tag:blogger.com,1999:blog-7546054676355588576.post6274280384035094821..comments2023-10-21T14:43:56.493+05:30Comments on सुज्ञ: तथ्य की परीक्षण विधि - अनेकान्तवादसुज्ञhttp://www.blogger.com/profile/04048005064130736717noreply@blogger.comBlogger62125tag:blogger.com,1999:blog-7546054676355588576.post-54232009304997035182011-08-09T18:34:05.565+05:302011-08-09T18:34:05.565+05:30[सुधार ]...
साथ ही मैं हिन्दी शब्दों रिप्लेस करने...[सुधार ]...<br /><br />साथ ही मैं हिन्दी शब्दों रिप्लेस करने को नहीं कह रहा<br /><br />जैसे आप ही के कमेन्ट से एक लाइन ले रहा हूँ<br /><br />@आज हम शोधकार्यों के लिए विश्लेषण ( ANALYSIS ) करते हैं. ध्यान दीजिये,.....<br /><br />यहाँ आपने विश्लेषण और ANALYSIS दोनों को साथ लिखा है , बिलकुल ऐसे ही अपनी बात को हम बहुत से पाठकों को समझा सकते हैंएक बेहद साधारण पाठकhttps://www.blogger.com/profile/14658675333407980521noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7546054676355588576.post-41825030500798791972011-08-09T18:27:01.997+05:302011-08-09T18:27:01.997+05:30@अग्रवाल जी ! समानार्थी शब्दों के मामले में मैं प्...@अग्रवाल जी ! समानार्थी शब्दों के मामले में मैं प्रतुल जी के पक्ष में हूँ. अंग्रेजी इतनी समृद्ध नहीं है कि भारतीय दर्शन के शब्दों का सही अर्थ दे सके. कुछ लोगों ने विदेशियों के लिए अंग्रेजी अनुवाद किया है पर उससे अनर्थ ही हुआ है. मैंने बनारस में ऐसी पुस्तकें देखी हैं और अपना माथा पीटा है.<br /><br />कौशलेन्द्र जी, <br />पूरी तरह सहमत हूँ आपकी और प्रतुल जी की बात से .. लेकिन में ट्रांसलेशन की नहीं ट्रांसक्रिएशन की बात कर रहा हूँ , जैसा प्रोफ़ेसर पी लाल ने किया था .<br />साथ ही मैं शब्दों रिप्लेस करने को नहीं कह रहाएक बेहद साधारण पाठकhttps://www.blogger.com/profile/14658675333407980521noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7546054676355588576.post-32276461085266937202011-08-09T17:16:06.323+05:302011-08-09T17:16:06.323+05:30सुज्ञ जी,
बिलकुल सही है
.......प्यारा और कीमती लेख...सुज्ञ जी,<br />बिलकुल सही है<br />.......प्यारा और कीमती लेखसंजय भास्कर https://www.blogger.com/profile/08195795661130888170noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7546054676355588576.post-13431844268782401032011-08-09T12:39:57.392+05:302011-08-09T12:39:57.392+05:30आप सभी की रूचिप्रद टिप्पणियाँ पाकर अब लगता है मैं ...आप सभी की रूचिप्रद टिप्पणियाँ पाकर अब लगता है मैं निसंकोच विषय में आगे बढ़ सकता हूँ।<br />आपके प्रश्न मुझे प्रोत्साहित करेंगे। और सावधान भी रहुँगा कि गहन अध्यन के उपरांत ही तथ्य प्रस्तुत करूँ। साथ ही अतिउत्साह में अतिक्रमण से बचा रहुँ।सुज्ञhttps://www.blogger.com/profile/04048005064130736717noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7546054676355588576.post-44666828253867821292011-08-09T12:25:27.628+05:302011-08-09T12:25:27.628+05:30कौशलेन्द्र जी,
भैया, आप तो विषय को सरल बोधगम्य बन...कौशलेन्द्र जी,<br /><br />भैया, आप तो विषय को सरल बोधगम्य बनाने का सारा श्रेय ही ले जाते है।:)) इस सरल प्रस्तुति के लिए आपका अहसानमंद नहीं तो (भाई के नाते) गौरव अवश्य महसुस करता हूँ।<br /><br />भ्राता मनोज भारती जी,<br /><br />न तो गढ़ा हुआ लेखक हूँ, न साहित्य-कला का विद्यार्थी रहा हूँ। कॉमर्स का विद्यार्थी और कर्म भी व्यापार। साहित्य में दर्शन का शौकिया अध्ययन और ब्लॉगिंग के सहज उपलब्ध माध्यम को देखकर लिखने के शौक ने सिर उठाया। त्रुटियुक्त लेखन का परिणाम आपके सामने है। पर आप जैसे मित्रों का हितबोध भाषा में निखार लाने में सहायक सिद्ध होगा। सुधार किया गया है। समय मिले तो ऐसे ही सचेत करते रहें,उपकार होगा।सुज्ञhttps://www.blogger.com/profile/04048005064130736717noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7546054676355588576.post-22609394162534135702011-08-09T11:11:09.719+05:302011-08-09T11:11:09.719+05:30अनेकांत विषय पर सुगम व बोधगम्य लेख। टिप्पणियाँ भी ...अनेकांत विषय पर सुगम व बोधगम्य लेख। टिप्पणियाँ भी बेहतरीन। ज्ञानार्जन हुआ। <br /><br />सुज्ञ जी!!! आपके लेख ज्ञान-वर्धन में बहुत सहायक हैं। लेकिन यदि लेख से भाषा-संबंधी त्रुटियां हटा दी जाएं तो लेख अधिक प्रभाव छोड़ेगा। इसी लेख में परिप्रेक्ष्य को परिपेक्ष्य, स्पष्ट को स्पष्ठ, अन्तर्निहित को अन्तनिहित, अभिप्राय: को अभिप्राय, पकड़ने को पकडने, गूढ़ को गूढ, हेतु को हेतू लिखा गया है।मनोज भारतीhttps://www.blogger.com/profile/17135494655229277134noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7546054676355588576.post-60711835997777917452011-08-09T00:20:55.382+05:302011-08-09T00:20:55.382+05:30शिल्पा जी ! एकान्तवाद एक गली है जो किसी दिशा विशेष...शिल्पा जी ! एकान्तवाद एक गली है जो किसी दिशा विशेष में ले जायेगी. उधर बरगद,पीपल या बबूल का पेड़ है ....हम इतना ही प्रत्यक्ष कर पायेंगे. हमारा सत्य इतना ही होगा ...यह एकांगी सत्य है, सम्पूर्ण सत्य नहीं. हमें गली को छोड़कर खुले में आना होगा. तब हमें सम्पूर्ण दृश्य दिखाई देगा, बरगद के अतिरिक्त और भी कई वृक्ष,खेत और न जाने क्या-क्या दिखाई देगा. इतना सब देखने के बाद ही हम उस इलाके को भली-भाँति जान पायेंगे. यह गली को छोड़ खुले में आकर देखना ही अनेकान्तवाद है. इसका व्यावहारिक उपयोग सत्यान्वेषण के लिए किया जाता था. हमारे महर्षियों की प्रयोगशाला सम्पूर्ण प्रकृति थी. अनेकान्तवाद उनके उपकरणों में से एक था. इसका लाभ यह हुआ कि महर्षियों के शोध सन्देह से परे हुआ करते थे. आज हम शोधकार्यों के लिए विश्लेषण ( ANALYSIS ) करते हैं. ध्यान दीजिये, प्रयोगशालाओं में किया गया हर विश्लेषण मूल तत्व के स्वरूप को समाप्त कर देने के कारण विघटनकारी होता है.यह होलिस्टिक अप्रोच नहीं है इसीलिये हमारे शोध वर्षों और पीढ़ियों चलते हैं.हर शोधकर्ता एक-एक सत्य लेकर सामने आता है.कोई हाथी का पैर तो कोई उसका कान. परमाणु पर किये गए सारे शोध अंतिम नहीं हैं. पर भारतीय पद्यति से किये गए शोध अंतिम हैं. उन्होंने कहा कि परमाणु भी पान्चमहाभौतिक है....यहाँ तक कि सब-एटोमिक पार्टिकल्स भी पान्चमहाभौतिक हैं....और यही अंतिम सत्य है. महर्षियों का अनेकान्तवाद किसी भी रहस्य के सभी पक्षों को अनावृत करता है ...and it was one of the tools of revealing the trouth .....आश्चर्य होता है न ! कि बिना आधुनिक उपकरणों के कैसे उन्होंने ग्रह-नक्षत्रों के बारे में इतने सटीक निष्कर्ष निकाल लिए. भारतीय दर्शन सबसे बड़ी प्रयोगशाला है. चिकित्सा शास्त्र में किये गए इनके शोध अद्भुत हैं<br /><br />अग्रवाल जी ! समानार्थी शब्दों के मामले में मैं प्रतुल जी के पक्ष में हूँ. अंग्रेजी इतनी समृद्ध नहीं है कि भारतीय दर्शन के शब्दों का सही अर्थ दे सके. कुछ लोगों ने विदेशियों के लिए अंग्रेजी अनुवाद किया है पर उससे अनर्थ ही<br />हुआ है. मैंने बनारस में ऐसी पुस्तकें देखी हैं और अपना माथा पीटा है.बस्तर की अभिव्यक्ति जैसे कोई झरनाhttps://www.blogger.com/profile/11751508655295186269noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7546054676355588576.post-18397079108858993482011-08-08T11:33:00.249+05:302011-08-08T11:33:00.249+05:30अनुराग जी,
आपने तो पहले लेख पर ही अपनी टिप्पणी से...अनुराग जी,<br /><br />आपने तो पहले लेख पर ही अपनी टिप्पणी से अनेकांत को व्याख्यायित कर दिया था। जबकि दूसरी टिप्पणी में आपने बताया इस विषय पर आपने कभी कोई अध्यन नहीं किया है। वस्तुतः इस विषय का आपको स्वयं बोध हो गया था। जो आपके चिंतनशील अभिगम के परिणाम स्वरूप है। ॠजुप्राज्ञ को विशेष अध्यन नहीं करना पडता। पर सामान्य बुद्धि व्यक्तित्व जब स्वयं सहज-बोध न हो पाए तो जानकार अथवा शास्त्राध्ययन का आलम्बन लेना अनिवार्य हो जाता है।<br />आपका बोध तो अपूर्व है। विलक्षण है।सुज्ञhttps://www.blogger.com/profile/04048005064130736717noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7546054676355588576.post-37581848015997597162011-08-08T10:55:40.144+05:302011-08-08T10:55:40.144+05:30पढ रहा हूँ, समझने का प्रयास कर रहा हूँ। यह शृंखला ...पढ रहा हूँ, समझने का प्रयास कर रहा हूँ। यह शृंखला पढने में जानकर देर लगाता हूँ ताकि टिप्पणियाँ और विचार विनिमय देखकर समझना और आसान हो जाये। सभी को साधुवाद!Smart Indianhttps://www.blogger.com/profile/11400222466406727149noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7546054676355588576.post-78181146441494660082011-08-07T23:11:30.420+05:302011-08-07T23:11:30.420+05:30मित्रों,
सन्डे के दिन बढ़िया ज्ञान प्राप्त हुआ, चर्...मित्रों,<br />सन्डे के दिन बढ़िया ज्ञान प्राप्त हुआ, चर्चा हो गयी, अच्छे नतीजे आ गए .. बस और क्या चाहिए ? :)<br />सुज्ञ जी और चर्चा में शामिल सभी प्रिय मित्रों को धन्यवाद :)<br />शुभरात्रि :)एक बेहद साधारण पाठकhttps://www.blogger.com/profile/14658675333407980521noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7546054676355588576.post-62943334018206107732011-08-07T23:06:14.252+05:302011-08-07T23:06:14.252+05:30कृपया बराबरी = बैलेंस (balance) पढ़े...कृपया बराबरी = बैलेंस (balance) पढ़े...JChttps://www.blogger.com/profile/05374795168555108039noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7546054676355588576.post-68853043410442139222011-08-07T23:02:02.024+05:302011-08-07T23:02:02.024+05:30@ प्रतुल वशिष्ठ जी, 'हम' सभी मानव, पृथ्वी ...@ प्रतुल वशिष्ठ जी, 'हम' सभी मानव, पृथ्वी पर, कुछेक वर्ष के लिए ही आये हैं (वर्तमान में न मालूम क्यों!)... और इसे आज के युवकों के शब्द में दुर्भाग्य ही कहेंगे कि 'भारत' अथवा 'महाभारत' अनादिकाल से एक देव भूमि रही है, जिस कारण यह योगियों, सिद्धों आदि की पवित्र भूमि रही है, जिस में सदियों से पश्चिम दिशा निवासी 'ब्रह्माण्ड घुमाने' यानि 'समुद्र मंथन' अथवा 'मानस मंथन' के कारण समय समय पर आते रहे / रहते हैं इस भूमि से 'सोना' - पीला अथवा काला - आदि खनिज पदार्थ निकालने, जिन कार्यों में उन्होंने अपने देशों में भी महारत प्राप्त की है,,, और इस भूमि से, बदले में, ज्ञानी लोग, सिद्ध पुरुष आदि पश्चिम देशों में जाते रहते हैं...<br /><br />यही है 'योग' जिसे मानव की प्रकृति में भी आध्यात्मिक और भौतिक के बीच बराबरी ( ) के लिए द्वन्द चलता है... भारत में इसी लिए 'शिव' (पृथ्वी-चन्द्र, दाए और बाए पैर के योग के द्योतक) को 'नटराज' भी कहते हैं, और, जो देखा जा सकता है हमारे सौर-मंडल (महाशिव) के सदस्यों के लगभग साढ़े चार अरब वर्षों से हमारी गैलेक्सी में, शून्य में, विद्यमान रह अपना अपना निर्धारित कार्य अनादि काल से करते चले आने से...JChttps://www.blogger.com/profile/05374795168555108039noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7546054676355588576.post-43795908530437233352011-08-07T22:54:58.066+05:302011-08-07T22:54:58.066+05:30डिस्क्लेमर :
जिन कमेंट्स में मैं लिंक दे रहा हूँ ,...डिस्क्लेमर :<br />जिन कमेंट्स में मैं लिंक दे रहा हूँ , वे कमेन्ट पढ़ कर हटाये जा सकते हैं , सदविचारों के प्रसार मेरी एक मात्र अभिलाषा है :)एक बेहद साधारण पाठकhttps://www.blogger.com/profile/14658675333407980521noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7546054676355588576.post-25563967568285075672011-08-07T22:05:32.330+05:302011-08-07T22:05:32.330+05:30मेरे दोनो मित्रों नें अपनी बात में 'भी' का...मेरे दोनो मित्रों नें अपनी बात में 'भी' का उपयोग करके अनेकांत-दर्शन को पुष्ट किया है। यदि 'ही' का ही प्रयोग होता तो यह चर्चा विवाद में बदल जाती। <br />इसे ही कहते है प्रत्यक्ष प्रमाण!! <br />@ उत्कृष्ट विमर्श.... अद्भुत प्रतिउत्तर... <br />सुज्ञ जी, आपका चिंतन ऋषि तुल्य हो चला है.<br />नमन.<br /><br />जे सी जी का चिंतन बिना ब्रह्माण्ड घुमाए नहीं रहता.<br />उत्कृष्ट चिंतन की मिसाल कायम करते हैं वे भी.प्रतुल वशिष्ठhttps://www.blogger.com/profile/00219952087110106400noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7546054676355588576.post-2515870678833470092011-08-07T21:54:42.248+05:302011-08-07T21:54:42.248+05:30@मित्रों,
कृपया ये ब्लॉग पढ़ें, अच्छे लेख हैं
htt...@मित्रों, <br />कृपया ये ब्लॉग पढ़ें, अच्छे लेख हैं<br /><br />http://vinaybiharisingh.blogspot.com/एक बेहद साधारण पाठकhttps://www.blogger.com/profile/14658675333407980521noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7546054676355588576.post-64974142555061478502011-08-07T18:03:25.300+05:302011-08-07T18:03:25.300+05:30कृपया, लालशा = कक्षा पढ़ें
हिव के मस्तक = शिव क...कृपया, लालशा = कक्षा पढ़ें <br />हिव के मस्तक = शिव के मस्तक पढ़ेंJChttps://www.blogger.com/profile/05374795168555108039noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7546054676355588576.post-71015137767458671882011-08-07T17:54:09.188+05:302011-08-07T17:54:09.188+05:30क्षमा प्रार्थी हूँ कहते कि उद्देश्य 'परम सत्य&...क्षमा प्रार्थी हूँ कहते कि उद्देश्य 'परम सत्य' को पाना है और मानव को भी भगवान् का अनुरूप अथवा प्रतिबिम्ब जानना है, भले ही आप नाक को सीचे पकड़ो अथवा घुमा के...<br /> <br />पता नहीं वर्तमान हिन्दुओं ने अपने ही ज्ञानी पूर्वजों द्वारा सांकेतिक भाषा में लिखी अपने ही गैलेक्सी की उत्पति के विषय में 'क्षीर-सागर-मंथन' की कथा पढ़ी भी है कि नहीं...और यदि पढ़ी भी है तो बस एक मनोरंजक कहानी के समान ही शायद... <br /><br />यदि उसे दोहरायें तो, पहले आप जान पायेंगे कि वर्तमान में भी अपनी विशाल असंख्य तारों आदि वाली गैलेक्सी - बीच में मोटी और किनारे की ओर पतली, तश्तरीनुमा अथवा 'सुदर्शन-चक्र' समान - अपने केंद्र के चारों ओर, असंख्य तारों, और हमारे सौर-मंडल को भी उसके किनारे की ओर धारण किये हुवे, घूमती गैलेक्सी को 'मिल्की वे गैलेक्सी' कहा जाता है... जिससे 'क्षीर-सागर' कहा जाना तो कम से कम समझ आएगा...और जब वैज्ञानिक बताते हैं कि उसके केंद्र में सुपर गुरुत्वाकर्षण शक्ति वाला निराकार 'ब्लैक होल' है तो शायद आपको पता चले कि क्यूँ विष्णु के अष्टम अवतार 'कृष्ण' को सुदर्शन-चक्र धारी कहा गया होगा...<br /> <br />जब राक्षशों (शत्रु ग्रह / स्वार्थी व्यक्ति) और देवता (मित्र ग्रह / परोपकारी व्यक्ति) के मिले जुले प्रयास से गुरु बृहस्पति की देख-रेख में, सुमेरु पर्वत (अपनी अपनी धुरी पर घूमते पृथ्वी आदि ग्रह जो सूर्य कि भी अपनी अपनी लालशा में परिक्रमा कर रहे हैं) की मथनी बना, सागर-मंथन आरंभ हुआ तो पहले विष चारों दिशा में व्याप्त हो गया, और उसमें से हलाहल अथवा कालकूट को शिव ने अपने कंठ में धारण कर लिया (वैज्ञानिकों के अनुसार शुक्र ग्रह का वातावरण विषैला है, शुक्राचार्य को हिन्दुओं द्वारा राक्षशों का गुरु कहा गया और योगियों द्वारा मानव कंठ में भी शुक्र ग्रह का सार माना जाता है)... <br />हिव के मस्तक पर चंद्रमा को दिखाया जाया जाता है, अथवा मानव के मस्तक में भी शिव को अमृत दायिनी चंद्रमा का सार (सोमरस) माना जाता है जिसने विष्णु के रूप में देवताओं अर्थात सौर-मंडल को अमरता प्रदान की सतयुग के अंत में, जबकि इसके पहले मणि-माणिक्य दुसरे चरण में प्राप्त हुए और अप्सराएं तीसरे चरण में...<br /><br />और हिन्दू मान्यतानुसार काल चक्र सतयुग की १००% क्षमता से कलियुग के अंत की ०% क्षमता तक ४३,२०,००० वर्ष के एक महायुग के दौरान घटित होने वाले अनंत दृश्य दर्शाता है, और यह सिलसिला १०८० बार चलता है सतयुग से कलियुग तक अंतरिक्ष के हर ३६० डिग्री के तीन भाग यानी १०८० बार ब्रह्मा के एक दिन में यूँ लगभग साढ़े चार अरब वर्ष तक, उसके पृथ्वी पर पशु जगत के अनंत नेत्रों के माध्यम से...JChttps://www.blogger.com/profile/05374795168555108039noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7546054676355588576.post-5205310093649393412011-08-07T17:19:05.702+05:302011-08-07T17:19:05.702+05:30गौरव जी,
भाषा का एक मात्र सार्थक उपयोग है, भावों क...गौरव जी,<br />भाषा का एक मात्र सार्थक उपयोग है, भावों की अभिव्यक्ति, जो भी जिस किसी भाषा के शब्द अगर सटीक भावाभिव्यक्ति करने में समर्थ है वह शब्द सार्थक व सदुपयोगी है।<br /><br />इसी लेख में परिभाषा में मैने लिखा है…………<br />समस्त व्यवहार या ज्ञान के लेन-देन का मुख्य साधन भाषा है। भाषा अनेक शब्दों से बनती है। एक ही शब्द, प्रयोजन एवं प्रसंग अनुसार अनेक अर्थों में प्रयुक्त होते है।<br /><br />अतः अभिप्राय को सद्स्वरूप में प्रकट करे वह शब्द सार्थक है।<br /><br />सभी मित्रों से,<br />मेरी, गौरव जी और दिवस जी की इस चर्चा में आप अनेकांतवाद के लाभ प्रकट रूप से अनुभव कर सकते है। मैने पिछले ही लेख में कहा था………<br />"सम्पूर्ण विश्व में “ही” और “भी” का साम्राज्य व्याप्त है। जहाँ ‘ही’ का बोलबाला है वहाँ कलह, तनाव, विवाद है। और जहाँ इसके विपरित ‘भी’ का व्यवहार होता है, वहाँ सभी का सम्यक समाधान हो जाता है। और यह उत्थान की स्थिति का निर्माण करता है। सापेक्षदृष्टि मण्डनात्मक प्रवृति की द्योतक है जबकि एकांतदृष्टि खण्डनात्मक प्रक्रिया। इसिलिए सापेक्षतावाद अपने आप में सम्पूर्ण माना जाता है।"<br />मेरे दोनो मित्रों नें अपनी बात में 'भी' का उपयोग करके अनेकांत-दर्शन को पुष्ट किया है। यदि 'ही' का ही प्रयोग होता तो यह चर्चा विवाद में बदल जाती। <br />इसे ही कहते है प्रत्यक्ष प्रमाण!!सुज्ञhttps://www.blogger.com/profile/04048005064130736717noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7546054676355588576.post-68744950320852439152011-08-07T17:04:46.845+05:302011-08-07T17:04:46.845+05:30just reading - i am not fit to comment herejust reading - i am not fit to comment hereAnonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7546054676355588576.post-81206576069087043302011-08-07T16:47:05.979+05:302011-08-07T16:47:05.979+05:30@दिवस जी के कथन में अपेक्षा है शब्दों के भाव सुरक्...@दिवस जी के कथन में अपेक्षा है शब्दों के भाव सुरक्षित रखना, और अभिप्राय है ज्ञान की शुद्धता और मौलिकता बची रहे।<br /><br />सुज्ञ जी,<br />बिलकुल सही है, इस बात पर शुरू से सहमति है और हमेशा रहेगी ....वैसे भी मैं शब्दों के जिस अंग्रेजी-संस्कृत कनेक्शन की बात कर रहा हूँ वो तो तभी हो सकता है जब मूल शब्द मौजूद होंएक बेहद साधारण पाठकhttps://www.blogger.com/profile/14658675333407980521noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7546054676355588576.post-48092979947233067472011-08-07T15:55:47.475+05:302011-08-07T15:55:47.475+05:30दिवस जी के कथन में अपेक्षा है शब्दों के भाव सुरक्ष...दिवस जी के कथन में अपेक्षा है शब्दों के भाव सुरक्षित रखना, और अभिप्राय है ज्ञान की शुद्धता और मौलिकता बची रहे।<br /><br />अपेक्षा के आधार पर आप दोनो के कथन परस्पर विपरित होते हुए भी सत्य है। सही है। अब बात आती है क्रियान्वित करने की तो हम दोनो अभिप्राय का विश्लेषण करेंगे तो पाएंगे दोनो आवश्यक है। तब हमें समय,आवश्यकता उपयोगिता और परिणामों पर चिंतन करते हुए। जिस समय जो अधिक उपयोगी और योग्य होगा, लागू करना होगा। यही अनेकांत का दायित्व है।सुज्ञhttps://www.blogger.com/profile/04048005064130736717noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7546054676355588576.post-48371603537724315092011-08-07T15:42:19.060+05:302011-08-07T15:42:19.060+05:30गौरव जी,
गौरव जी आपके कथन की 'अपेक्षा' समझ...गौरव जी,<br />गौरव जी आपके कथन की 'अपेक्षा' समझ रहा हूँ। यह सच है कि एक बडे पाठक वर्ग के लिए यह प्रयास बोधगम्य हो जाएगा।<br />मेरा सुझाव तो एडिशनल सुझाव है इसका इम्प्लीमेंटेशन ना हो तो कोई कमीं नहीं आती .बिलकुल भी नहीं , लेकिन मुझे लगता है इसे किसी तरह इम्प्लीमेंट करने पर स्कोप बढ़ सकता है<br />.......कहीं हमारे बीच कुछ misunderstanding हो रही है।<br />कोई दो राय नहीं कि आपका सुझाव क्रियान्वित करने से विस्तार प्राप्त होगा। यहां कोई misunderstanding नहीं हो रही। प्रस्तुत लेख ही दृष्टिकोण की misunderstanding दूर करने के लिए ही तो है। इस दृष्टिकोण में आपके कथन की अपेक्षा है इस ज्ञान का अधिक से अधिक लोगों तक पहुँचना। और आशय या अभिप्राय है इस श्रेष्ठ ज्ञान को सर्वभोग्य बनाना।सुज्ञhttps://www.blogger.com/profile/04048005064130736717noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7546054676355588576.post-82077584690767097042011-08-07T15:20:33.642+05:302011-08-07T15:20:33.642+05:30.....और ये बिलकुल जरूरी नहीं की सही शब्द ढूँढने मे........और ये बिलकुल जरूरी नहीं की सही शब्द ढूँढने में हम बहुत समय दें जब मिले तब साथ में रख सकते हैं ..मैं शब्द रिप्लेस करने को नहीं कह रहा हूँ , इस बहाने हमारे पास कितना trans-creation (translation नहीं ) डेटा जमा हो जाएगा ..ये आगे बहुत काम आएगा .एक बेहद साधारण पाठकhttps://www.blogger.com/profile/14658675333407980521noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7546054676355588576.post-55281820729438200442011-08-07T15:16:05.256+05:302011-08-07T15:16:05.256+05:30मेरे दिमाग में एक अलग ही पाठक वर्ग घूम रहा है .......मेरे दिमाग में एक अलग ही पाठक वर्ग घूम रहा है ....काफी समय पहले शक्तिमान नामक सीरियल आता था, गंगाधर शास्त्री (मुकेश खन्ना ) द्वारा बोले बेहद सामान्य शब्द कईं लोगों को समझ नहीं आते थे , मुझे इस बात पर यकीन नहीं होता था , लेकिन काफी समय बाद मैंने महसूस किया की सच यही है .....<br /><br />मैं एक प्रयोग की बात कर रहा हूँ .......<br />एक उदाहरण:<br />मैं एक संशयवादी हूँ<br />इसे ऐसे लिखा ------<br />मैं एक संशयवादी(Skeptic)हूँ <br />संशयवादी को skeptic कहने से उस शब्द का अर्थ समझने वालों को संख्या बहुत बढ़ सकती है<br />गूगल पर सर्च करने वाले लोग हमेशा key word " skeptic " ही सर्च करते हैं<br />ठीक ऐसे ही<br />आपने ये भी देखा होगा की गीता का उल्लेख करते हुए जब एक-दो आधुनिक चिकित्सा विज्ञान के अंग्रेजी शब्द जोड़ दिए जाते हैं तो समझने में सुविधा होती है<br />अंग्रेज़ी शब्द डिप्रेशन (Depression) को हिंदी में अवसाद या विषाद कहते हैं<br />कितने ही लोग होंगे जो ये नहीं जानते की विषाद शब्द सुनते ही कोई डिप्रेस व्यक्ति की इमेज दिमाग में आनी चाहिए <br />लेकिन हमारे इस बात को बार बार यूज करने से लोग ये जान पायेंगे की डिप्रेशन के बारे में बहुत पहले का भारतीय ज्ञान काफी कुछ कहता रहा हैएक बेहद साधारण पाठकhttps://www.blogger.com/profile/14658675333407980521noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7546054676355588576.post-14732044332270869202011-08-07T15:13:54.361+05:302011-08-07T15:13:54.361+05:30मित्र दिवस ने कहा है ....
@मुझे लगता है कि अंग्रेज...मित्र दिवस ने कहा है ....<br />@मुझे लगता है कि अंग्रेजी में लिखे अर्थों से शब्दों की भावना ही मर जाएगी|<br /><br />सुज्ञ जी कहते हैं ....<br />@सरल बनाने के प्रयास में वह ज्ञान विकृत हो गया तो तो सार्थकता समूल नष्ट ही हो जाएगी। भारतीय दर्शन शास्त्र में प्रयुक्त कईं विशिष्ठ शब्द है और कईं उसके मूल भावार्थ में है।<br /><br />आप दोनों की बात से पूर्ण सहमती है , मैंने ही एक लेख इस बात पर लिखा था की किस तरह कन्या शब्द को translate करके कन्यादान को कु-प्रथा बताया जा रहा है <br /><br />मेरा सुझाव तो एडिशनल सुझाव है इसका इम्प्लीमेंटेशन ना हो तो कोई कमीं नहीं आती .बिलकुल भी नहीं , लेकिन मुझे लगता है इसे किसी तरह इम्प्लीमेंट करने पर स्कोप बढ़ सकता है <br />.......कहीं हमारे बीच कुछ misunderstanding हो रही हैएक बेहद साधारण पाठकhttps://www.blogger.com/profile/14658675333407980521noreply@blogger.com