30 जून 2010

धार्मिक कट्टरता व पाखण्ड पर शक किसे रास नहीं आता?

  • मैने एक ब्लॉग पर कुछ यह टिप्पनी कर दी……
“तजुर्बा हमारा यह है कि लोग पहले, अमन व शान्ति के सन्देश को सौम्य भाषा में ले आते है और आखिर में कट्टरवादी रूख अपना लेते है। एक पूरा मुस्लिम ब्लॉगर गुट कुतर्कों के द्वारा  इस्लाम के प्रचार में सलग्न है। यह पहले से ही आपकी नियत पर शक नहीं हैं, पर यदि आप इस्लाम के प्रति फ़ैली भ्रान्तियों को तार्किक व सोम्य ढंग से दूर करने का प्रयास करेंगे तो निश्चित ही पठनीय रहेगा।“
सलाह देने का दुष्परिणाम यह हुआ कि शक करने पर उन्होने एक पोस्ट ही लगा दी…
  • शक और  कट्टरता पर उनका मन्तव्य………
"कुछ लोगों को यह अमन का पैग़ाम शायद समझ मैं नहीं आया, उनको शक है कहीं यह आगे जाके कट्टरवाद मैं ना बदल जाए. शक अपने आप मैं खुद एक बीमारी है, जिसका इलाज सभी धर्म मैं करने की हिदायत दी गयी है. यह कट्टरवाद है क्या, इसकी परिभाषा मुझे आज तक समझ मैं नहीं आयी? अपने धर्म को मान ना , उसकी नसीहतों पे चलना, अगर कट्टरवाद है, तो सबको कट्टर होना चहिये. हाँ अगर अपने धर्म को अच्छा बताने के लिए , दूसरों के धर्म मैं, बुराई, निकालना, बदनाम करना, धर्म के नाम पे नफरत फैलाना कट्टरवाद कहा जाता है, तो यह महापाप है,"
  “शक अपने आप मैं खुद एक बीमारी है” ?

नहीं!!, शक कभी बीमारी नहीं होता, शक वह हथियार है, जिसके रहते कोई धूर्त, पाखण्डी अथवा ठग अपने उद्देश्य में सफल नहीं हो पाता। किसी भी शुद्ध व सच्चे ज्ञान तक पहुंचने में संशय सीढ़ी का काम करता है। इन्सान अगर शक संशय पर आधारित जिज्ञासा न करे तो सत्य ज्ञान तक नहीं पहुँच सकता। विभिन्न आविष्कार और विकास संशययुक्त जिज्ञासा से ही अस्तित्व में आते है। दिमागों के दरवाजे अंध भक्ति पर बंद होते है और शक के कारण खुलते है। संशय से ही समाधान का महत्व है। शक को मनोरोग मानने वाले  अन्ततः  अंधश्रद्धा के रोग से ग्रसित  होकर मनोरोगी बन जाने की सम्भावनाएं प्रबल है ।

धूर्त अक्सर अपने पाखण्ड़ को छुपाने के लिए सावधान को शक्की होने का उल्हाना देकर, शक को दबाने का प्रयास करते है इसी मंशा से शक व संशय को बिमारी कहते है।

  • कट्टरता की परिभाषा………॥

अपने परम सिद्दांतो पर सिद्दत से आस्थावान रहना कट्टरता नहीं है, वह तो श्रद्धा हैं। सत्य तथ्य पर प्रत्येक मानव को अटल ही रहना चाहिये।
दूसरों के धर्म की हीलना कर, बुराईयां (कुप्रथाएं) निकाल, अपने धर्म की कुप्रथाओं को उंचा सिद्ध करना भी कट्टरता नहीं, कलह है। वितण्डा  है।

कट्टरता यह है……
एक व्यक्ति शान्ति का सन्देश देता है, जोर शोर से 'शन्ति'  'शन्ति' शब्दों का उच्चारण करता है,
दूसरा व्यक्ति मात्र मन में शान्ति धारण करता है। अब पहला व्यक्ति जब दुसरे को शान्ति- शान्ति आलाप करने को मज़बूर करता है, और कहता है कि जोर शोर से बोल के दिखाओ,  तो ही तुम शान्तिवान!  इस तरह दिखावे की शान्ति लादना ही कट्टरता हैं। विवेकशील व चरित्रवान रहना  व्यक्तिगत विषय है। गु्णों का भी जबरदस्ती किसी पर आरोहण नहीं होता।

अर्थात्, किसी भी तरह के सिद्धान्त, परम्पराएं, रिति-रिवाज दिखावे के लिये, बलात दूसरे पर लादना कट्टरता हैं।

केवल कथनी से नहिं, बनता कोई काम।
कथनी करनी एक हो, होगा पूर्ण विराम ॥

3 टिप्‍पणियां:

  1. Islam kewal brebiyan rashtrabad ke atirikt kuchh nahi .jiwan bhar muhammad sahab ne yahi kiya .
    ki arbi bhasha me hi khuda samajhta hai .

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  2. केवल कथनी से नहिं, बनता कोई काम।
    कथनी करनी एक हो, होगा पूर्ण विराम ॥
    --
    बहुत सुन्दर!

    जवाब देंहटाएं

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