12 मार्च 2011

मैं इतना बुरा भी नहीं लग रहा हूँ

कोई पन्द्रह वर्ष पहले की बात है,हमने अपने मित्र मनोज मेहता के साथ तिरूपति दर्शनार्थ जाने की योजना बनाई। हम तीन दम्पति थे। तिरूपति में दर्शन वगैरह करके हम प्रसन्नचित थे। मैने व मनोज जी ने केश अर्पण करने का मन बनाया।

मन्दिर के सामने स्थित बडे से हॉल में हम दोनो नें मुंडन करवाया। मुंडन के बाद हम तिरूपति के बाज़ार घुमने लगे। मैने महसुस किया कि मनोज जी  कुछ उदास से है, वे अनमने से साथ चल रहे थे। जबकि मेरा मन प्रफुल्लित था। और वहाँ के वातावरण का आनंद ले रहा था। मनोज जी का मुड ठीक न देखकर, हम गाडी लेकर नीचे तलहटी में स्थित होटल में लौट आए।

मै थकान से वहीं सोफे पर पसर गया। किन्तु मैने देखा कि मनोज जी आते ही शीशे के सामने खडे हो गये, सर पे हाथ फेरते और स्वयं को निहारते हुए बोल पडे – ‘हंसराज जी मैं इतना बुरा भी नहीं लग रहा हूँ?’
उनके इस अप्रत्याशित प्रश्न से चौकते हुए मैने प्रतिप्रश्न किया- ‘किसने कहा आप मुंडन में बुरे लग रहे है?’
वे अपने मनोभावो से उपजे प्रश्न के कारण मौन रह गये। अब वे प्रसन्न थे। उनके प्रश्न से मुझे भी जिज्ञासा हुई और शीशे की तरफ लपका। मेरा मुँह लटक गया। सम गोलाई के अभाव में  मेरा मुंडन, खुबसूरत नहीं लग रहा था। अब प्रश्न की मेरी बारी थी- मनोज जी, मेरा मुंडन जँच नहीं रहा न?
मनोज जी नें सहज ही कहा- ‘हाँ, मैं आपको देखकर परेशान हुए जा रहा था। कि मैं आप जैसा ही लग रहा होऊंगा’
मैने पुछा- ‘अच्छा तो आप इसलिये उदास थे’ ?
मनोज जी- हाँ, लेकिन आप तो बडे खुश थे??
जब मुझे वास्तविकता समझ आई, मै खिलखिला कर हँस पडा- ‘मनोज जी, मैं आपका  टकला देखकर बडा खुश था कि मेरा भी मुंड शानदार ही दिखता होगा’। अब हताशा महसुस करने की, मेरी बारी थी।

तो,बुरा सा टकला लेकर भी सुन्दर टकले की भ्रांत धारणा में मैं खुश था। वहां मनोज जी शानदार टकला होते हुए भी बुरे टकले की भ्रांत धारणा से दुखी थे।

हम देर तक अपनी अपनी मूर्खता पर हँसते रहे। इसी बात पर हम दर्शनशास्त्र की गहराई में उतर गये। क्या सुख और दुख ऐसे ही आभासी है? क्या हम दूसरों को देखकर उदासीयां मोल लेते है। या दूसरो को देखकर आभासी खुशी में ही जी लेते है। 
ज्ञानी सही कहते है, सुख-दुख भ्रांतियां है। और असली सुख-दुख हमारे मन का विषय है।

58 टिप्‍पणियां:

  1. क्या अद्भुत अनुभूति हुई आपको वास्तव में ही तो मोह ही सुख दुःख का आभास कराता है .................... कामना के कारण ही हम मोह कि स्थिति को प्राप्त होतें है ................. काम मोह से उत्पन्न आसक्ति से मुक्त होकर ही तो सुख-दुःख रुपी संसार से निवृत्त हो परम पड़ को पा सकतें है

    निर्मानमोहा जितसङ्गदोषाअध्यात्मनित्या विनिवृत्तकामाः ।
    द्वन्द्वैर्विमुक्ताः सुखदुःखसञ्ज्ञैर्गच्छन्त्यमूढाः पदमव्ययं तत्‌ ॥
    जिनका मान और मोह नष्ट हो गया है, जिन्होंने आसक्ति रूप दोष को जीत लिया है, जिनकी परमात्मा के स्वरूप में नित्य स्थिति है और जिनकी कामनाएँ पूर्ण रूप से नष्ट हो गई हैं- वे सुख-दुःख नामक द्वन्द्वों से विमुक्त ज्ञानीजन उस अविनाशी परम पद को प्राप्त होते हैं

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  2. अमित जी,

    आभार,आपने मेरे आलेख को पूर्णता प्रदान कर दी। इस छोटी सी घटना ने मुझे यथार्थ सम्यग दृष्टि दी थी।

    आपने मान मोह और आसक्ति को कारणरूप उजागर किया। पुनः आभार

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  3. जीवन में कई ऐसे मौके आते हैं,जब छोटी सी घटना हमारी सोच को बदल देती है...शायद इसे ही अनुभव कहते है...

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  4. जीवन की कल्पना और वास्तविकता में बहुत अंतर होता है ....मनोज जी ने सही पहचाना और आपने भी ...वैसे जीवन की प्रत्येक परिस्थिति में हमें खुश रहना चाहिए ..इससे बड़ी बात क्या हो सकती है

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  5. बहुत सुन्दर दृष्टांत!
    सर्वम् दुःखम् सर्वम् क्षणिकम्।

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  6. सही कहा आपने.
    प्रसंग रोचक है. अमित की टिप्पणी ने पोस्ट का उन्नयन कर दिया.

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  7. रोचक प्रसंग के साथ गहन दर्शन का ज्ञान कराया ...

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  8. मित्र सुज्ञ जी,
    आपकी जहाँ भी टिप्पणियों में विचार पढ़ रहा हूँ. मुझे समापन भाषण सा लग रहा है. हरकीरत जी के ब्लॉग पर, बे के शर्मा जी ब्लॉग पर, जहाँ भी पढ़ा इतने सुलझे विचार बहुत कम पढ़ने को मिल पाते हैं. फिलहाल आज की पोस्ट को कल सुबह पढ़ने का सोचा है. इस पर बाद में टिप्पणी. एक कर्ज सा महसूस हो रहा था उसे चुकता करने का पहले सोचा ... सो कह रहा हूँ.

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  9. हँसी हँसी में कितने गहरे दर्शन की बात कही है आपने हंसराज जी!!

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  10. आम जीवन से जुड़ा प्रसंग पर खास जीवन दर्शन लिए...... बहुत सुंदर

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  11. यह अहसास मजेदार रहा यार ....शुभकामनायें आपको !

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  12. आप की बात से सहमत हे जी, हमे दुसरो पर हंसने से पहले अपने को भी देख लेना चाहिये, अतिस सुंदर विचार

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  13. प्रेरनादायी प्रसंग के साथ , उत्तम सन्देश ।

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  14. यदा-कदा अपने पर हंस लेना जरूरी होता है, मूर्खता पर हो या समझ पर.

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  15. आप हमेशा कोई-न-कोई किस्सा सुनाकर दैनिक तनावों का हरण करते रहते हैं. आपकी संगती... सच्ची मित्रता का आदर्श रूप है.

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  16. प्रेरक पोस्ट लग रही है यह तो
    क्या सचमुच सुख-दुख हमारा भ्रम ही होता है?

    प्रणाम

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  17. बिलकुल अन्तर सोहिल जी,

    जैसे हम अपने नीचे मुस्किल से गुजर-बसर करने वालो को देखते है, हम स्वयं को सुखी महसुस करते है। थोडी ही देर बाद जब हम हमसे अधिक शानो शौकत में जीने वालो को देखते है हमें लगता है सुख तो यह है जो हमें नशीब नहीं। दृष्टि के बदलते ही सुख-दुख के साधन बदल जाते है।
    अतः लगता है यह सुख तो भ्रम ही है,जिस सुख की तलाश में हम है वह यह सुख तो नहीं, सच्चा सुख और कुछ है अमिट सुख!!

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  18. छोटे से प्रसंग में जीवन का पूरा आधार समेट दिया आपने
    मन के हारे हार है ,मन के जीते जीत

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  19. आपके उद्धरण बड़े ही शानदार होते हैं. इस किस्से के जरिये आपने उदासी और प्रसन्नता की कहानी बयान कर दी..

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  20. जैसे हम अपने नीचे मुस्किल से गुजर-बसर करने वालो को देखते है, हम स्वयं को सुखी महसुस करते है। थोडी ही देर बाद जब हम हमसे अधिक शानो शौकत में जीने वालो को देखते है हमें लगता है सुख तो यह है जो हमें नशीब नहीं। दृष्टि के बदलते ही सुख-दुख के साधन बदल जाते है।
    अतः लगता है यह सुख तो भ्रम ही है,..

    जी ज्ञानी पुरुष अपने ज्ञान से इससे मुक्ति पा लेते हैं
    और हम जैसे सम्वेदनशील इससे आहत होते रहते हैं ....
    पर दोनों का जीवन में होना निहायत ही जरुरी है ....
    वर्ना जीवन रसहीन हो जायेगा ....

    मुंडन का उदाहरण मुस्कराहट ला गया .....

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  21. एक किस्‍से के जरिए आपने मानव मन का बखूबी चित्रण कर दिया।

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  22. रोचक आलेख...जीवन को प्रेरणा देने वाला....

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  23. वाकई...
    अपने साथ वालों के सुख-दुःख को देखकर ही अक्सर हम सभी जाने-अनजाने अपने सुख-दुःख का मापदण्ड बना लेते हैं ।

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  24. हंसी-हंसी में दर्शन का पाठ।

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  25. बातों ही बातों में गहरा दर्शन ... जीवन के सत्य समझा दिया अपने ...

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  26. रोचक प्रस्तुति। धन्यवाद|

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  27. आप की बात से सहमत हे, हमे दुसरो पर हंसने से पहले अपने को भी देख लेना चाहिये,सुंदर विचार!
    आपको, आपके परिवार को होली की अग्रिम शुभकामनाएं!!

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  28. सुज्ञ जी ,
    अमित शर्मा जी ने मेरे मन की बात कह दी है.सुख दुःख मन की तुलनात्मक अनुभूति है. जिसका कारण अज्ञान के कारण हमारा किसी भी व्यक्ति/वस्तु/प्रस्थिति को कोई मान देना ही है.इसीलिए कहा गया 'निर्मान +अमोहा '.यानि चिर स्थाई आनन्द रुपी परम पद प्राप्ति हेतु पहले हमे अपनी 'मान'देने की प्रक्रिया पर अंकुश लगाना है ,फिर मोह से अमोह की और यानि अपने में ज्ञान उत्पन्न करना है.
    इसका उदहारण मै माँसाहारी की इस गलत मान्यता (मान)से देना चाहूँगा कि वे प्रोटीन के नाम पर ,बलि/कुर्बानी के नाम पर माँसाहार की वकालत करते दीखते है.परन्तु जब वे इस प्रकार के गलत 'मान' को त्याग लेंगें और इस सम्बन्ध में आवाश्यक ज्ञान भी अर्जित कर लेंगें तो माँसाहार का सुख अवश्य त्याज्य मानने लगेंगे.यही 'मान'
    और 'मोह' सर्वत्र लागू हैं जिस कारण हम कभी सुखी कभी दुखी होते रहेतें है. इसके लिए मेरी पोस्ट 'मो को कहाँ ढूँढ़ते रे बंदे' का भी आप अवलोकन कर सकते हैं.

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  29. कई बार कोई छोटी सी घटना या विचार जीवन बदल देता है और कई बार बडी से बडी घटना के प्रति हम संवेदनहीन हो जाते हैं। विचित्र मन है। बहुत अच्छा संस्मरण। आपको सपरिवार होली की हार्दिक शुभकामनायें।

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  30. आपको एवं आपके परिवार को होली की हार्दिक शुभकामनायें!

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  31. होली की हार्दिक शुभकामनायें

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  32. Kathaa ko fir-fir padhaa, padhkar aanand aayaa. Patnii ne padhaa unko bhii hansii aa gayi.
    fir daarshnik charchaa kuchh chalii.
    yah hai aapkii post kaa prabhaav.
    Holi kii shubh kaamnaayen.

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  33. आप को होली की हार्दिक शुभकामनाएं । ठाकुरजी श्रीराधामुकुंदबिहारी आप के जीवन में अपनी कृपा का रंग हमेशा बरसाते रहें।

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  34. आपको सपरिवार होली की हार्दिक शुभकामनाएं

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  35. प्रिय बंधुवर सुज्ञ जी

    रंगारंग स्नेहसिक्त अभिवादन !

    कमाल का दर्शन !
    … और इतने सरस और रोचक सत्य निजि अनुभव के माध्यम से !
    मुस्कुराहट के बाद मनन की प्रक्रिया में हूं … … …

    साधु…

    आपको सपरिवार होली की हार्दिक बधाई !

    ♥ शुभकामनाएं ! मंगलकामनाएं !♥

    रंगदें हरी वसुंधरा , केशरिया आकाश !
    इन्द्रधनुषिया मन रंगें , होंठ रंगें मृदुहास !!


    - राजेन्द्र स्वर्णकार

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  36. आपको और समस्त परिवार को होली की हार्दिक बधाई और मंगल कामनाएँ ....

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  37. सबसे पहले आपको और समस्त परिवार को होली की हार्दिक बधाई और मंगल कामनाएँ ....

    {अपना मानना है हर दिन होली होती है और हर रात दीपावली होती है, इसलिए आज भी शुभकामनाएं दे सकते हैं }

    पर्सनल बात :
    लेट आने के लिए सॉरी :)

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  38. सच्ची मजा आ गया :) एक तो किसी बात को इस एंगल से देखना फिर इतनी आसानी से समझाना .. वाह जी वाह ... मान शांत हो गया

    अमित भाई का कमेन्ट सच में पोस्ट को पूर्ण बना रहा है

    कोई कुतर्की माने ना माने.... हमेशा यही बात सही सिद्द होती रहेगी की गीता सच में दुनिया सबसे बेस्ट ग्रन्थ है लाइफ के फंडे के लिए

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  39. एक बहुत मस्त फंडा है

    यहाँ पर....

    http://fizool.blogspot.com/2010/10/blog-post_9810.html

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  40. गीता सच में दुनिया सबसे बेस्ट ग्रन्थ है लाइफ के फंडे के लिए

    सहमत!!


    पर्सनल बात :

    विचार शून्य से सीधा सुज्ञ का रूख किया? आखिर लोगो से मनवा ही लोगे कि मैने आपको सुज्ञ पर खींचा…:))

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  41. मैं वहां अभी लिख कर आने ही वाला था की

    "मैं तो जा रहा हूँ सुज्ञ जी को परेशान करने"

    लेकिन मैंने सोचा काफी सदुपयोग कर दिया मैंने पाण्डेय जी के ब्लॉग का :)) अब रहने ही देता हूँ

    पर्सनल बात :
    ऊर्जा का उर्ध्वगमन , मन का सत विचारों की ओर जाना .... ये घटनाएं आम आदमी (वैज्ञानिक /आधुनिक आदि आदि ) को अजीब लग सकती है पर सत्संगी के लिए नोर्मल बात है . दुनिया में किस किस की चिंता करूँगा मैं .. चिंता से चतुराई घटे दुख से घटे शरीर :))

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  42. मैं तो जहां भी जाता हूँ ब्लोगिंग की जगह चेटिंग शुरू कर देता हूँ :))
    आपने तो कोई "दिव्य पालिसी" नहीं बनायी ना मेरे जैसों के लिए :))

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  43. चिंता से चतुराई घटे दुख से घटे शरीर

    पक्का फंडा!!

    बहुत सुना था, आज आपको प्रयोग करते देख भी लिया!!

    जवाब देंहटाएं
  44. मैं तो जहां भी जाता हूँ ब्लोगिंग की जगह चेटिंग शुरू कर देता हूँ :))
    आपने तो कोई "दिव्य पालिसी" नहीं बनायी ना मेरे जैसों के लिए :))

    आपने स्वयं के लिये रास्ता ही एक छोडा है।:)

    जवाब देंहटाएं
  45. @आपने स्वयं के लिये रास्ता ही एक छोडा है।:)

    .....या शायद रास्ता ही गलत पकड़ा है .... सत्य ढूँढने/ बताने का :))

    सभी के लिए
    शब्दार्थ :
    दिव्य पालिसी = ये विशेष पालिसी लेख (द्वारा फैलाई जा रही गैर जरूरी नेगेटिविटी ) को मेंटेन रखने के लिए इस्तेमाल की जाने वाली अदभुद पालिसी है :))

    [इस कमेन्ट को हटा कर आप आधुनिकता में योगदान कर सकते हैं .. मर्जी है आपकी आखिर ब्लॉग है आपका ] :)))

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  46. फिर भी एक बात तो आप मानेंगे की इस तरह की चेटिंग से इंसान की सोच खुल के सामने आ जाती है
    वर्ना २४ घंटे में एक कमेन्ट तो कोई भी ज्ञानी टाइप का कर सकता है .... है ना !

    [कोई अन्यथा ना लें .....बहुत पुराना अनुभव रहा है ] :))

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  47. मेरा नेट खराब था मित्र!!!!;)

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  48. बहुत ही अच्छा दृष्टांत है और जब खुद पर ही बीती हुई बात हो तो सोच पर प्रभाव भी विशिष्ट होता है । आपकी ये आपबीती सच में एक बोध कथा है। आभार एवं होली की शुभकामनाएँ ।

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  49. @ मेरा नेट खराब था मित्र

    सुज्ञ जी,
    क्षमा चाहता हूँ, मैं समझा नहीं , मतलब मेरी कही किसी भी बात का उत्तर (मेरे अनुसार )ऐसा कुछ नहीं बनता .... आज कल गलतफहमी का सीजन चल रहा है इसलिए थोडा शक हो रहा है ..कृपया समाधान करें

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  50. गौरव जी,
    ये बात्………
    वर्ना २४ घंटे में एक कमेन्ट तो कोई भी ज्ञानी टाइप का कर सकता है .... है ना !

    नेट खराब होने वजह से मैने वहाँ कमेंट पूरे 40 घटे बाद किया था।:)

    किन्तु साथ ही आपने कहा था……"अन्यथा न लें"
    मैने तो मात्र स्वयं पर लेकर एक चुहल ही की है।
    इसी लिये दूसरी टिप्पणी में मैने कहा…"समझ सकता हूँ! ;)) "

    अब आप इसे अन्यथा न लें। कोई गलतफहमी नहीं।

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  51. @सुज्ञ जी
    (मन ही मन मुझे लगा भी था पर यकीन नहीं था )
    आप से इतनी लम्बी लम्बी चर्चाएँ हुयी हैं ... आपने ये लाइन चुनी तो मेरे एंगल से डर डरना थोडा नेचुरल सा था .. सच .. समाधान हुआ .... राहत मिली.....आभारी हूँ :)

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  52. बड़ी सहजता से सुख-दुःख दर्शन प्रस्तुत किया है आपने। वाह।
    मैने कभी लिखा था...
    दुःख का कारण सिर्फ यही है
    सही गलत है गलत सही है।
    ..याद आ गया।

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