tag:blogger.com,1999:blog-7546054676355588576.post4585096760937094505..comments2023-10-21T14:43:56.493+05:30Comments on सुज्ञ: ध्यान की साधना और मन की दौड़सुज्ञhttp://www.blogger.com/profile/04048005064130736717noreply@blogger.comBlogger81125tag:blogger.com,1999:blog-7546054676355588576.post-23702486601265726662012-09-14T12:55:24.847+05:302012-09-14T12:55:24.847+05:30@साथ ही सोचता हूँ कि क्या 'भक्ति' पर पुनर्...@साथ ही सोचता हूँ कि क्या 'भक्ति' पर पुनर्चिन्तन की ज़रूरत है?<br /><br />प्रतुल जी,<br />जरूरत क्या यह तो अनवरत जारी रहना चाहिए।<br />निरीक्षण इसीलिए है कि हम समीक्षा कर पाएँ। समीक्षा के बाद उपादेय को ही अपनाना चाहिए और जो निरूपयोगी या दुरूपयोगी है उसे समझ लेने के बाद अनावश्यक मान त्याग कर देना चाहिए। यही तो सम्यक चिंतन है और यही विवेक है।सुज्ञhttps://www.blogger.com/profile/04048005064130736717noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7546054676355588576.post-32927941259449996632012-09-13T12:53:51.797+05:302012-09-13T12:53:51.797+05:30क्षेपक प्रसंग :
पाँच सितम्बर की प्रगति मैदान की ...क्षेपक प्रसंग : <br /><br />पाँच सितम्बर की प्रगति मैदान की आखिरी घटना काफी दुखद थी.... प्रगति मैदान से लौटते हुए एक लड़की ने मेट्रो-स्टेशन से छलांग लगाकर अपने प्राणों को विचित्र गति दी. उसे बचाया न जा सका. उस घटना के कारणों को सोचते हुए मैं घर लौट गया... मेट्रो-स्टेशनों पर आजकल इतने अधिक जोड़े प्रेमालाप करते दिखायी देते हैं कि उनका 'रिजल्ट' इस रूप में परिणत होता है. क्या हो गया है हमारी नयी पीढी को? कहीं वे 'प्रेम ही पूजा है' को अपने तरीके से अंजाम तो नहीं दे रहे?प्रतुल वशिष्ठhttps://www.blogger.com/profile/00219952087110106400noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7546054676355588576.post-68846359408111322362012-09-13T12:41:41.021+05:302012-09-13T12:41:41.021+05:30निरीक्षण में भी एकाग्र ध्यान की आवश्यकता होती है। ...निरीक्षण में भी एकाग्र ध्यान की आवश्यकता होती है। <br />@ अब इस सूत्र को ही आधार मानकर बात कहता हूँ. जब भी मंदिर गुरुद्वारे गया हूँ... वहाँ जितने भी भक्तों की भक्ति का निरीक्षण मैंने किया ... वह सुविधागामी भक्ति लगी, वह छिपे रूप से दैहिक सुख की तलाश में लगी. <br />माता के मंदिर में हाथ जोड़े भक्तन हो या फिर नानक भजन को सुनने बैठी वृद्धाएँ; साईं मंदिर में किसी चमत्कार की आस लिये प्रसाद चढाने आयी लम्बी कतारें हों अथवा घंटे-घड़ियालों के निनाद में तात्कालिक घरेलु क्लेश भुला देने की चाहना करती सास-बहुएँ हों ..... कहीं-न-कहीं अपने को भक्ति के नाटक से भ्रमित कर रहे होते हैं. <br />मानसिक तनाव और उलझनों से अशांत चित्त ईश्वर की भक्ति के बहाने से दैहिक सुख का हेतु साधता है. ये सुख चौतरफा मिलता है :<br />— तनाव देने वाले परिवेश/ व्यक्तियों को छोड़कर कुछ समय के लिये आँखें बंद कर एकाकी हो जाना मानसिक थकान को राहत पहुँचाता है. <br />— ईश वंदना करते व्यक्ति को आसपास के तकरार करने वाले भी नहीं छेड़ते... उसके प्रति एक सद्भावना अनायास आ जाती है.<br />— भक्ति के क्रियाकलाप करने वाला व्यक्ति कई प्रकार के दैहिक सुखों की चोरी कर रहा होता है.... <br />आँख खोलकर – मूर्तियों के 'सौन्दर्य-दर्शन' की चोरी, <br />आँख बंदकरके – ध्यानमग्न मुद्रा में 'निद्रा-पीठिका' की चोरी, <br />बैठने की स्थिति से – गरमी के मौसम में सुखासन से 'फर्श शीतलता' की चोरी, <br />देर तक बैठकर – जिस परिवेश/व्यक्ति से बचकर आये उसी परिवेश/व्यक्ति से 'नज़रों की चोरी'. <br />एक ही क्रिया दोहराने के पीछे ऐसे भक्तों का सुविधागामी चरित्र ही उद्भासित होता है.... अन्य कार्यों को कमतर आँकना और भक्ति को उच्चतर ठहराना क्या 'कर्तव्य चोरी' नहीं है? <br />मैंने पूजा में ईश्वर से प्रार्थना की...'जब मैं अमुक के घर जाऊं तो मेरा कार्य अविलम्ब पूरा हो जाये' ... लेकिन अमुक व्यक्ति ठहरा 'पूजापाठी', घनघोर धार्मिक ... दो घंटों तक 'सुन्दर कांड' करने के उपरान्त ही उठा. उसकी पूजा मेरी पूजा पर भारी पड़ गयी. क्या पूजाओं में भी प्रतिस्पर्धा हो सकती है? परिणाम में एक को असफलता मिले और दूसरे को सफलता... क्या पूजाओं का परिणाम भी अनिशिचित होता है? <br />प्रायः सभी अपनी-अपनी योग्यताओं के द्वारा एक-दूसरे का निरीक्षण किया करते हैं... कुछ बहुत ध्यान से करते हैं तो कुछ कम ध्यान से. <br />एकाग्रता तभी संभव हो पाती है जब आगे केवल एक ही प्रभावी व्यक्ति/विषय/वस्तु होता है....<br />समय मिलते ही .... अन्य जिज्ञासाओं के साथ उपस्थि होऊंगा.<br />______________<br />निवेदन : मुझे लगता है कि मेरी उलझनों का निवारण यहीं हो सकता है? इसलिये यहाँ आता हूँ...अन्य कोई प्रयोजन नहीं. <br />साथ ही सोचता हूँ कि क्या 'भक्ति' पर पुनर्चिन्तन की ज़रूरत है? प्रतुल वशिष्ठhttps://www.blogger.com/profile/00219952087110106400noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7546054676355588576.post-14046320271442904322012-09-06T19:21:45.885+05:302012-09-06T19:21:45.885+05:30संजय जी,
मॉनीटर पर स्नेह के लिए आभार :)
ये गुरूजी ...संजय जी,<br />मॉनीटर पर स्नेह के लिए आभार :)<br />ये गुरूजी है प्रतुल जी, तोलते बड़ा बारीक है मन भर की तुला में रत्ती का सटीक हिसाब रखते है।<br />सुज्ञhttps://www.blogger.com/profile/04048005064130736717noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7546054676355588576.post-58322405017649669032012-09-06T19:16:23.065+05:302012-09-06T19:16:23.065+05:30पिछले शुक्रवार को हमारे कॉलेज में विवेकानंद जी के ...पिछले शुक्रवार को हमारे कॉलेज में विवेकानंद जी के बारे में जागृति के लिए एक टीम आई थी | उन्होंने भी यह कहा कि हम मानते हैं कि हर बुराई का हल शिक्षा / एजुकेशन है | यदि एजुकेशन सिस्टम में भी भ्रष्टाचार प्रविष्ट होता जाएगा (जैसा कि हो रहा है आज ) तब तो समाज को नीचे से निचले स्तर पर जाने से रोकना असंभव ही हो जाएगा | <br /><br />और यह हो रहा है | स्कूल के टीचरों पर प्रेशर है अच्छे रिज़ल्ट आने का - नहीं तो (प्राइवेट) स्कूल में एडमिशन कम होंगे, और स्कूल प्रशासन को नुकसान होगा | तो टीचर क्या करें ? और सरकारी स्कूलों के टीचरों को भी एक्सप्लेनेशन देना पड़ता है बुरे नतीजों के लिए - जबकि कई गरीब घरों से बच्चों को स्कूल भेजा ही नहीं जाता | तो टीचर क्या करता है ? उसे कोई शौक थोड़े ही है कि मेमो मिले, एक्सप्लेनेशन दे | तो एक दो या तीन साल ईमानदार रहने के बाद कई शिक्षक (सब नहीं ) खुद ही परीक्षा हाल में नक़ल कराते हैं | जब नन्हे नन्हे बच्चे बचपन से देखें कि शिक्षक नक़ल करा रहे हैं - तो वे क्या सीखेंगे ?<br /><br />यही बात तकनीकी शिक्षा में है | सरकार हर साल १०-१५ नए कॉलेज खोलने की अनुमति दे देती है - कैसे - यह तो हम सब जानते ही हैं | फिर उस कॉलेज की मेनेजमेंट अपने स्टाफ से कहती है कि रिज़ल्ट अच्छे नहीं आये तो तुम्हारी नौकरी गयी | तो स्टाफ क्या करेगा ( फिर वही - सब ऐसे नहीं हैं ) - परन्तु अनेक ऐसे हैं जो ऐसे ही संस्थानों से पास होकर निकले हैं | :(<br /><br />भ्रष्टाचार कहाँ कहाँ पहुंचता जा रहा है :(Shilpa Mehta : शिल्पा मेहताhttps://www.blogger.com/profile/17400896960704879428noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7546054676355588576.post-20548111593804916572012-09-06T19:05:48.645+05:302012-09-06T19:05:48.645+05:30@लेकिन वे यदि उन्हें जबरन कही या कुतर्क की श्रेणी ...@लेकिन वे यदि उन्हें जबरन कही या कुतर्क की श्रेणी में नहीं मानें जाएँ तो हिम्मत बँधे... <br /><br />समझ पर संदेह न करें प्रतुल जी, आपकी हिम्मत के ही तो कायल है :)<br />अवश्य करें चिंतन की छेड अन्यथा हमारी सभा को पूछेगा कौन?सुज्ञhttps://www.blogger.com/profile/04048005064130736717noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7546054676355588576.post-88372617003874711912012-09-06T18:49:29.319+05:302012-09-06T18:49:29.319+05:30'नक़ल'(चोरी) या चालाकी' के बारे में बच्...'नक़ल'(चोरी) या चालाकी' के बारे में बच्चों के विचार कुछ इस तरह है --- "नहीं करेंगे तो होशियार कैसे बनेंगे."<br /><br />दुखद है कि बच्चों की अवधारणा में, चोरी व चालाकी, होशियारी व चतुरता के रूप में स्थापित हुए जा रही है।सुज्ञhttps://www.blogger.com/profile/04048005064130736717noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7546054676355588576.post-66003957758672803802012-09-06T13:38:07.375+05:302012-09-06T13:38:07.375+05:30मुझे तो खुद ही यह भय रहता है की मुझे "बहस बाज...मुझे तो खुद ही यह भय रहता है की मुझे "बहस बाज" लेबल किया जाता रहा है | ( और आगे किया जाएगा ) <br /><br />यदि आप कुछ कहना चाहें, तो मैं उसे अकारण ही कुतर्क मान लूंगी, यह बिलकुल न मानियेगा | मुझे जो , जब , जितना उचित और सही लगता है, मैं कहती हूँ, आपको जो सही और उचित लगे - आप कहिये | मैं खुद ही कोई परफेक्ट थोड़े ही हूँ जो दूसरों को judge कर सकती होऊं :)Shilpa Mehta : शिल्पा मेहताhttps://www.blogger.com/profile/17400896960704879428noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7546054676355588576.post-49367574332277149162012-09-06T13:31:58.307+05:302012-09-06T13:31:58.307+05:30तमाम बातें कहनी हैं, शिल्पा जी से भी और सुज्ञ जी स...तमाम बातें कहनी हैं, शिल्पा जी से भी और सुज्ञ जी से ... लेकिन वे यदि उन्हें जबरन कही या कुतर्क की श्रेणी में नहीं मानें जाएँ तो हिम्मत बँधे... <br /><br />शिल्पा जी और सुज्ञ जी की ये विशेषता है कि वे अधूरी बातों से भी पूरे प्रकरण को भाँप लेते हैं... और अस्पष्ट बातों से भी मन की थाह ले लेते हैं.... गजब की मेधा है... इसीसे अभिभूत हो जाता हूँ.<br /><br />अब बताइये इनसे बातचीत की छेड़ न की जाये तो किससे की जाये? प्रतुल वशिष्ठhttps://www.blogger.com/profile/00219952087110106400noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7546054676355588576.post-28865917835323927112012-09-06T13:20:56.728+05:302012-09-06T13:20:56.728+05:30खैर, हम तो ’कल’ का इंतजार करेंगे ही और प्रतुलजी से...खैर, हम तो ’कल’ का इंतजार करेंगे ही और प्रतुलजी से अनुरोध कि 'प्रगति' संबंधी जानकारी भी मुहैया करवायें।<br />@ सत्संगी साथियो, क्षमा चाहता हूँ.... कल अचानक ही बाल साहित्यकारों की चर्चा में भाग लेने जाना पड़ा... <br />नेशनल बुक ट्रस्ट में कुछ समय कार्य करने से एक अच्छे श्रोता के रूप में मेरी भी पहचान बन गयी है... वक्ताओं को अच्छे श्रोताओं की अपेक्षा हमेशा बनी रही है... इसलिये प्रतिक्रियाशील श्रोताओं में मुझे स्थान मिलने लगा है... इसलिये 'राष्ट्रीय बाल साहित्य केंद्र के सम्पादक और पुस्तकालयाध्यक्ष जी की एक सूचना पर ही मैं वहाँ पहुँच गया... <br />चर्चा का विषय था : 'बच्चों को कहानी सुनाने की कला'<br />मुख्य चर्चाकार थे : श्रीमती क्षमा शर्मा (कार्यकारी सम्पादक नंदन से), प्रोफ़ेसर आशीष घोष (प्रसिद्ध रंगकर्मी) और श्री अशोक कुमार पाण्डेय (प्रिंसिपल, अल्कोन इंटरनेशनल स्कूल से)<br />सभी के संक्षेप में विचार रखता हूँ : <br />क्षमा शर्मा : <br />— बच्चों के बीच में जाकर ही कहानियों के कथ्य और विषय परखे जा सकते हैं. बच्चों से नहीं पूछा जाता कि उन्हें क्या पसंद है.<br />— गाँव और शहर के बच्चों का आकर्षण एक-दूसरे के परिवेश के प्रति रहता है.<br />— बच्चे को हमेशा तर्क नहीं भाते उसे कार्टून की दुनिया भी अच्छी लगती है. <br />— बच्चों को दुखांत के बजाय सुखान्त कहानियाँ अधिक भाती हैं. <br />— आज मीडिया द्वारा बनाए 'रोल मोडल' ही बच्चे स्वीकार रहे हैं. शायद ही कोई लेखक को अपना रोल मोडल बनाने को तैयार हो.<br />— बच्चे आज़ चालाक हो गये हैं. (?)<br />प्रोफ. आशीष घोष :<br />— अपने एक अनुभव बताया कि उनसे जब किसी लेखक ने पूछा कि 'तुम इतना अच्छा कैसे एक्ट कर लेते हो?' उत्तर में मैंने पूछा 'तुम इतना अच्छा कैसे कह लेते हो?' मतलब सभी की काबलियत और रुचियाँ अलग-अलग होती हैं.<br />— बच्चे हमेशा ग्रहण (ओब्जर्ब) करते हैं.<br />— 'नक़ल'(चोरी) या चालाकी' के बारे में बच्चों के विचार कुछ इस तरह है --- "नहीं करेंगे तो होशियार कैसे बनेंगे."<br />श्री अशोक कुमार पाण्डेय : <br />— क्योंकि उस दिन 'शिक्षक दिवस' भी था, इसलिये उन्होंने कुछ छात्रों से ही पूछा कि 'आप एक अध्यापक से क्या अपेक्षा रखते हैं?' <br />उत्तर में उन्हें एक छात्रा ने कहा - वह उचित मार्गदर्शन करे, सामाजिक बनाने के लिए हर वह उपाय करे जो जरूरी हो<br />— उन्होंने ये भी कहा कि बहुत बड़े बुद्धिजीवी भी कभी-कभी ऐसे कार्य करते हैं जो उनकी मूर्खता को दर्शाते हैं --<br />जैसे न्यूटन ने दो बिल्लियाँ पाली हुई थीं... एक छोटी थी और दूसरी मोटी और बड़ी... न्यूटन ने अपने घर में उनके आने-जाने के लिये दो छेद किये हुए थे... एक छोटा और एक बड़ा.<br />— बहुत छोटे बच्चे जो कहानियों की समझ नहीं रखते, उन्हें मनगढ़ंत बातों से सिखाया जा सकता है... उनके लिये वही कहानियाँ हैं.<br /><br />आखिर में मेरे सवालों ने चर्चा को गरमागरम बनाया : <br />जब मैंने पूछा -- "मुझे लगता है -- कथा-वाचन की कला से ज़्यादा कथा वाचन के समय की समस्या है. कौन से समय में बच्चा कहानी सुनने के लिये तैयार मिलता है? <br />नींद आने से पहले का समय तो आरक्षित हो गया है... उस बीच या तो समाचार लगे होते हैं..या फिर दैनिक धारावाहिक, बच्चों के कार्टून नेटवर्क ने भी उन्हें बाँधा हुआ है... फिर अलग से कौन-सा समय लाया जाये जिसमें बच्चा हमारी कहानियों में रुचि ले पाये? आपने देखा होगा ... जैसे 'रेल का सफ़र' जिसमें करने को अन्य कुछ नहीं होता यात्रा करने के सिवाय... तो बातचीत अच्छी हो जाती है. अपरिचितो से भी हमारी खूब पटती है. ...<br />— स्कूल की पीरियड-दर-पीरियड पढ़ाई के कारण थके दिमाग बच्चे (छात्र) कोई भी कहानी सुनने को कैसे तैयार हो सकते हैं? बहुत पहले रात्रि में नींद से पहले शारीरिक थकावट से बिस्तर पर लेटा बच्चा कहानी सुनने को तैयार मिलता था, वह किसी भी बुजुर्ग के पीछे पड़ा रहता था. लेकिन आज न तो बच्चों के पास कहानी सुनने का समय है और न ही बड़ों में वे रुचियाँ हैं जो अपने बच्चों में कहानियों से सिखा सकें.'प्रतुल वशिष्ठhttps://www.blogger.com/profile/00219952087110106400noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7546054676355588576.post-23112534889720467172012-09-05T22:51:10.048+05:302012-09-05T22:51:10.048+05:30@ दूसरों के लिए तो हमारे पास समय की कोई कमी नहीं क...@ दूसरों के लिए तो हमारे पास समय की कोई कमी नहीं किन्तु जो ध्यान आत्मचिंतन स्वयं हमारे अपने लिए है, हमारे पास समय नहीं या गम्भीरता नहीं।<br />कुर्बान जाऊं सुज्ञ जी, एकदम ऐसा लगा है जैसे किसी जख्म में उंगली घुसेड दी हो किसी ने| संजय @ मो सम कौन...https://www.blogger.com/profile/14228941174553930859noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7546054676355588576.post-26008282110196868792012-09-05T22:44:37.206+05:302012-09-05T22:44:37.206+05:30प्रतुल जी, शिल्पा जी,
’क’ का इन्तजार रहेगा।
जैसाक...प्रतुल जी, शिल्पा जी,<br />’क’ का इन्तजार रहेगा। <br />जैसाकि मानीटर भाई ने कहा(हम तो बस मुहर लगा रहे हैं), चर्चा को आगे बढाने की यह भी एक शैली है जिसका उपयोग प्रतुलजी करते हैं। कई बार मैंने देखा है कि गलत भी समझ लिये गये लेकिन यहां ऐसी कोई गुंजाईश नहीं है। फ़िर जैसा प्रतुलजी ने कहा कि ’ 'प्रश्न' और 'जिज्ञासा' यदि तर्कशास्त्रियों व चिंतकों के समक्ष न रखे जाएँ तो कहाँ रखे जाएँ?’ (हमारी मुहर अब प्रतुलजी की बात पर) अब देखिये न, कल का नाम लिया इन्होंने तो मुझे भी गदाधारी भीम से संबंधित एक कहानी याद आ गई। खैर, हम तो ’कल’ का इंतजार करेंगे ही और प्रतुलजी से अनुरोध कि प्रगति संबंधी जानकारी भी मुहैया करवायें। <br />प्रगति = प्रगति मैदान :)संजय @ मो सम कौन...https://www.blogger.com/profile/14228941174553930859noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7546054676355588576.post-32574657700380695742012-09-05T21:51:22.836+05:302012-09-05T21:51:22.836+05:30:) :) Shilpa Mehta : शिल्पा मेहताhttps://www.blogger.com/profile/17400896960704879428noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7546054676355588576.post-23561103964861870262012-09-05T21:50:33.532+05:302012-09-05T21:50:33.532+05:30true ..true ..Shilpa Mehta : शिल्पा मेहताhttps://www.blogger.com/profile/17400896960704879428noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7546054676355588576.post-44220539910692259202012-09-05T20:25:51.293+05:302012-09-05T20:25:51.293+05:30@ मैं पूजा के संकीर्ण (कुंठित) क्षेत्र से निकलकर ...@ मैं पूजा के संकीर्ण (कुंठित) क्षेत्र से निकलकर विष्णु (बैकुंठ) क्षेत्र में जा बैठा.... <br />@ .... इसलिये इस सुखद चर्चा को छोड़ने को विवश हूँ.... परमात्मा मुझे ....<br /><br />बिलकुल - यदि यह स्थिति है, जीवन के कर्म यदि परमात्मा के प्रेरित करने से हो रहे हैं ही, तब तो न पूजाघर में बैठने की आवश्यकता रह जाती है, न ही इतने विचार मंथन की | <br /><br />नारद के सर्वश्रेष्ठ भक्ति के बारे में पूछने पर श्री विष्णु ने यही कहा था की वह किसान - जो कभी मंदिर नहीं जाता, किन्तु उसका हर कर्म ही पूजा होता है - उसे मंदिर जाने की आवश्यकता रह ही नहीं जाती | लेकिन इस कथा में उस उच्च श्रेणी की भक्ति की बात नहीं हो रही थी, इसमें साधारण प्रयास की बात हो रही थी जो अक्सर हम साधारणजन पूजा के नाम पर करते हैं |उस सन्दर्भ में मानसिक एकाग्रता के **प्रयास** आवश्यक हैं, क्योंकि मन को एकाग्र करना कोई आसान कार्य नहीं है |अर्जुन ने भी कृष्ण से कहा था गीतोपदेश के दौरान - की अनेकानेक घोड़े मैं साध सकता हूँ, किन्तु मन को साधना उससे भी कठिन है |<br /><br />----------<br />@ पता नहीं चलता कि व्यक्ति आस्तिक है या नास्तिक।<br />यह तो बात आपकी सोलह आने सच है :)Shilpa Mehta : शिल्पा मेहताhttps://www.blogger.com/profile/17400896960704879428noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7546054676355588576.post-32841775647171006562012-09-05T19:14:45.929+05:302012-09-05T19:14:45.929+05:30इस प्रतिक्रिया के लिए बहुत बहुत आभार दीपक जी।इस प्रतिक्रिया के लिए बहुत बहुत आभार दीपक जी।सुज्ञhttps://www.blogger.com/profile/04048005064130736717noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7546054676355588576.post-20565569540045169142012-09-05T19:04:50.361+05:302012-09-05T19:04:50.361+05:30टाइपिंग मिस्कटेक..
शिल्प जी = शिल्पा जी,टाइपिंग मिस्कटेक..<br /><br />शिल्प जी = शिल्पा जी,दीपक बाबाhttps://www.blogger.com/profile/14225710037311600528noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7546054676355588576.post-34705799937213004732012-09-05T19:04:25.440+05:302012-09-05T19:04:25.440+05:30दीपक जी,
एक के साधे सब सधे, सब साधे सब जाय।
मन को...दीपक जी,<br /><br />एक के साधे सब सधे, सब साधे सब जाय।<br />मन को साधने से सब सध जाता है किन्तु सभी को साधने के प्रयास में सभी फिसल जाता है।सुज्ञhttps://www.blogger.com/profile/04048005064130736717noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7546054676355588576.post-1860278366531183762012-09-05T19:03:46.417+05:302012-09-05T19:03:46.417+05:30सुज्ञ जी, बेहतरीन पोस्ट के लिए आभार.
वशिष्ट जी, श...सुज्ञ जी, बेहतरीन पोस्ट के लिए आभार.<br /><br />वशिष्ट जी, शिल्प जी, और सुज्ञ जी, टीप के दौरान आध्यात्म पर प्रकाश डाल कर आपने इस पोस्ट को एक नया आयाम दिया है... साधुवाद.दीपक बाबाhttps://www.blogger.com/profile/14225710037311600528noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7546054676355588576.post-76655577527866622442012-09-05T18:58:18.416+05:302012-09-05T18:58:18.416+05:30सबसे दुष्कर है मन के घोडों को नियंत्रित कर पाना।
...सबसे दुष्कर है मन के घोडों को नियंत्रित कर पाना।<br /><br />वास्तव में, ये घोड़े इतनी आसानी से नहीं सधते. <br /><br />पूजा के समय मैं रोज ही चमार की दुकान पर होता हूँ, :) गया न मन का मेल.दीपक बाबाhttps://www.blogger.com/profile/14225710037311600528noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7546054676355588576.post-82228574535318669012012-09-05T18:30:16.384+05:302012-09-05T18:30:16.384+05:30सही कहा वाणी जी, आभार!!सही कहा वाणी जी, आभार!!सुज्ञhttps://www.blogger.com/profile/04048005064130736717noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7546054676355588576.post-75425220955649736712012-09-05T18:10:16.709+05:302012-09-05T18:10:16.709+05:30मन के बेलगाम घोड़ों को वश में रखना ही सच्चा ध्यान ह...मन के बेलगाम घोड़ों को वश में रखना ही सच्चा ध्यान है !वाणी गीतhttps://www.blogger.com/profile/01846470925557893834noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7546054676355588576.post-47976487521834419022012-09-05T17:31:35.987+05:302012-09-05T17:31:35.987+05:30आभार शिल्पा जी, यह तथा न केवल पूजा बल्कि जीवन के प...आभार शिल्पा जी, यह तथा न केवल पूजा बल्कि जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में कर्म व कर्तव्य में आत्मावलोकन, ध्यान और एकाग्रता के महत्व को स्थापित करती है।सुज्ञhttps://www.blogger.com/profile/04048005064130736717noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7546054676355588576.post-50170183527189967002012-09-05T17:28:27.621+05:302012-09-05T17:28:27.621+05:30मृदुला जी, आभार!!मृदुला जी, आभार!!सुज्ञhttps://www.blogger.com/profile/04048005064130736717noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7546054676355588576.post-14555996514239299252012-09-05T17:27:54.220+05:302012-09-05T17:27:54.220+05:30आभार सुमन जीआभार सुमन जीसुज्ञhttps://www.blogger.com/profile/04048005064130736717noreply@blogger.com