tag:blogger.com,1999:blog-7546054676355588576.post6493524807720284977..comments2023-10-21T14:43:56.493+05:30Comments on सुज्ञ: अहसान फ़रामोश ये तूने क्या किया।बहाने तो मत बना कृतघ्न।सुज्ञhttp://www.blogger.com/profile/04048005064130736717noreply@blogger.comBlogger33125tag:blogger.com,1999:blog-7546054676355588576.post-75957611138483326782010-11-26T15:28:15.835+05:302010-11-26T15:28:15.835+05:30ये तो इंसान की राक्षसी प्रवृति है ... जो मिलता है ...ये तो इंसान की राक्षसी प्रवृति है ... जो मिलता है उसे लूटने लगता है .. फिर ये प्रकृति तो मूक है ... उसका शोषण करना तो अपना अधिकार समझता है maanav .....दिगम्बर नासवाhttps://www.blogger.com/profile/11793607017463281505noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7546054676355588576.post-68336621979196648722010-11-24T19:38:10.003+05:302010-11-24T19:38:10.003+05:30दिव्या जी, सलिल जी,मनोज जी,दीप जी, वाणी जी, पूजा ज...दिव्या जी, सलिल जी,मनोज जी,दीप जी, वाणी जी, पूजा जी,अमित जी, ज्ञानचंद जी, विरेन्द्र जी एवं सम्वेदना बंधु<br /><br />लाखों साल पहले भी और आज भी मानव को मात्र पेट भर आहार, तन की सुरक्षा के लिये वस्त्र, और शीत उषण से बचनें के लिये छत ही चाहिए। न तो कोई इससे अधिक उपयोग कर सकता है और न कोई अन्य आवश्यकता में शुमार है। बाकि सब परिग्रह ही है। अनंत इच्छा के परिणाम। मात्र तृष्णा ही। फिर क्यों मानव खाए कम और बिगाडे अधिक। क्यों नहिं अपनी इच्छाएँ नियंत्रित कर संसाधनो का सदुपयोग करके कृतज्ञ बनता? और आने वाली पीढी को भी संयम सिखा कर ॠण से ॠणमुक्त होता।सुज्ञhttps://www.blogger.com/profile/04048005064130736717noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7546054676355588576.post-50172379739197561532010-11-24T18:23:07.751+05:302010-11-24T18:23:07.751+05:30चैतन्य जी,
आप और सलिल भाई में गजब का सामन्जस्य है।...चैतन्य जी,<br />आप और सलिल भाई में गजब का सामन्जस्य है। शुभकामनाएं!<br />साझा ब्लोग होने की जानकारी तो थी ही,पर निकटता प्रेषित करने के लिये हमने "सम्वेदना…" से आपको और "चला बिहारी…" से सलिल जी को सम्बोधित ठीक समझा। मेरा इरादा आपको असमंजस की स्थिति में डालना न था।<br />लेकिन अब आपने मुझे दुविधा में अवश्य डाल दिया है, अब मैं कैसे सम्बोधित करूं, सीधे नाम से निकटता महसुस होती है। आप ही सुझाएं।<br />(संदेश पहूँचने के बाद आप चाहें तो यह टिप्पणी डिलिट कर सकते हैं)सुज्ञhttps://www.blogger.com/profile/04048005064130736717noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7546054676355588576.post-10614463073955754652010-11-24T17:47:38.252+05:302010-11-24T17:47:38.252+05:30सुज्ञ जी!
सम्वेदना के स्वर पर आपकी सुन्दर टिप्पणीय...सुज्ञ जी!<br />सम्वेदना के स्वर पर आपकी सुन्दर टिप्पणीयों के लिये आभार के साथ एक विनम्र निवेदन यह है कि इस ब्लोग पर सलिल भाई और मेरा सब कुछ साझा है, हमारी सांझी सोच से लेकर हमारे सांझे सरोकारों तक। जो कुछ भी वहाँ लिखा जाता है वो हम दोनों के कम्प्यूटर ही नहीं मन मस्तिष्क से भी प्रोसेस होकर जाता है। <br /><br />अकसर आपका "एकाकी" सम्बोधन, मुझे बहुत असमंजस में डाल जाता है। मुझे दुविधा से उबारेंगें, न?!सम्वेदना के स्वरhttps://www.blogger.com/profile/12766553357942508996noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7546054676355588576.post-85697792850930219842010-11-24T16:11:23.261+05:302010-11-24T16:11:23.261+05:30समयाभाव के कारण थोड़ी देर सा आया ....एक बेहतरीन सार...समयाभाव के कारण थोड़ी देर सा आया ....एक बेहतरीन सार्थक लेख के लिए आप मेरी तरफ से बधाई के पात्र है . इस लेख की हर बात से सहमत हूँ. आपको शुभकामनाएँ!वीरेंद्र सिंहhttps://www.blogger.com/profile/17461991763603646384noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7546054676355588576.post-86121834265643679292010-11-24T14:41:10.309+05:302010-11-24T14:41:10.309+05:30आज मानव जिस तरह प्रकृति का दोहन कर रहा है, हमारी ...आज मानव जिस तरह प्रकृति का दोहन कर रहा है, हमारी आने वाली पीढ़ियों को उसकी कितनी कीमत चुकानी पड़ेगी इसकी कल्पना भी नहीं कर सकते !<br />आपकी पोस्ट आने वाले तूफ़ान का इशारा है !<br />-ज्ञानचंद मर्मज्ञज्ञानचंद मर्मज्ञhttps://www.blogger.com/profile/06670114041530155187noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7546054676355588576.post-58757262797722815762010-11-24T14:13:14.001+05:302010-11-24T14:13:14.001+05:30क्या आपको नहीं लगता की आज हम गर्त में जा रहे है. क...क्या आपको नहीं लगता की आज हम गर्त में जा रहे है. क्या पुरानी जीवन शैली से जीने वाले हमारे बडगे इतनी बिमारियों से जूझते थे, क्या उनकी जीवन शैली से ग्लोबल वार्मिंग फैलती थी , क्या उनकी जीवन शैली से धरती का संतुलन बिगड़ पाया था.<br />अगर नहीं तो क्या हमें यह नहीं मानना चहिये की हमारे पुरखे ज्यादा विकसित थे,ज्यादा उन्नत थे, अपने जीवन में.<br />और हम इस धरती-बिगाड़, मनख-मार जीवन शैली को विकास समझ अंधे हुए इसके पीछे भागे जा रहे है.<br />ठीक है की आज सिर्फ रोटी,कपडा और मकान से ही काम नहीं चलता . लेकिन ललित मोदी बनकर भी क्या हासिल हो जाता है. <br /><br />सच में प्रकृति के साथ खिलवाड़ करने वाला मनुष्य अहसान फरामोश ही है.... सार्थक पोस्टAmit Sharmahttps://www.blogger.com/profile/15265175549736056144noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7546054676355588576.post-9415629378574439852010-11-24T11:33:06.424+05:302010-11-24T11:33:06.424+05:30सही है... अहसान फरामोशी का ये दाग हमेशा हम पर लगता...सही है... अहसान फरामोशी का ये दाग हमेशा हम पर लगता आया है और समय-समय पर इसकी सज़ा भी मिलती रही है...POOJA...https://www.blogger.com/profile/03449314907714567024noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7546054676355588576.post-89977755718797950542010-11-24T09:34:22.467+05:302010-11-24T09:34:22.467+05:30प्रकृति अहसानफरामोशी का दंड तो देती है ...
सार्थक ...प्रकृति अहसानफरामोशी का दंड तो देती है ...<br />सार्थक चिंतन !वाणी गीतhttps://www.blogger.com/profile/10839893825216031973noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7546054676355588576.post-32287560018742730242010-11-23T23:51:54.327+05:302010-11-23T23:51:54.327+05:30सुज्ञ जी बहुत बढ़िया लिखा है.सुज्ञ जी बहुत बढ़िया लिखा है.VICHAAR SHOONYAhttps://www.blogger.com/profile/07303733710792302123noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7546054676355588576.post-28658454794366396182010-11-23T23:05:30.427+05:302010-11-23T23:05:30.427+05:30प्रकृति का दोहान करके हम अपना भला नही कर रहे हैं।प्रकृति का दोहान करके हम अपना भला नही कर रहे हैं।मनोज कुमारhttps://www.blogger.com/profile/08566976083330111264noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7546054676355588576.post-34778805569487626192010-11-23T21:52:18.423+05:302010-11-23T21:52:18.423+05:30नदियाँ, पहाड़, भूमि और समुद्र के के साथ अत्याचार ...नदियाँ, पहाड़, भूमि और समुद्र के के साथ अत्याचार किया और जब प्रक्र्ति ने प्रतिकार किया भूकम्प, बाढ़, ज्वालामुखी और सूनामी के रूप में तो उसे प्राक्र्तिक आपदा का नाम दे दिया. मतलब यह कि इसके लिए भी प्रकृति को दोषी ठहराना मांव का धर्म हो गया है.. कृतघ्न मानव की कृतघ्नता कि पराकाष्ठा!!.. हंस राज जी बहुत अच्छी बात!!चला बिहारी ब्लॉगर बननेhttps://www.blogger.com/profile/05849469885059634620noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7546054676355588576.post-28498462431105254162010-11-23T20:42:19.762+05:302010-11-23T20:42:19.762+05:30.
एक जागरूक करते बेहतरीन लेख के लिए आभार एवं बधाई....<br /><br />एक जागरूक करते बेहतरीन लेख के लिए आभार एवं बधाई । <br /><br />.ZEALhttps://www.blogger.com/profile/04046257625059781313noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7546054676355588576.post-55674861086186181262010-11-23T19:54:47.162+05:302010-11-23T19:54:47.162+05:30अभिषेक जी,
आभार आपका। आपने जी भर सराहाअभिषेक जी,<br />आभार आपका। आपने जी भर सराहासुज्ञhttps://www.blogger.com/profile/04048005064130736717noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7546054676355588576.post-88510145110016659072010-11-23T19:53:40.721+05:302010-11-23T19:53:40.721+05:30तौसिफ़
ऐसे ही शुभ-विचार लोगों के दिल तक पहूंचेतौसिफ़<br /><br />ऐसे ही शुभ-विचार लोगों के दिल तक पहूंचेसुज्ञhttps://www.blogger.com/profile/04048005064130736717noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7546054676355588576.post-41856545611246074732010-11-23T19:51:52.220+05:302010-11-23T19:51:52.220+05:30पं.डी.के.शर्मा"वत्स"
आपने पूर्ण सार प्...पं.डी.के.शर्मा"वत्स" <br /><br />आपने पूर्ण सार प्रस्तूत कर दिया। आभार।सुज्ञhttps://www.blogger.com/profile/04048005064130736717noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7546054676355588576.post-19952271782709139032010-11-23T19:49:20.743+05:302010-11-23T19:49:20.743+05:30@कौशल मिश्रा जी,
@पढने के बाद सोचना पडता है।
:))
...@कौशल मिश्रा जी,<br />@पढने के बाद सोचना पडता है।<br />:))<br /><br />@इन्द्रनील जी,<br /><br />बात मात्र इत्ती सी है, बेगुनाहों को न पछताना पडे।सुज्ञhttps://www.blogger.com/profile/04048005064130736717noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7546054676355588576.post-37675011358541828652010-11-23T18:32:51.003+05:302010-11-23T18:32:51.003+05:30उच्च कोटि का लेख
आप से पूर्णतया सहमतउच्च कोटि का लेख <br />आप से पूर्णतया सहमतABHISHEK MISHRAhttps://www.blogger.com/profile/08988588441157737049noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7546054676355588576.post-405698575818105032010-11-23T17:03:26.684+05:302010-11-23T17:03:26.684+05:30उत्कृष्ट एवं सराहनीय लेख
वास्तव में पहली बार आपक...उत्कृष्ट एवं सराहनीय लेख <br />वास्तव में पहली बार आपका लेख दिल को छू गया <br />dabirnews.blogspot.comTausif Hindustanihttps://www.blogger.com/profile/13794797683013534839noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7546054676355588576.post-25331177185165190042010-11-23T16:47:01.902+05:302010-11-23T16:47:01.902+05:30इन्सान समझने को तैयार ही नहीं कि अन्ध विकासवाद की ...इन्सान समझने को तैयार ही नहीं कि अन्ध विकासवाद की इस कुल्हडी से वो स्वयं के पाँव ही काटने में जुटा है. वो भूल गाय कि जब-जब उसनें प्रकृति की मूल भावना को छेडने की कौशिश की, तब-तब प्रकृति नें अपना स्वरूप बदलकर उसे दंडित करने में कोताही नहीं की, उसका फल उसे जरूर मिला है.और जहाँ वो अपने हितसाधन के साथ इसके संरक्षण एवं संवर्धन के लिए तत्पर रहा, प्रकृति सदैव उसके साथ खडी रही. <br />लेकिन क्या करें, सारा कसूर सिर्फ इस भोगवादी चिन्तन का ही है, जो प्रकृति को अपना शत्रु समझकर उसके विनाश को ही अपनी उपलब्धि मान बैठा है.Pt. D.K. Sharma "Vatsa"https://www.blogger.com/profile/05459197901771493896noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7546054676355588576.post-51277228719743873032010-11-23T16:35:22.493+05:302010-11-23T16:35:22.493+05:30कोई बात नहीं ... चलने दीजिए दोहन ... एक दिन ऐसा आय...कोई बात नहीं ... चलने दीजिए दोहन ... एक दिन ऐसा आयेगा जब पछताना पड़ेगा ...<br />सुन्दर आलेख !Indranil Bhattacharjee ........."सैल"https://www.blogger.com/profile/01082708936301730526noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7546054676355588576.post-39683221931818479672010-11-23T16:33:15.414+05:302010-11-23T16:33:15.414+05:30kahe itna likhate ho padhane ke baad sochana padat...kahe itna likhate ho padhane ke baad sochana padata hai ki ka likhe .<br />bahut hi sunder likha hai .Anonymoushttps://www.blogger.com/profile/07499570337873604719noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7546054676355588576.post-50893914164844195082010-11-23T15:59:23.416+05:302010-11-23T15:59:23.416+05:30सही कहा दीदी,
आपदाएं इन्ही अहसान फ़रामोशों के कारण ...सही कहा दीदी,<br />आपदाएं इन्ही अहसान फ़रामोशों के कारण आती है।सुज्ञhttps://www.blogger.com/profile/04048005064130736717noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7546054676355588576.post-28067856726482949322010-11-23T15:57:44.016+05:302010-11-23T15:57:44.016+05:30डॉ॰ मोनिका शर्मा जी,
आवश्यकता से अधिक शोषण खिलवाड ...डॉ॰ मोनिका शर्मा जी,<br />आवश्यकता से अधिक शोषण खिलवाड ही है। आभारसुज्ञhttps://www.blogger.com/profile/04048005064130736717noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7546054676355588576.post-42169885739439360222010-11-23T15:38:24.269+05:302010-11-23T15:38:24.269+05:30जागरूक करती पोस्ट ...प्रकृति तो हर हाल में बदला ले...जागरूक करती पोस्ट ...प्रकृति तो हर हाल में बदला ले ही लेगी ...ऐसे ही नहीं आती हैं प्राकृतिक विपदाएं ...संगीता स्वरुप ( गीत )https://www.blogger.com/profile/18232011429396479154noreply@blogger.com