6 जनवरी 2012

निरामिष पर शाकाहार पहेली

निरामिष के सभी पाठकों व हितैषियों को नववर्ष 2012 की शुभकामनायें! पता ही नहीं चला कि आपसे बात करते-करते कब एक वर्ष बीत गया। शाकाहार, करुणा, और जीवदया मे आपकी रुचि के कारण ही इस अल्पकाल में निरामिष ब्लॉग ने इतनी प्रगति की। एक वर्ष के अंतराल में ही हमारे नियमित पाठकों की संख्या हमारे अनुमान से कहीं अधिक हो गयी है और लगातार बढती जा रही है। इस ब्लॉग पर हम शाकाहार के सभी पक्षों को वैज्ञानिक, स्वास्थ सम्बन्धी, धार्मिक, मानवीय विश्लेषण करके तथ्यों के प्रकाश में सामने रखते हैं ताकि ज्ञानी पाठक अपने विवेक का प्रयोग करके शाकाहार का निष्पाप मार्ग चुनकर संतुष्ट हों।

हमारे पाठक ब्लॉगर श्री सतीश सक्सेना जी, डॉ रूपचन्द शास्त्री जी, राकेश कुमार जी, रेखा जी, वाणी गीत जी, मदन शर्मा जी, तरूण भारतीय जी, सवाईसिंह जी, पटाली द विलेज, संदीप पंवार जी, कुमार राधारमण जी का प्रोत्साहन के लिए आभार व्यक्त करते है।

हमारे सुदृढ़ स्तम्भ, विशेषकर सर्वश्री विरेन्द्र सिंह चौहान, गौरव अग्रवाल, डॉ मोनिका शर्मा, शिल्पा मेहता, आलोक मोहन, प्रश्नवादी  जैसे समर्थकों का विशेषरूप से आभार व्यक्त करना चाहते हैं जिन्होंने लेखकमण्डल से बाहर रहते हुए भी हमें भरपूर समर्थन दिया है। हमारे एक जोशीले पाठक ने निरामिष ब्लॉग के सामने शाकाहार के विरोध में कई भ्रांतियाँ और चुनौतियाँ रखीं। डॉ. अनवर जमाल द्वारा पोषण, शाकाहार, और भारतीय संस्कृति और परम्पराओं के सम्बन्ध में प्रस्तुत प्रश्नों ने हमें प्रचलित बहुत सी भ्रांतियों को दूर करने का अवसर प्रदान किया। मांसाहार की बुराइयों को उद्घाटित करने और उनके मन में पल रहे भ्रम के बारे में जानने के कारण हमें शाकाहार सम्बन्धी विषयों की वैज्ञानिक और तथ्यात्मक जानकारी प्रस्तुत करने में अपनी प्राथमिकतायें चुनने में आसानी हुई। आशा है कि वे हमें भविष्य में भी झूठे प्रचार की कलई खोलने के अवसर इसी प्रकार प्रदान करते रहेंगे।

पहेली की ओर आगे बढने से पहले हम अभिनन्दन करना चाहते हैं उन सभी महानुभावों का जिन्होने गतवर्ष शाकाहार अपनाकर हमारे प्रयास को बल दिया:
* दीप पांडेय
* इम्तियाज़ हुसैन
* कुमार राधारमण
* शिल्पा मेहता


अपनी पहली वर्षगांठ के अवसर पर आज हम आपका आभार व्यक्त करना चाहते हैं, एक छोटे से आयोजन के साथ। आइये, हल करते हैं आज की निरामिष पहेली अपने निराले शाकाहारी, सात्विक अन्दाज़ में। केवल कुछ सरल प्रश्न और बहुत से पुरस्कार। हमारा प्रयास है कि इस प्रतियोगिता में सम्मिलित प्रश्नों के उत्तर या उनके संकेत आपको निरामिष ब्लॉग की पिछली प्रविष्टियों व टिप्पणियों में मिल जायें।

20 टिप्‍पणियां:

  1. पहली वर्षगांठ के अवसर पर
    हार्दिक शुभकामनाएँ,

    सन 1998 में रामपुर में एक संस्कृत संभाषण वर्ग का आयोजन किया गया था। उसमें आचार्य गजेंद्र कुमार पंडा जी तशरीफ़ लाए थे। वह तब तक 6 गोल्ड मेडल पा चुके थे और एक प्रसिद्ध यूनिवर्सिटी में प्रोफ़ेसर थे। वेदांत में उन्होंने पी. एचडी. की थी। रामपुर में उनके रहने का इंतेज़ाम जमाअते इस्लामी के ज़िम्मेदार डा. इब्ने फ़रीद साहब के घर था और उनके खाने का इंतेज़ाम सैयद अब्दुल्लाह तारिक़ साहब के घर। उन्हें रामपुर आने से बहुत डराया गया था कि वहां जाओगे तो मुसलमान आपको मार देंगे लेकिन फिर भी वह आ गए थे।
    हम उनसे मिलने रामपुर गए और फिर उनकी प्रतिभा देखी तो हमने भी उन्हें अपने शहर में बुलाया। उनके साथ रामपुर से सैयद अब्दुल्लाह तारिक़ साहब भी तशरीफ़ लाए थे। पहले दिन उनका हम सभी ने बड़ी गर्मजोशी से स्वागत किया।

    यह फ़ोटो उसी पहले दिन का है। फ़ोटो के पीछे 2 जून 1998 लिखा है।
    http://aryabhojan.blogspot.com/2012/01/vegetarianism.html

    इस वर्ग का आयोजन हमने जैन इंटर कॉलिज में किया था लेकिन ताज्जुब की बात है कि सीखने वालों में हिंदू भाई केवल 3 थे। इसमें मुस्लिम लड़कियों ने भी बड़ी तादाद में हिस्सा लिया था और लड़कों में भी ज़्यादा मदरसे के तालिब इल्म थे। इन सबने ही आचार्य श्री पंडा जी को जो आदर सम्मान दिया, उससे पंडा जी बहुत अभिभूत हुए और हक़ीक़त यह है कि पंडा जी के रूप में हमने भी एक ऐसे इंसान को देखा जो बिल्कुल बच्चों की तरह मासूम है। ज्ञान, निश्छलता और सादगी से भरे पूरे आचार्य पंडा जी से मिलना अपने आप में एक आनंद देता है। ‘हास-परिहास‘ का सेंस भी उनमें ग़ज़ब का है।
    हिंदी और अंग्रेज़ी में एक वचन और बहुवचन ही होता है जबकि संस्कृत में द्विवचन भी होता है।
    उन्होंने अपने कोर्स को ऐसे डिज़ायन किया है कि उसमें से द्विवचन को हटा दिया है ताकि शुरू में सीखने वालों को आसानी हो सके। उनकी क्लास में हंसी के ठहाके छूटते रहते हैं और इसी तरह हंसी मज़ाक़ के दौरान मात्र 10 घंटों में ही वह आदमी को संस्कृत बोलने के लायक़ बना देते हैं। दसवें दिन वर्ग में सीखने वाले लड़के लड़कियों ने संस्कृत में भाषण देकर पूरे शहर को चौंका दिया था।
    शहर भर के हिंदू मुस्लिम वर्ग का सहयोग इस कार्यक्रम को मिला और सभी को एक अच्छा संदेश मिला।

    उड़ीसा हो या जापान, मछली को शाकाहार में ही गिना जाता है Vegetarianism

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  2. भाई सुज्ञ द्वारा बनाया यह साफ सुथरा ब्लॉग , हिंदी ब्लॉग जगत में मोती समान है...
    मार्गदर्शन देते रहें !
    सादर शुभकामनायें !

    जवाब देंहटाएं
  3. बहुत-बहुत शुभकामनाएं सुज्ञ भाई!

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  4. नूतन जी, अनवर साहब, सतीश जी, शिल्पा बहन एवं शाहनवाज़ साहब,

    आपकी शुभकामनाओं के लिए अनंत आभार, आपकी दुआएं हमारे प्रयासो का संबल है।

    जवाब देंहटाएं
  5. इस ब्‍लॉग की प्रथम वर्षगांठ पर बहुत-बहुत बधाई ... यह एक सार्थक व सराहनीय कार्य है ..आभार सहित शुभकामनाएं ।

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  6. घोर विकृत मानसिकता से ग्रसित व्यक्ति अपनी विकृतियों के कारण या तो तथ्यों को समग्र यथार्थता से समझ नहीं पातें है , या अपनी विकृतियों को ना छोड़ पाने की लाचारी के कारण दूसरों को भी अपनी विकृतियों की झोंक में ले आना चाहतें हैं.
    जड़ बुद्धि के कारण शब्दों का उचित स्थान पर प्रयोग ना कर पाने की लाचारी के कारण कभी इन भाप्डों को हिन्दू ग्रंथों में मांसाहार दिखाई देता है तो कभी आदिवाणी वेदों में गौहत्या की गूंज .
    भारत में भोजन "निरामिष" और "सामिष" के रूप में वर्गीकृत है जिन्हें लोक भाषा में क्रमशः शाकाहार और मांसाहार के रूप में जाना/बोला जाता है .
    अर्थात भारतीय संस्कृति में भोजन की रेखा मांस रहित और मांस सहित , मांस को लक्षित किया गया है सारा व्यवहार इसे लेकर समझाया गया है की कहीं मांस ना हो .
    जबकि इतर संस्कृतियों विशेषकर आंग्ल संस्कृति में "वेजिटेरियन " और "नॉन-वेजिटेरियन " शब्द प्रयुक्त है . जो किसी वनस्पति/शाक से सम्बंधित आहार है वह "वेज" कहलाता है. इस भाषा नियम के हिसाब से हर वह वस्तु "नॉन-वेज" है जो वनस्पति/शाक नहीं है.
    इसी तरह हर संस्कृति के आहार सम्बन्धी क्रम/व्यतिक्रम कालक्रम से निर्धारित हुयें है. अब इसी लिए तो कहतें है की थोथा ज्ञानाभिमानी वास्तव में निरक्षरभट्टाचार्य से भी गया बीता होता है :)
    हम यहाँ भारतीय संस्कृति के अनुकूल "निरामिष" के समर्थन की बात करतें है और कुछ महाभट "जापान" का "अपान" यहाँ फैलाना चाह रहें है .
    रही बात बंगाली ब्राह्मणों की तो कुछ अध्यनशील बनिए पहले कुछ कुछ फिर सबकुछ समझ में आजायेगा की यह "मच्छी-झोल" का झोल कैसे इतना विस्तार ले पाया.
    बंगाल विगत सैकड़ों वर्षों से वाममार्गी शक्ति उपासना का गढ़ है जिसमें वाम साधना के विकृत आचार-विचारों का सम्पादन हर ओर व्याप्त था क्योंकि हर वाशिंदा वाममार्गी शक्ति-उपासक बन चुका था. तब ऐसे घटाटोप में जब पुनः मूल संस्कारों का उदय होना प्रारंभ हुआ और वैष्णवता के विचार के रूप में संस्कृति पुनः पल्लवित होने लगी तो सारी विकृतियाँ धीरे धीरे दूर हो गई. कुछ अवशेष अभी भी वर्तमान है, जो की तत्सामयिक घोरतम अनाचार के सामने नगण्य प्रतीत होता है जो समय पाकर स्वमेव हट जाएगा.

    दक्षिण के वाशिंदों में भी यह अनाचार कुछ इन्ही कारणों और अधिकांशतया मलेच्छों के दीर्घ संपर्क के संक्रमण से फैले है. लेकिन फिर भी "सामिष" पर "निरामिष" उत्कृष्टता से हर बुद्धिमान प्राणी सहमत है चाहे वह खुद सामिषभोजी हो या निरामिष भोजी.

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  7. डॉ अनवर जमाल साहब,

    बहुत ही अच्छा है, आप जी भरकर मांसाहार और जीवहिंसा का प्रचार किजिए। हमें भी कारणों की तलाश है। आवेश, आक्रोश, हिंसा, और क्रूर मनोवृति वाले इस मानव व्यवहार के लिए मांसाहार कितना जवाबदार है, हमें भी प्रमाण चाहिए।

    और यह भी हमारी खोज का विषय है कि मांस मदिरा और वासना का त्रिपुटी संगम क्यों है? क्यों अपराधी अक्सर इम तीनों का उपयोग करते दिखाई देते है।

    "द्युतं च मांसं च मदिरांच वेश्या"

    लेकिन जडी-बुटी कभी मांसाहार नहीं होती।

    अधिसंख्य शाकाहारी पदार्थों में प्रचूर प्रटीन पाया जाता है, सोयाबीन मूँगफली और अन्य दालें अनाज आदि

    आपको ही निरामिष पर यह प्रत्युत्तर दिया गया था…………
    कुतर्कियों के सिर पर चढा प्रोटीन का भूत ( माँसाहारियों द्वारा फैलाया जा रहा अन्धविश्वास)

    और यह भी देखें

    पोषणयुक्त पूर्ण संतुलित शाकाहार
    कितना खाओगे कच्चा प्रोटीन।

    @एक क़साई से हमारे दोस्त ने पूछा कि……

    कसाई तो हिंसा का ही महिमामण्ड़न करेगा न !

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  8. @ भाई सुज्ञ जी ! हम क्यों घट रहे हैं और अंग्रेज़ क्यों बढ़ रहे हैं, इसका कारण भी खुली आंखों देखा जा सकता है। हमारे इस नुस्ख़े का लाभ भी विदेशी ही उठा रहे हैं।
    जब हमने आयुर्वेद के इन नुस्ख़ों को तैयार करने के लिए नेट पर छानबीन की तो यह हिंदी साहित्य से कुछ ख़ास मदद नहीं मिल पाई जबकि अंग्रेज़ी साहित्य में इस पर इतनी सामग्री मिल गई कि छांटना मुश्किल हो गया। उसमें से हमने आपके लिए इसे चुना है ताकि आप आसानी से महान पौरूष पाकर अपना वैवाहिक जीवन सफल बना सकें।

    यह समय है एकता का। हम सबको मिलकर अपनी प्राचीन विरासत की रक्षा करनी चाहिए। हम संतुलित आहार का प्रचार कर रहे हैं और एक सबल राष्ट्र के निर्माण के लिए संतुलित आहार की आवश्यकता से आज इंकार नहीं किया जा सकता। हमारे पूर्वजों के शोध भी यही बताते हैं।

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  9. डॉ अनवर जमाल साहब,

    मेरा प्रत्युत्तर देना जरूरी है और उससे भी अधिक जरूरी है मेरा शालीनता बनाए रखना। पर आपकी बातें…!!!…

    @ हम क्यों घट रहे हैं और अंग्रेज़ क्यों बढ़ रहे हैं।इसका कारण भी खुली आंखों देखा जा सकता है।

    -- आपकी रुचि है आप करिए अंग्रेजो से प्रतिस्पृद्धा, बढाईए फौज, पर फायदा क्या है आपको भी पता नहीं। जबकि वास्तविकता तो यह है कि अंग्रेजो को जनसंख्या वृद्धि में कोई रूचि नहीं

    आप इसतरह की नेट छानबीन करते रहते है, आपको मुबारक,"एक मर्द 100 औरतों को चरम सुख की प्राप्ति करा सकता है।" यह आपने पाया नुस्खा पुरूष-वेश्याओं के योग्य ही है। सद्ग्रहस्थ के लिए नहीं।

    यह भाषा मैने कहीं सुनी हुई है, हां याद आया मैले कुचेले लुंगी पहन पर सड़क किनारे तरह तरह की शिशीयों में गंदला पदार्थ रखे,आने जाने वाले लड़कों को अलग बुलाकर कहा करते थे।

    हमारा वैवाहिक जीवन वासना पर सफल नहीं बनता,यह बात हम अपने संस्कारों से युवाअवस्था में ही जान चुके थे। इसलिए पहले ही अपना वैवाहिक जीवन, प्रेम और जिम्मेदारी इन दो गुणों से सफल बना भी चुके है।

    लाख मांसाहार का प्रचार करो, स्वस्थ रहने के लिए शाकाहार की शरण लेनी ही पडेगी। संतुलन की तो बात ही छोडो, अकेले मांसाहार करके व्यक्ति जिन्दा ही नही रह सकता। बिमारीयों का घर है मांसाहार, उन्हें दूर रखने के लिए फाईबर वा्ले एकमात्र शाकाहार की गुलामी करनी ही होगी। इसीलिए प्राचीन विरासत में शाकाहार को सात्विक बताया गया है। और उस विरासत में रोगोपचार शाकाहारी जडी-बुटियों से ही सम्भव है। हिंसा करने के लाख बहाने करो, दुनिया को अब अहिंसक और शान्त बनने में ही रूचि है, सभ्य मानव जान गया है, अहिसक विकास में ही उसका अस्तित्व है।

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  10. @ भाई सुज्ञ जी ! पहले ठंडे दिमाग़ से हमारी बात समझ ली होती।
    ‘अंग्रेज़ों के बढ़ने और हमारे घटने‘ से मतलब उनका ज्ञान में बढ़ना और हमारा घटना है।
    भारत में ऐसे बहुत से सदाचारी महापुरूष हुए हैं जिनकी एक से ज़्यादा पत्नियां थीं और सैकड़ों पत्नियां रखने वाले भी हुए हैं।
    हमारे आयुर्वेद में सबके कल्याण के लिए प्रयास किया गया है। जिसकी जैसी ज़रूरत हो, वह आयुर्वेद से अपनी ज़रूरत पूरी कर सकता है। दुख की बात यह है कि आयुर्वेद पर हमें जैसे ध्यान देना चाहिए, हम नहीं दे पा रहे हैं और अंग्रेज़ हम से बढ़कर इस पर रिसर्च कर रहे हैं।
    गंदी शीशियां बेचने वालों की बात आपने सुनी होंगी। वह आप ज़्यादा जानते होंगे। हम तो चरक और सुश्रुत की बात कर रहे हैं। इनके नुस्ख़ों पर आपको कोई आपत्ति या शंका हो तो आप बताएं ?

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  11. डॉ अनवर जमाल साहब,

    @ हम क्यों घट रहे हैं और अंग्रेज़ क्यों बढ़ रहे हैं,

    किस विषय पर कहा गया है, वह तो पाठक उपर के कमेंट पढ़ कर स्वयं जान लेंगे, आप अपने दिमाग को अनावश्यक परेशान न करें।
    आप एक खाश सोच के प्रतिनिधि है, कम से कम उस विचारधारा की इज्जत का खयाल रखें और इस तरह की बुद्धि का प्रदर्शन न करें कि सामुहिक रूप से उनका गलत सन्देश जाय।

    यह निर्विवाद है कि आपसे सार्थक चर्चा-विचारणा सम्भव ही नहीं, और न इस तरह भ्रम निराकरण होता है। प्रतितर्क तो विचारणीय ही नहीं होते है,ऐसी बहस निर्थक है। अतः आगे आपसे कोई चर्चा न की जाएगी। यहाँ अपने कमेंट न छोडें, उन्हें आगे से प्रकाशित नहीं किया जाएगा, न कोई प्रत्युत्तर दिया जाएगा।

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  12. monitor bhai......aapko kotishah: abhar cha subhkamnayen.......

    vaicharik parivartan ke sanket milne suru ho chuke......umeed hai shigra hi byvharik parivartan bhi hoga.......

    is tarah ke samvad me 'guruji' ke taraf nigahen rahti hain.....jo aaj-kal
    bahut kam nazar aate hain.....

    pranam.

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  13. सदा जी, अमित जी, राहुल जी और मित्र संजय झा जी,

    आपका इस प्रोत्साहन और शुभाकमाओं के लिए अनंत आभार।

    संजय जी,

    गुरू जी तो "मधुर कसक" में खोए है :) सुनते ही नहीं (टिप्पणी बॉक्स बंद है)

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  14. राम राम जी,

    शुभकामनाये... और........ आपने ही बहुत कुछ कह दिया है,अब कुछ कहने की आवश्यकता अभी तो नहीं है...
    कुँवर जी,

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  15. एक सार्थक व सराहनीय कार्य है|मकर संक्रांति की हार्दिक शुभकामनाएँ|

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  16. सुज्ञ भाई शाकाहार पर आपने अद्यतन विज्ञान सम्मत जानकारी और तर्क को उसकी तार्किक परिणति तक लेजाकर कई को राह दिखा दी .कुतर्क या तर्क के लिए तर्क आदमी को कहीं नहीं लेजाता .आपने इस पोस्ट को अब संघनित बना दिया .आपका तहे दिल से शुक्रिया .

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  17. सौ -सौ औरतों के साथ सोने वालों का 'HIV' परिक्षण करवाना पडेगा आज .खुला सेक्स निरापद नहीं है आज उन .महिलाओं का सर्विक्स परिक्षण भी होना चाहिए जिनके मल्तिपिल पार्टनर्स हैं .अनवर ज़माल वाला ट्रेफिक दो तरफ़ा है फॉर लेन वाला है . किसका कितना मजबूत इम्यून सिस्टम है सब साफ़ हो जाएगा .

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