पुराने समय की बात है एक सेठ नें न्याति-भोज का आयोजन किया। सभी गणमान्य और आमन्त्रित अतिथि आ चुके थे, रसोई तैयार हो रही थी इतने में सेठ नें देखा कि भोजन पंडाल में एक तरफ एक बिल्ली मरी पडी थी। सेठ नें सोचा यह बात सभी को पता चली तो कोई भोजन ही ग्रहण नहीं कर पाएगा। अब इस समय उसे बाहर फिकवाने की व्यवस्था करना भी सम्भव न था। अतः सेठ नें पास पडी कड़ाई उठा कर उस बिल्ली को ढ़क दिया। सेठ की इस प्रक्रिया को निकट खडे उनके पुत्र के अलावा किसी ने नहीं देखा। समारम्भ सफल रहा।
कालान्तर में सेठ स्वर्ग सिधारे, उन्ही के पुण्यार्थ उनके पुत्र ने मृत्यु भोज का आयोजन किया। जब सब तैयारियों के साथ भोजन तैयार हो गया तो वह युवक इधर उधर कुछ खोजने लगा। लोगों ने पूछा कि क्या खोज रहे हो? तो उस युवक नें कहा – बाकी सभी नेग तो पूरे हो गए है बस एक मरी हुई बिल्ली मिल जाय तो कड़ाई से ढक दूँ। लोगों ने कहा - यहाँ मरी बिल्ली का क्या काम? युवक नें कहा – मेरे पिताजी नें अमुक जीमनवार में मरी बिल्ली को कड़ाई से ढ़क रखा था। वह व्यवस्था हो जाय तो भोज समस्त रीति-नीति से सम्पन्न हो।
लोगों को बात समझ आ गई, उन्होंने कहा – 'तुम्हारे पिता तो समझदार थे उन्होने अवसर के अनुकूल जो उचित था किया पर तुम तो निरे बेवकूफ हो जो बिना सोचे समझे उसे दोहराना चाहते हो।'
कईं रूढियों और परम्पराओं का कुछ ऐसा ही है। बडों द्वारा परिस्थिति विशेष में समझदारी पूर्वक किए गए कार्यों को अगली पीढ़ी मूढ़ता से परम्परा के नाम निर्वाह करने लगती है और बिना सोचे समझे अविवेक पूर्वक प्रतीको का अंधानुकरण करने लग जाती है। मात्र इसलिए - “क्योंकि मेरे बाप-दादा ने ऐसा किया था” कुरितियाँ इसी प्रकार जन्म लेती है। कालन्तर से अंधानुकरण की मूर्खता ढ़कने के उद्देश्य से कारण और वैज्ञानिकता के कुतर्क गढ़े जाते है। फटे पर पैबंद की तरह, अन्ततः पैबंद स्वयं अपनी विचित्रता की कहानी कहते है।
@ बडों द्वारा परिस्थिति विशेष में समझदारी पूर्वक किए गए कार्यों को अगली पीढ़ी मूढ़ता से परम्परा के नाम निर्वाह करने लगती है..
जवाब देंहटाएंऔर यह युवक इसपर मनन करने का प्रयत्न भी नहीं करते हैं !समय स्थान और परिस्थितिय बदलने के कारण पूर्वजों के बनाये नियम अब समयोचित नहीं लगते तो इन्हें भी बदलने में संकोच कैसा ??
घर के आँगन में लगे हुए
कुछ वृक्ष बबूल देखते हो
हाथो उपजाए पूर्वजों ने ,
इनमे फलफूल का नाम नहीं
काटो बिन मायामोह लिए, इन काँटों से दुःख पाओगे
घर में जहरीले वृक्ष लिए क्यों लोग मानते दीवाली ?
अधिकाँश रूढियां ऐसे ही जन्म लेती हैं, समय के साथ इनका प्रभाव बढ़ भी सकता है और कम भी हो सकता है, निर्भर करता है चिंतन की स्वतंत्रता और मौलिकता पर| जो चीज समयानुकूल नहीं है, उसे मिटना ही है|
जवाब देंहटाएंसरल सी कथा के जरिये गहन संदेसा देती पोस्ट..
जवाब देंहटाएंआभार आपका.
अनु
समय और परिस्थितियों के अनुसार रीति रिवाज़ का पालन होना चाहिए ,अंधश्रद्धा के अनुसार नहीं ...
जवाब देंहटाएंसार्थक विचार !
बुद्धि और नक़ल का फर्क
जवाब देंहटाएंजो आप कहना चाहते है उससे बिल्कुल मेरी सहमती | किन्तु फिर वही बात दोहरा रही हूं जो कई बार किया है ये कौन तय करेगा की कौन सी रीति रिवाज , परम्पराए अच्छे है और कौन से बुरे, समय के साथ तो बहुत सी चीजे गलत लगने लगती है किन्तु एक पक्ष अपने नीजि फायदे को देखते हुए उसक समर्थन करता है दूसरा जिसे उससे परेशानी होती है उसका विरोध करता है फिर ये कैसे तय हो की क्या सही है और क्या गलत |
जवाब देंहटाएंप्रत्येक विचारक अपने अनुभव, ज्ञान, उपयोगिता एवं स्वविवेक पर निर्णय करेगा कि क्या उचित है क्या अनुचित।
हटाएं'नीजि फायदे' और 'व्यक्तिगत परेशानियाँ' अगर संज्ञान में उभर कर आ जाती है तो निर्णय और भी आसान हो जाता है।
समयानुसार परम्पराओं में बदलाव करना ज़रूरी है .... रोचक कथा
जवाब देंहटाएंसुन्दर आख्यान. मुझे एक कहानी याद आ गयी. एक ऊँट का गला सूजा हुआ था और तड़प रहा था. वैद्य को बुलाया गया. आसपास खरबूजों की फसल लगी हुई थी. वैद्य ने बात समझ ली और दो ईंट मंगवाए. एक ईंट गर्दन के नीचे रख दूसरे से ऊपर की तरफ प्रहार किया. गले में फंसा हुआ खरबूज फट ही पड़ा होगा. ऊँट स्वस्थ हो गया. यहाँ भी एक लड़का देख रहा था. आगे चलकर किसी बच्चे की गर्दन में सूजन आ गया. उस लड़के ने जो अब बड़ा हो चला था, वैद्य द्वारा ऊँट के लिए किये गए इलाज को दोहरा दिया. बच्चे की जय राम जी की हो गयी.
जवाब देंहटाएंबिना विचारे जो करे सो पीछे पछताए,,,,,
जवाब देंहटाएंपरिस्थियों अनुसार रूढ़िवादी परम्पराओं बदलाव में करना चाहिए.....
बहुत सुंदर प्रेरक प्रस्तुति,,,,,
RECENT POST...: राजनीति,तेरे रूप अनेक,...
बहुत ही गहन भाव लिये प्रेरणात्मक प्रस्तुति ...आभार
जवाब देंहटाएंसार्थक प्रस्तुति .आभार ऐसा हादसा कभी न हो
जवाब देंहटाएंरोचक प्रसंग....
जवाब देंहटाएंसादर।
@ मात्र इसलिए - “क्योंकि मेरे बाप-दादा ने ऐसा किया था” कुरितियाँ इसी प्रकार जन्म लेती है। कालन्तर से अंधानुकरण की मूर्खता ढ़कने के उद्देश्य से कारण और वैज्ञानिकता के कुतर्क गढ़े जाते है। फटे पर पैबंद की तरह, अन्ततः पैबंद स्वयं अपनी विचित्रता की कहानी कहते है।
जवाब देंहटाएं- सत्य वचन, रीति और कुरीति में अंतर तो करना ही पड़ेगा!
कुरीतियों के जाल में, जकड़े लोग तमाम।
जवाब देंहटाएंखोलो ज्ञानकपाट को, मेधा से लो काम।।
थोड़े में सीख बड़ी गहरी,
जवाब देंहटाएंसुन ले सागर और गिलहरी !!
nakal me bhi akl ki jarurat hai..
जवाब देंहटाएंसच कह रहे हैं आप, रूढ़ियाँ ऐसे ही निर्मित होती हैं..
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रेरक प्रस्तुति ..
जवाब देंहटाएंबचने का पूरा प्रयास रहता है लेकिन छूत की बीमारी की तरह कीटाणु आक्रमण कर ही देते हैं।
जवाब देंहटाएं