यपापों को धोने के लिए यदि यह सब किया जाता है तो यह धार्मिकता कदापि नहीं कही जा सकती...यह तो धर्म के नाम पर स्वयं को और समाज को छलना हुआ.
@ यह सोच भी बहुत दंभकारी है कि मैं कुछ ऐसा कर रहा हूं जो मानवता के हित में है।
सुज्ञ जी का कथन सुपथिक के लिए है ....विद्यार्थी भाव वाले सांसारिकों के लिए है....उसे तो लक्ष्य की बात ध्यान में रखनी ही होगी. एक सुलक्ष्य पा लेने के बाद कृत कार्य से आत्म मुग्धता का भाव दंभ है. यह भाव परशुराम में आ गया था. धनुष भंग के समय उन्हें इसका बोध हुआ तो उन्होंने राम से कहा कि वे संधान किये शर का लक्ष्य उनके समस्त पुण्यों को नष्ट करने के लिए करें. ( ऐसा उदाहरण अन्यत्र मिलना दुर्लभ है )
मानवता के हित में कार्य करना है ....यह लक्ष्य तो होना ही चाहिए .....यदि नहीं होगा तो भटकने की संभावना रहेगी. लक्ष्यबोध और दंभ में अंतर है.
भोगवाद,दिखावा और आडम्बर कभी भी धर्म नहीं कहे जा सकते, न यह सभी कृत्य प्रकृति-जीवन में कोई योगदान करते है उलट यह तो प्रकृति के शोषक है। यदि भोगवाद को येन-केन प्रकृति के जीवन-हित में फिट किया जाता है तो कोई भी बुरे से बुरा आचरण ऐसा न बचेगा जिसे प्रकृति के जीवन-हित में साबित न किया जा सके। यह साबित करने की क्रिया ही तो दिखावा-आडम्बर मानी जाती है्।
जवाब देंहटाएंमानवता के हित को प्रतिक्षण ध्यान में रखना, और उसी विवेक के अधीन सक्रिय रहने वाली सोच दंभकारी कहलाएगी तो, मानवता का अहित करने वाली सोच को तो खुला मार्ग मिल जाएगा। अहित वाली सोच सामान्य दशा कहलाएगी।
yahi sirf sach hai.....
जवाब देंहटाएंpranam.
सुज्ञ जी, आपका हार्दिक आभार! ऐसे सद्विचारों पर ध्यान दिलाते रहिये।
जवाब देंहटाएंसच है भाई जी ...
जवाब देंहटाएंशुभकामनायें !
बहुत सारगर्भित सन्देश..
जवाब देंहटाएंबाबा ने लिखा है...
जवाब देंहटाएंपरहित सरिस धर्म नहीं भाई, पर पीड़ा सम नहिं अधमाई।।
आपने सत्य लिखा है!
जवाब देंहटाएंआपको बसंत पंचमी की शुभकामनाएँ!
सुज्ञ जी,आपने सत्य लिखा है हार्दिक आभार
जवाब देंहटाएंबिल्कुल सही कहा है आपने..
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर प्रस्तुति!
एक ब्लॉग सबका '
सत्य वचन....
जवाब देंहटाएंबहुत बेहतरीन ...हमारे ब्लोग पर आपका स्वागत है
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर विचार से सुसज्जित पोस्ट. आपका आभार.
जवाब देंहटाएंबहुत सही लिखा आपने .....
जवाब देंहटाएंआपको होली की सपरिवार हार्दिक शुभकामनायें!
आपके सुलेखन के लिए आभार.
जवाब देंहटाएंआपको व् सभी जन को होली की हार्दिक शुभकामनाएँ.
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♥ होली ऐसी खेलिए, प्रेम पाए विस्तार ! ♥
♥ मरुथल मन में बह उठे… मृदु शीतल जल-धार !! ♥
आपको सपरिवार
होली की हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं !
- राजेन्द्र स्वर्णकार
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Holi ke avsar par aise paak vichar hi sarthak holi hai ...
जवाब देंहटाएंman ki pvitrta hi dhrm hai ....!!
DR. ANWER JAMAL ने कहा…
जवाब देंहटाएंअंग्रेज़ों ने पता लगाया कि रेड मीट नुक्सान दे रहा है और वीरू भाई को फ़ौरन यक़ीन आ गया कि जब अंग्रेज़ों ने तय कर लिया है तो ज़रूर नुक्सान देता होगा।
हमें अंग्रेज़ों की चालबाज़ियां पता हैं।
इनकी रिसर्च पर भी रिसर्च करने की ज़रूरत होती है क्योंकि दुनिया के सामने रिसर्च के नाम पर वही परोसते हैं जिससे दुनिया के व्यापार पर इनका क़ब्ज़ा हो जाए।
हमने फ़ौरन अपने पुराने ग्रंथ चरक संहिता में टटोला तो वहां रेड मीट खाने के लाभ ही लाभ बताए गए हैं।
अंग्रेज़ कह रहे हैं कि रेड मीट खाने से आंत का कैंसर हो जाता है और हमारे महान भारतीय बुज़ुर्ग कह रहे हैं कि इससे यक्ष्मा का रोगी तक ठीक हो जाता है।
किस की बात सही मानी जाए ?
1. स्वदेशी विचार मंच पर बैठकर सोचा तो भी भारतीय बुज़ुर्गों की बात मानना हमारा फ़र्ज़ बनता है।
2. फिर निष्पक्ष होकर सोचा कि अंग्रेज़ तो अपने किसी प्लान को लाने से पहले तरह तरह के शोशे छोड़ते हैं, उनकी बात अर्थलाभ से प्रेरित हो सकती है लेकिन हमारे चरक जी तो महर्षि हैं और उन्हें किसी से किसी लाभ का लालच था ही नहीं। इस लिहाज़ से भी उनका पलड़ा भारी बैठता है।
3. इसके बाद ‘मैं कहता आंखन देखी‘ के आधार पर जांच की गई तो पाया कि रेड मीट रोज़ खाने के बावजूद हमारे कुनबे में तो क्या क़बीले में भी किसी को आंत का कैंसर न हुआ।
अब सवाल यह खड़ा हुआ कि ‘या इलाही ! माजरा क्या है ?‘
...तो माजरा भी समझ में आ गया कि पश्चिमी विज्ञानियों के नतीजे केवल शरीर को सामने रखकर निकाले गए हैं जबकि आदमी केवल शरीर ही नहीं है, उसमें मन बुद्धि और आत्मा भी है और हरेक का जीवट अलग अलग भी होता है। इसी जीवट के बल पर भारतीय उन परिस्थितियों में भी जी लेते हैं जिनकी कल्पना मात्र से ही पश्चिमी लोगों के पसीने छूट जाएं। जिसका जीवट शक्तिशाली होता है उसकी जीवनी शक्ति भी अधिक होती है। अंग्रेज़ी में इसे इम्यून सिस्टम कहा जाता है।
अगर आपने अपने जीवन साथी को तन मन और आत्मा तीनों स्तर पर संतुष्ट कर दिया तो उसके रोम रोम से, उसके दिल से आपके लिए दुआएं निकलेंगी और तब बीमारियां आपका कुछ बिगाड़ नहीं सकतीं। तन के स्वस्थ रहने में मन का रोल बहुत अहम है। हमारे भारतीय बुज़ुर्ग ऐसा कहते हैं और हम यही मानते हैं और आधुनिक परीक्षणों से भी इसकी सत्यता प्रमाणित हो चुकी है।
अंग्रेज़ों की रिसर्च पर यक़ीन करने वालों के लिए उनकी ही एक रिसर्च पेश ए खि़दमत है, देखिए
Regular Sex Improves Health and Doubles Life Expectancy
(NaturalNews) You probably already know that Broccoli, carrots, and oranges are good for you. Yet it's rarely mentioned that having regular sex is not only fantastically fun, but brilliant for your health! A study at Queens University in Belfast published in the British Medical Journal tracked the sexuality of about 1,000 middle-aged men over the course of a decade. The study compared men of a similar age and health and showed that men who reported the highest frequency of orgasm lived twice as long as though who did not enjoy sex.
सावधान रहना जरूरी है भाई जी !
जवाब देंहटाएंशुभकामनायें आपको !
16 मार्च 2012 9:29 am
हटाएं
ब्लॉगर DR. ANWER JAMAL ने कहा…
@ राम राम भाई ! आपने रेड मीट के बारे में आधुनिक रिसर्च पेश ही है और हमने उसके विषय में प्राचीन भारतीय चिकित्सकों का नज़रिया रखा है। हमने आपकी बात का खंडन कब किया है ?
हम तो आपकी इस बात से पूरी तरह सहमत हैं कि
"संशोधित रेड मीट के स्थान पर बतख ,मुर्गी ,मच्छी आदि खाने से ऐसे खतरे को कम किया जा सकता है"
रिसर्च करने वालों ने यह भी पाया है कि जो लोग बचपन में भी प्यार से वंचित रहे और बड़े होकर भी अपने जीवन साथी से भावनात्क रूप से असंतुष्ट रहे, ऐसे लोग भी कैंसर की चपेट में आ जाते हैं।
रिसर्च करने पर यह भी पाया गया कि सेक्स करने से इम्यून सिस्टम मज़बूत होता है।
असल बात यह है कि सही समय पर विवाह हो जाए और वे आपस में प्यार भरा संतुष्ट जीवन जिएं। इससे उनका इम्यून सिस्टम फ़ौलादी बन जाएगा। यही कारण है कि हमारे रिश्तेदारों में रेड मीट रोज़ खाया जाता है और अल्लाह का शुक्र है कि आज तक उनमें से किसी एक को भी कैंसर न हुआ।
जिन देशों में ये रिसर्च हो रही हैं, वहां फ़ैमिली नाम की चीज़ ही बहुत कम रह गई है। भावनात्मक रूप से टूटे हुए लोगों पर किए गए परीक्षण उन पर लागू नहीं होते जो कि भावनात्मक रूप से संतुष्ट जीवन जी रहे हैं।
अनवर ज़माल साहब आप रेड मीट से सेक्स की फ्रिक्युवेंसी पर पहुच गए यह विषय अंतरण है .रेड मीट की ओर लौटतें हैं .
जवाब देंहटाएंआपने शरीर से हटके आत्मा की बात की है ,बहुत अच्छा किया है .यह सारा मंडल एक ही है .सृष्टि में एक ही तत्व व्याप्त है वह है ऊर्जा .आत्मा कह लो इसे या सचेतन ऊर्जा.अल्लाह कह लो या ब्रहम तत्व .सभी आत्माएं एक हैं .जड़ चेतन में सभी में वही ऊर्जा (आत्मा )का वास है .एक तत्व की ही pradhaantaa kaho इसे जड़ या चेतन पशु पक्षी भी इसका अपवाद नहीं है वह सिर्फ 'रेड' और 'वाईट ',लीन ,मीट से आगे एक आत्मा भी हैं .शिकारी जब शिकार का पीछा करता है तो शिकार जान बचाके भागता है या फिर सामर्थ्य होने पर मुकाबला भी करता है .इस फ्लाईट और फाईट सिंड्रोम में एड्रीनेलिन का स्राव होता है .सारा सारे शरीर में इसका सैलाब होने लगता है .शिकार मारा जाता है .भय से पैदा हुई है यह रिनात्मक ऊर्जा जो सारे शरीर को संदूषित कर देती है .खून के थक्के बनतें हैं .अश्थी मज़ा संदूषित हो जाती है .मनुष्य इसी गोष्ट को खाता है .उसी अल्लाह या ब्रह्म को निवाला बनाता है .
जिसे आप हलाल करतें है फिर खाते हैं रिनात्मक ऊर्जा से वह भी नहीं बचता है .उसका गोष्ट भी संदूषित होता है एड्रीनेलिन से बहले खून का थक्का न भी बने .
बकर ईद पर वह कसाई भी बकरे के कान में यही कहता है -यह हरामी मुझसे जिबह करवा रहा है मैं तो अपना कर्म कर रहा हूँ अल्लाह मुझे ,यह जीव आत्मा मुझे मुआफ करे .सवाल इस्लाम या सनातन धर्म का नहीं है .चेतन तत्व का है अल्लाह का है ,उस तत्व का है जो मुझमे तुझमे,जड़ में चेतन में , सबमे व्याप्त है .
बत्लादूं आपको यही शिव तत्व है .
@आप रेड मीट से सेक्स की फ्रिक्युवेंसी पर पहुच गए
हटाएंवीरूभाई,
दो कारण हो सकते है………
१-मांस मदिरा मैथुन का वामाचारी सम्बंध
२-आपने कभी देखा हो तो 'गुप्त रोगों के शर्तिया इलाज' वाले झोला-छाप हर मर्ज़ का इलाज योन सम्बंधो में ही देखते है। अगर इसी से लोगों का इम्यून सिस्टम फ़ौलादी बन जाए तो लोग नाहक़ ही पोषण, दवाओं और डॉक्टर के पिछे भागते है। :)
यदि आपका यह सारा उपक्रम मानवता के हित में अंश भर भी योगदान नहीं करता,
जवाब देंहटाएंसमस्त प्रकृति के जीवन हित में कुछ भी सहयोग नहीं करता,
तो व्यर्थ है, निर्थक है। वह धर्म नहीं है। नहीं है। नहीं है।
आपकी बात से सहमत .हम जो कुछ भी करतें हैं उससे शेष प्रकृति प्रभावित होती है .न्यूटन ने कहा था -जब आप एक ऊंगली तारों की तरफ उठाते हो आप शेष सृष्टि का गुरुत्वीय संतुलन बदल देते हो .संतों ने सदैव ही धर्म की बाहरी स्वरूप पर कटाक्ष किया है -कबीर कहतें हैं -दिन में माला जपत हैं ,रात हनत हैं गाय जाहिद शराब पीने दे मस्जिद में बैठके ,या वो जगह बता दे जहां पर खुदा न हो .
कांकर पाथर जोरी के मस्जिद ली बनाय ,ता पे मुल्ला बांग दे ,क्या बहरा हुआ खुदाय .
हम देखे हम जो कर रहें हैं यदि वह कोई हमारे साथ करे तो हम पर उसका कैसा प्रभाव पडेगा .
.
.
ब्लॉगर veerubhai ने कहा…
जवाब देंहटाएंडॉ .अनवर ज़माल साहब कवि वृन्द कह गए हैं :
उत्तम विद्या लीजिये ,जदपि नीच पे होय ,
परो अपावन ठौर में ,कंचन तजत न कोय .
आप कोई अच्छी बात बताएँगे उसे भी मान लेंगें .हम सर्व -समावेशी हैं ,सर्व -ग्राही संस्कृति की वारिश हैं .
ब्लॉगर DR. ANWER JAMAL ने कहा…अंग्रेज़ों ने पता लगाया कि रेड मीट नुक्सान दे रहा है और वीरू भाई को फ़ौरन यक़ीन आ गया कि जब अंग्रेज़ों ने तय कर लिया है तो ज़रूर नुक्सान देता होगा।
बंगाल (अब पश्चिमी बंगाल )में घर घर छोटे छोटे तालाब हैं घर दुआरे के पिछवाड़े जहां मछली पालन होता है चावल मच्छी बंगालियों का प्रिय आहार है .मछली को जल तोरई कहा जाता है .क्योंकि इसे वैसे ही खाया जाता है जैसे जलयुक्त तोरई को . लेकिन जल तोरई कहने से मछली तोरई नहीं हो जाती है .मछली मछली है ,वाईट मीट है .
जवाब देंहटाएंदूध को जीववैज्ञानिक दृष्टि से पशु उत्पाद के अंतर्गत ही लिया जाता है .महात्मा गांधी बकरी का दूध पीते थे उसके लो फेट होने की वजह से .तमाम पशु आहार कोलेस्ट्रोल बढातें हैं .गैर पशु उत्पाद ही सर्वोत्तम आहार हैं दिल के लिए दिमाग के लिए .
चोटी के हृद विज्ञानी बिमल छाजेड साहब शाकाहार आन्दोलन को सारी दुनिया में ले जा रहें हैं .आप जीरो फेट के समर्थक हैं .मछली के बारहा हाइप किये जा चुके ओमेगा थ्री वसीय अम्लों को भी अन- उपयुक्त बतलातें हैं वैज्ञानिक आधार पर .पढ़ें उनकी किताब 'शाकाहार '.
यह टिपण्णी निरामिष शाकाहार पहेली में डाली है .आज ही पढ़ी आपकी यह बहु उपयोगी विचार परक पोस्ट .
bahut achchha likh likhaa aapne ... aabhaar
जवाब देंहटाएंसार्थक,सारगर्भित ...सटीक बात ....एक सोच दे रही है ...!
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी लगी ....
शुभकामनायें ...!
सुज्ञ भाई शाकाहार पर आपने अद्यतन विज्ञान सम्मत जानकारी और तर्क को उसकी तार्किक परिणति तक लेजाकर कई को राह दिखा दी .कुतर्क या तर्क के लिए तर्क आदमी को कहीं नहीं लेजाता .आपने इस पोस्ट को अब संघनित बना दिया .आपका तहे दिल से शुक्रिया .
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति| नवसंवत्सर २०६९ की हार्दिक शुभकामनाएँ|
जवाब देंहटाएंअनमोल वचन .
जवाब देंहटाएंjust awesome...poornatah sahmat
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