2 सितंबर 2010

क्षमा-सूत्र

 
  • प्रतिशोध लेने का आनंद मात्र एक दिन का होता है, जबकि क्षमा करने का गौरव सदा बना रहता है।
  • सच्ची क्षमा समस्त ग्रंथियों को विदीर्ण करने का सामर्थ्य रखती है।
  • हर परिस्थिति में स्वयं को संयोजित संतुलित रखना भी क्षमा ही है।
  • क्षमा देने व क्षमा प्राप्त करने का सामर्थ्य उसी में है जो आत्म निरिक्षण कर सकता है
  • क्षमापना आत्म शुद्धि का प्रवाहमान अनुष्ठान है, सौम्यता, विनयसरलता, नम्रता शुद्ध आत्म में स्थापित होती है।

16 टिप्‍पणियां:

  1. क्षमा करने के बाद जिसे क्षमा दिया गया हो वह व्यक्ति फिर से आपके साथ वैसा की अपराध करे तो क्या करना चाहिए ,आज देश के 99 % मंत्री इस देश की जनता के साथ ऐसा ही अपराध कर रहें हैं ...जनता पस्त हो चुकी है इनके अत्याचार से ...

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    1. क्षमा दूसरों के लिए नहीं स्वयं के लिए है। या तो आप क्षमा न करके जी को जलाते रहिये या फिर क्षमा करके सहज हो जाइये। वर्ना ये संसार तो ऐसे ही चलता रहेगा।

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    2. क्षमा दूसरों के लिए नहीं स्वयं के लिए है। या तो आप क्षमा न करके जी को जलाते रहिये या फिर क्षमा करके सहज हो जाइये। वर्ना ये संसार तो ऐसे ही चलता रहेगा।

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  2. दुसरे की गलती पर क्षमा करना दुनिया का सबसे मुश्किल कार्य है... लेकिन अध्यात्म की बुनियादी उसूलों में से एक है. इस गुण को आत्मसात किये बिना उस परमशक्ति के पाना नामुमकिन है.

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  3. शायद इसीलिए लोग क्षमा का दायित्व भगवान के मत्थे मढ़कर स्वयं मुक्त हो जातें है, इंसान के बस का लगता भी नहीं ये हुनर!
    सुन्दर संकलन ...

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  4. एक से एक!! प्रेरक!!! पोस्ट्स हैं आपके इस ब्लॉग पे ,आभार

    @सुज्ञ जी ,बड़े समय से मेरी एक जिज्ञासा बनी हुई है इस " सुज्ञ " शब्द के प्रति ,मुझे ये नाम काफी unique लगता है और आकर्षित करता है ,मैं इसका अर्थ जानना चाहता हूँ

    महक

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  5. मानुष को माया ,ये संसार अपनी तरफ बहुत तेजी से आकर्षित करता है ,,सब लोभ में फसते चले जाते है
    आदमी के मन को एक पल की भी आराम नही है जो सही गलत का फैसला केर सके
    स्वामी विवेकानंद ने कहा है ध्यान सबसे बड़ी चीज है इससे मन पर काबू पाया जा सकता है

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  6. prerak post.....kshamasilta sachmuch sabse badee udaarataa hai.

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  7. अच्छे विचारों को धरातल पर उतारना या स्वभाव में सम्मलित करना बहुत ही दुष्कर होता है, बरसों के जमे जमायें व्यवहार आसानी से नहिं उखड जाते।
    ज्ञान की बहूत बडी बडी बातें,सत्संग,प्रवचन कहकर अक्सर हम उडा देते है।
    लेकिन फ़िर भी अच्छे विचारों पर किया गया क्षणिक चिन्तन भी व्यर्थ नहिं जाता। सदाचरण को 'अच्छा' मानने की प्रवृति मानसिकता में बनी रहती है। देर से व शनै शनै ही सही हृदय की शुभ मानसिकता अंततः क्रियान्वन में उतरती ही है।
    इसी लिये दया के,करूणा के,अनुकंपा के और क्षमा के भावों को उचित जानना मानना व कहना आवश्यक है।
    पालन जब होगा तब होगा हृदय में इनका निवास जरूरी है।

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  8. Prerak lekh. Kshama karna sabse mushkil hota hai. kaee bar hum chup to laga jate hain par suchche dil se kshama nahee kar pate. yah shayad prayatn se hee sambhaw hai.

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  9. .

    वय, परिस्थिति एवं अनुभवों के आधार पर धीरे-धीरे ही क्षमाशीलता आ सकती है। हर व्यक्ति की परिस्थिति फरक होती है। पूर्व में स्थापित बुद्धि क्षमा का निर्णय नहीं ले सकती। घटना अथवा दुर्घटना से तदुत्पन्न बुद्धि ही निर्णय लेती है । व्यक्ति ज्यादातर परिस्थियों का गुलाम होता है। और परिस्थितियाँ मनुष्य को विवश कर देती हैं।

    विरले हैं वो लोग जो रज और तम से मुक्त हों। रज और तम से मुक्त मनुष्य सात्विक होता है, और वही व्यक्ति हर परिस्थिति में क्षमाशील हो सकता है। साधारण मनुष्य से ये अपेक्षा नहीं की जा सकती।

    किन्तु यदि मन में ठान लिया जाए, तो कुछ भी असंभव नहीं।
    .

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