पांचों विकारों में से क्रोध ही एक ऐसा विकार है……
जिसका दुष्प्रभाव क्रोध करने वाले और जिस पर क्रोध किया जा रहा है उभय पक्षों पर पड़ता है
इसके अलावा क्रोध सार्वजनिक रूप से दिखाई भी देता है। अर्थात उस क्रोध की प्रक्रिया को उन दोनों के अलावा अन्य लोगो द्वारा भी देखा जाता है। साथ ही क्रोध के दूसरे लोगों में संक्रमित होने की सम्भावनाएँ प्रबल होती है।
- क्रोध आने से लेकर इसकी समाप्ति तक इसको चार भागों में बांटा जा सकता है-
1 -क्रोध उत्पन्न होने का कारण ।
मामूली सा अहं, ईष्या, या भय। (कभी-कभी तो बहुत ही छोटा कारण होता है)
2 -क्रोध आने पर उसका रूप।
अहित करना। (स्वयं का, किसी दूसरे का और कभी निर्जीव चीजो को तोड़-फोड़ कर नुक्सान करता है)
3 -क्रोध के बाद उसके परिणाम
पश्चाताप। ( क्रोध हमेशा पछतावे पर ख़त्म होता है)
4 -क्रोध के परिणाम के बाद उसका निवारण
क्षमा। (जो कि हमेशा समझदार लोगो द्वारा किया जाता है)
बात-बेबात क्रोध करने वालों से लोग प्रायः दूरी बना लेते है। क्रोध करने वाले कभी भी दूसरों के साथ न्याय नहीं कर सकते।
क्रोध वह आग है जो अपने निर्माता को पहले जला देती है।
विचार करें, क्या चाहते है आप? अपना व दूसरों का अहित या आनन्द अवस्था?
जब आपका अहं स्वयं को स्वाभिमानी कहकर करवट बदलने लगे, सावधान होकर मौन मंथन स्वीकार कर लेना श्रेयस्कर हो सकता है। साधारणतया मौन को भयजनित प्रतिक्रिया कहकर कमजोरी समझा जाता है पर सच्चाई यह है कि उस समय मौन धारण कर पाना वीरों के लिए भी आसान नहीं होता। वस्तुतः मौन के लिए विवेक को सुदृढ़ करना होता है और इसके लिए उच्चतम साहस चाहिए। क्रोध उदय के संकेत मिलते ही व्यक्ति जब मौन द्वारा अनावश्यक अहंकार पर विवेक पूर्वक सोच लेता है तो बुरे विचार, कटु वाणी और बुरे भावों के सही पहलू जानने, समझने, विचारने और हल करने का अवसर भी मिल जाता है।जो निश्चित ही क्रोध, ईर्ष्या और भय को दूर करने में सहायक सिद्ध होता है। क्रोध के उस क्षण में स्वानुशासित विवेक और आत्मावलोकन के लिए मौन हो जाना क्रोध मुक्ति का श्रेष्ठ उपाय है।
दृष्टव्य सूत्र:-
बर्ग-वार्ता- क्रोध पाप का मूल है ...
सुज्ञ: क्षमा-सूत्र
अक्षरश: सही कहा है आपने...सार्थकता लिए सटीक प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंसार्थक आलेख्।
जवाब देंहटाएंसार्थक एवं ज्ञानवर्धक आलेख
जवाब देंहटाएंआभार
बस
जवाब देंहटाएंकभी कभी तो
सचमुच मुश्किल होती है
जब व्यर्थ लांछित किया जाता है ।।
beautiful post
जवाब देंहटाएंसार्थक और प्रेरणादायक आलेख ... धन्यवाद ...
जवाब देंहटाएंआपके विचार परिपक्व आधार देते हैं ...
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर और सुव्यवस्थित विचार
जवाब देंहटाएंजीवन के लिये अनिवार्य सीख.........
जवाब देंहटाएंक्रोध कभी कभी तो अकल्पनीय हानि कर देता है.
जवाब देंहटाएंसच है विवेकपूर्ण मौन ही उचित है ऐसी परिस्थितियों में
जवाब देंहटाएंजो स्वानुशासित विवेकी और आत्मावलोकी होगा,उसके क्रोधित होने की संभावना ही तभी होगी जब उससे किसी का कल्याण होता हो। श्वास-नियंत्रण अथवा ध्यान ही उपाय है।
जवाब देंहटाएंसुन्दर , सार्थक वचन मनन योग्य ..बहुत सुन्दर..
जवाब देंहटाएंकल 28/03/2012 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.
जवाब देंहटाएंआपके सुझावों का स्वागत है .धन्यवाद!
... मधुर- मधुर मेरे दीपक जल ...
उत्तम विचार रक्खा है .. पर क्रोध से निजात पाना बहुत ही मुश्किल है ... साधना पढता है इसे ...
जवाब देंहटाएंसदा ही इससे बचने का प्रयास करना चाहिये।
जवाब देंहटाएंबड़े-बड़े वीरों के लिये भी दुष्कर है क्रोध पर विजय पाना।
जवाब देंहटाएंबहुत सार्थक बात कही....
जवाब देंहटाएंजिसने क्रोध पर नियंत्रण किया वो तो परमात्मा को पा लेता है....मगर बड़ा जटिल कार्य है ये..
सादर.
@ स्वानुशासित विवेक और आत्मावलोकन के लिए मौन हो जाना क्रोध मुक्ति का श्रेष्ठ उपाय है।
जवाब देंहटाएंसुन्दर आलेख, उपयोगी सुझाव!
सटीक बात ...पर नियंत्रण ही तो नहीं होता
जवाब देंहटाएंअत्यंत सार्थक प्रेरक प्रस्तुति....
जवाब देंहटाएंसादर।
आत्मावलोकन के लिए मौन हो जाना क्रोध मुक्ति का श्रेष्ठ उपाय है।
जवाब देंहटाएंवाह बहुत बढ़िया आलेख ...!!
हंस राज जी ,
जवाब देंहटाएंसुज्ञ !आपके और दराल साहब जैसे जिसके स्नेही हों उसे जीवन में और क्या चाहिए .मैं तो ब्लोगियों को एक परिवार सरीखा ही लेता हू .बहर -सूरत यह काम आज कर लिया जाएगा जिस ओर आपने और डॉ .दराल साहब ने मुझे फोन करके कल रात मेरे बेंगलुरु से मुंबई पहुँचते ही आगाह कर दिया था .स्वयं दराल साहब को पिट्सबर्ग से अनुराग जी ने खबर दी थी .
शुक्रिया आपका .नेहा एवं आदर से .
वीरुभाई ,
4C,ANURADHA,NOFRA,COLABA,MUMBAI-400-005
बेहतरीन और अधुनातन प्रोद्योगिकी से वाकिफ करवाने के लिए आपका शुक्रिया .
जवाब देंहटाएंnice
जवाब देंहटाएंneeta