एक गांव में सप्ताह के एक दिन प्रवचन का आयोजन होता था। इसकी व्यवस्था गांव के कुछ प्रबुद्ध लोगों ने करवाई थी ताकि भोले-भाले ग्रामीणों को धर्म का कुछ ज्ञान हो सके। इसके लिए एक दिन एक ज्ञानी पुरुष को बुलाया गया। गांव वाले समय से पहुंच गए। ज्ञानी पुरुष ने पूछा - क्या आपको मालूम है कि मैं क्या कहने जा रहा हूं? गांव वालों ने कहा - नहीं तो...। ज्ञानी पुरुष गुस्से में भरकर बोले - जब आपको पता ही नहीं कि मैं क्या कहने जा रहा हूं तो फिर क्या कहूं। वह नाराज होकर चले गए।
गांव के सरपंच उनके पास दौड़े हुए पहुंचे और क्षमायाचना करके कहा कि गांव के लोग तो अनपढ़ हैं, वे क्या जानें कि क्या बोलना है। किसी तरह उन्होंने ज्ञानी पुरुष को फिर आने के लिए मना लिया। अगले दिन आकर उन्होंने फिर वही सवाल किया -क्या आपको पता है कि मैं क्या कहने जा रहा हूं? इस बार गांव वाले सतर्क थे। उन्होंने छूटते ही कहा - हां, हमें पता है कि आप क्या कहेंगे। ज्ञानी पुरुष भड़क गए। उन्होंने कहा -जब आपको पता ही है कि मैं क्या कहने वाला हूं तो इसका अर्थ हुआ कि आप सब मुझसे ज्यादा ज्ञानी हैं। फिर मेरी क्या आवश्यकता है? यह कहकर वह चल पड़े।
गांव वाले दुविधा में पड़ गए कि आखिर उस सज्जन से किस तरह पेश आएं, क्या कहें। उन्हें फिर समझा-बुझाकर लाया गया। इस बार जब उन्होंने वही सवाल किया तो गांव वाले उठकर जाने लगे। ज्ञानी पुरुष ने क्रोध में कहा - अरे, मैं कुछ कहने आया हूं तो आप लोग जा रहे हैं। इस पर कुछ गांव वालों ने हाथ जोड़कर कहा - देखिए, आप परम ज्ञानी हैं। हम गांव वाले मूढ़ और अज्ञानी हैं। हमें आपकी बातें समझ में नहीं आतीं। कृपया अपने अनमोल वचन हम पर व्यर्थ न करें। ज्ञानी पुरुष अकेले खड़े रह गए। उनका घमंड चूर-चूर हो गया।
गांव के सरपंच उनके पास दौड़े हुए पहुंचे और क्षमायाचना करके कहा कि गांव के लोग तो अनपढ़ हैं, वे क्या जानें कि क्या बोलना है। किसी तरह उन्होंने ज्ञानी पुरुष को फिर आने के लिए मना लिया। अगले दिन आकर उन्होंने फिर वही सवाल किया -क्या आपको पता है कि मैं क्या कहने जा रहा हूं? इस बार गांव वाले सतर्क थे। उन्होंने छूटते ही कहा - हां, हमें पता है कि आप क्या कहेंगे। ज्ञानी पुरुष भड़क गए। उन्होंने कहा -जब आपको पता ही है कि मैं क्या कहने वाला हूं तो इसका अर्थ हुआ कि आप सब मुझसे ज्यादा ज्ञानी हैं। फिर मेरी क्या आवश्यकता है? यह कहकर वह चल पड़े।
गांव वाले दुविधा में पड़ गए कि आखिर उस सज्जन से किस तरह पेश आएं, क्या कहें। उन्हें फिर समझा-बुझाकर लाया गया। इस बार जब उन्होंने वही सवाल किया तो गांव वाले उठकर जाने लगे। ज्ञानी पुरुष ने क्रोध में कहा - अरे, मैं कुछ कहने आया हूं तो आप लोग जा रहे हैं। इस पर कुछ गांव वालों ने हाथ जोड़कर कहा - देखिए, आप परम ज्ञानी हैं। हम गांव वाले मूढ़ और अज्ञानी हैं। हमें आपकी बातें समझ में नहीं आतीं। कृपया अपने अनमोल वचन हम पर व्यर्थ न करें। ज्ञानी पुरुष अकेले खड़े रह गए। उनका घमंड चूर-चूर हो गया।
कुछ ऐसे ही ज्ञानी है इस दुनिया में।
जवाब देंहटाएंबहुत ही अच्छी बोध कथा ...
जवाब देंहटाएंआभार आपका
ऐसा भी है....
जवाब देंहटाएंbahut sunder
जवाब देंहटाएंजो ज्ञान न बंटे , वह किस काम का।
जवाब देंहटाएंआज के संदर्भ में प्रासंगिक बोध-कथा।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर बोध कथा...
जवाब देंहटाएंबिलकुल ठीक, ऐसे महाज्ञानियों की ज़रूरत किसे है!
जवाब देंहटाएंअच्छी कहानी!:)
जवाब देंहटाएंज्ञान इस तरह बाँटने की ज़रूरत नहीं होती .... वो तो किसी के आचार-विचार व व्यव्हार से ही झलक जाता है ...
~सादर!!!
ज्ञानी को स्वयं पता नहीं कि किससे कब और क्या बोलना चाहिए .... ऐसे अहंकारी अकेले ही रह जाते हैं ।
जवाब देंहटाएं
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया है सुज्ञ जी .बधाई इस बोध कथा के लिए इसीलिए कहा गया है पढ़े से गुणा (गुणी व्यक्ति )अच्छा होता है .
बहुत सुन्दर बोध कथा . जो ज्ञानी होते हैं वे तो इस बात का भान होने ही नहीं देते हैं बल्कि उनके ज्ञान से जब हमें सन्देश मिलता है तब उनके ज्ञान को हम जान पाते हैं।
जवाब देंहटाएंबहुत-बहुत सुन्दर..
जवाब देंहटाएंप्रेरक बहुत अच्छी बोध कथा ...आभार
जवाब देंहटाएंrecent post : जन-जन का सहयोग चाहिए...
सच कहा आपने, ज्ञान संवाद का विषय है, प्रदर्शन का नहीं।
जवाब देंहटाएंरोचक प्रसंग
जवाब देंहटाएंनए सन्दर्भ में बहुत अच्छी तरह प्रस्तुत किया है आपने पुरानी कथा को!!
जवाब देंहटाएं✿♥❀♥❁•*¨✿❀❁•*¨✫♥
♥सादर वंदे मातरम् !♥
♥✫¨*•❁❀✿¨*•❁♥❀♥✿
मायावी ज्ञान के रूप में अच्छी बोध कथा आपने प्रस्तुत की है
आदरणीय सुज्ञ जी
...वैसे , इधर हम एक चुटकुला बचपन से कहते-सुनते आए हैं ।
इसमें ज्ञानी पुरुष के स्थान पर नेता है ...
# जब आपको पता ही नहीं कि मैं क्या कहने जा रहा हूं तो फिर क्या कहूं
और
# जब आपको पता ही है कि मैं क्या कहने वाला हूं तो... मेरी क्या आवश्यकता है? के बाद यह होता है कि "गांव वाले तय करते हैं कि आधे कह देंगे हमें पता है ; आधे कह देंगे हमें पता नहीं है ।"
ऐसा होने पर नेता यह कह कर सरक लेता है कि जिनको पता है कि मैं क्या कहने वाला हूं , वे लोग उन लोगों को भी बता दे , जिनको पता नहीं है कि मैं क्या कहने वाला हूं ।
:))
हार्दिक मंगलकामनाएं …
लोहड़ी एवं मकर संक्रांति के शुभ अवसर पर !
राजेन्द्र स्वर्णकार
✿◥◤✿✿◥◤✿◥◤✿✿◥◤✿◥◤✿✿◥◤✿◥◤✿✿◥◤✿
बहुत बढ़िया प्रेरक प्रस्तुति ..आभार
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर कथा...आपके ब्लॉग पर आकर हमेशा कुछ नया और ज्ञानवर्धक जानने को मिलता है।।।
जवाब देंहटाएंसुंदर कथा...सटीक अभिव्यक्ति...
जवाब देंहटाएंरोचक कथा ..और राजेंद्र जी की टिप्पणी सोने पर सुहागा.
जवाब देंहटाएंमुबारक ईद मिलादुल नबी ,गणतंत्र दिवस जैसा भी है है तो हमारा हम बदलें इसके निजाम को न रहें तमाशाई .
जवाब देंहटाएंसार्वकालिक प्रासंगिक बोध कथा .
कहाँ खो गए सुज्ञ जी ...आपकी यहाँ ज़रुरत है !
जवाब देंहटाएंमंगल कामनाएं !
आदरणीय सतीश जी,
हटाएंपिछली 30 जनवरी को मेरे बडे भ्राता का आक्समिक निधन हो गया, अस्तु शोकसंतप्त था. अब कुछ सामान्य हूँ। बस अब आप सभी के साथ इन चौपालों में आना प्रारम्भ करता हूँ। याद करने के लिए आपका बहुत बहुत आभार!!