tag:blogger.com,1999:blog-7546054676355588576.post3448092788520526897..comments2023-10-21T14:43:56.493+05:30Comments on सुज्ञ: ईश्वर हमारे काम नहीं करता…सुज्ञhttp://www.blogger.com/profile/04048005064130736717noreply@blogger.comBlogger47125tag:blogger.com,1999:blog-7546054676355588576.post-15447204209942708462011-05-02T20:12:38.493+05:302011-05-02T20:12:38.493+05:30कर्म के बिना फल सम्भव ही नहीं|धन्यवाद|कर्म के बिना फल सम्भव ही नहीं|धन्यवाद|Patali-The-Villagehttps://www.blogger.com/profile/08855726404095683355noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7546054676355588576.post-65489364793268742262011-05-01T21:08:11.511+05:302011-05-01T21:08:11.511+05:30be-lated happy birthday to SUGYA.aap ki umar lambi...be-lated happy birthday to SUGYA.aap ki umar lambi ho bhagvan se yahi prathna hai.ललित "अटल"https://www.blogger.com/profile/05909260328579234920noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7546054676355588576.post-20730507465475715262011-05-01T21:01:23.853+05:302011-05-01T21:01:23.853+05:30bahut hi gyanvardhak charcha ho rahi hai, Sugyajibahut hi gyanvardhak charcha ho rahi hai, Sugyajiललित "अटल"https://www.blogger.com/profile/05909260328579234920noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7546054676355588576.post-89442671944615507632011-05-01T20:51:00.653+05:302011-05-01T20:51:00.653+05:30देवेन्द्र जी ने सही कहा , चर्चा उत्तरोत्तर गहन होत...देवेन्द्र जी ने सही कहा , चर्चा उत्तरोत्तर गहन होती जा रही है। मुझे भी आगे की कड़ियों का इंतजार रहेगा।.ZEALhttps://www.blogger.com/profile/04046257625059781313noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7546054676355588576.post-22984800550526361912011-05-01T09:44:01.765+05:302011-05-01T09:44:01.765+05:30चारो कड़ियाँ पढ़ी मगर इस पर आये एक भी कमेंट नहीं प...चारो कड़ियाँ पढ़ी मगर इस पर आये एक भी कमेंट नहीं पढ़ा पाया हूँ।<br />ईश्वर के संबंध में नीर क्षीर विवेक ही है यह चर्चा। पहली, दूसरी कड़ी तीसरी, चौथी की तुलना में अधिक रोचक ढंग से अपनी बात रखती है<br />लेकिन चर्चा उत्तरोत्तर गहन होती जा रही है। आगे की कड़ियों का इंतजार रहेगा।..आभार।देवेन्द्र पाण्डेयhttps://www.blogger.com/profile/07466843806711544757noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7546054676355588576.post-87294374930760046562011-04-30T17:30:31.926+05:302011-04-30T17:30:31.926+05:30पुरूषार्थ हमें ही करना होगा ....
सत्य तो यही है ....पुरूषार्थ हमें ही करना होगा ....<br /><br />सत्य तो यही है .... जीवन का अकाट्य सत्य .....दिगम्बर नासवाhttps://www.blogger.com/profile/11793607017463281505noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7546054676355588576.post-22078637437527184072011-04-30T17:00:40.922+05:302011-04-30T17:00:40.922+05:30बहुत सुन्दर विमर्श ...ज्ञानवर्धन हुआ।
आभार।बहुत सुन्दर विमर्श ...ज्ञानवर्धन हुआ।<br />आभार।ZEALhttps://www.blogger.com/profile/04046257625059781313noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7546054676355588576.post-35568610804117290942011-04-30T13:09:06.664+05:302011-04-30T13:09:06.664+05:30बहुत ही बढ़िया आलेख .....चिंतन को प्रेरित करता हुआ...बहुत ही बढ़िया आलेख .....चिंतन को प्रेरित करता हुआ<br />टिप्पणियों में भी अच्छा विमर्श दिख रहा है...पर बाद में उसे पढ़ती हूँ...आभारrashmi ravijahttps://www.blogger.com/profile/04858127136023935113noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7546054676355588576.post-28227903014852264822011-04-30T11:46:11.890+05:302011-04-30T11:46:11.890+05:30ए भाई सुगी जी ! हमरा के नईं खे पता के ई नमवा बिहार...ए भाई सुगी जी ! हमरा के नईं खे पता के ई नमवा बिहारी बाऊ काहे धइलन...बाकी प्यार बहुत झलकत बा, एकदम चौबीस कैरेट बाला ........ अब त हमहूँ सूगीये जी कहब. <br />ना भाई सुगी जी ! अइसन मत कहीं ....परकांड त बहुत भारी सब्द हो गइल बा. हमरा खातिर अइसन भाव .....ई त राउर गुन गराहकता बा ....बस इहै बिनती बा के बिमर्स करत रहीं ......आ सनातनधर्म के अलख जगात रहीं....बस्तर की अभिव्यक्ति जैसे कोई झरनाhttps://www.blogger.com/profile/11751508655295186269noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7546054676355588576.post-89602771476680181472011-04-30T08:27:11.462+05:302011-04-30T08:27:11.462+05:30ई हमरा नाम सुगी काहे कह दिए है, बर्थ-डे ब्वॉय बिहा...ई हमरा नाम सुगी काहे कह दिए है, बर्थ-डे ब्वॉय बिहारी बाबू? आज हमरा सुज्ञ भी एक साल का हुइ गवा।सुज्ञhttps://www.blogger.com/profile/04048005064130736717noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7546054676355588576.post-83594580643420177112011-04-30T01:02:47.651+05:302011-04-30T01:02:47.651+05:30सुगी जी यहाँ आकर,आपके सुन्दर विचार के साथ साथ एनी ...सुगी जी यहाँ आकर,आपके सुन्दर विचार के साथ साथ एनी मनीषियों का विमर्श भी प्राप्त होता है.. अद्भुत ज्ञान गंगा में स्नान कर आत्मा तृप्त हो जाती है.. आभार!!चला बिहारी ब्लॉगर बननेhttps://www.blogger.com/profile/05849469885059634620noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7546054676355588576.post-22967686022654231482011-04-29T23:13:59.528+05:302011-04-29T23:13:59.528+05:30कईं इन्स्टिट्यूट द्वारा 'व्यक्तित्व विकास'...कईं इन्स्टिट्यूट द्वारा 'व्यक्तित्व विकास' का प्रशिक्षण होता है। वहां यही नियम होता है-"बीस हो तो अस्सी दिखो." यह उन प्रोग्रामों की आवश्यकता ही होती है। वह दिखावे का ही प्रशिक्षण है तो उसी के समर्थित नियम होंगे।<br /><br />लेकिन इन मामलों में संस्कृति के संरक्षण का उद्देश्य होता है।<br /><br />यहां भी कोई मान-भूखा बाबा अपने मर्केटिंग उद्देश्य से अपने त्याग को बढा चढा कर कहे वह अलग बात है।सुज्ञhttps://www.blogger.com/profile/04048005064130736717noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7546054676355588576.post-28035447722127048402011-04-29T23:01:58.688+05:302011-04-29T23:01:58.688+05:30कौशलेन्द्र जी तो दर्शन-शास्त्र के प्रकांड विद्वान ...कौशलेन्द्र जी तो दर्शन-शास्त्र के प्रकांड विद्वान है!!सुज्ञhttps://www.blogger.com/profile/04048005064130736717noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7546054676355588576.post-75806014838297497472011-04-29T22:59:37.617+05:302011-04-29T22:59:37.617+05:30प्रतुल जी,
आपने '१०० प्रतिशत का बखान करो'...प्रतुल जी,<br /><br />आपने '१०० प्रतिशत का बखान करो'<br /><br />नहीं प्रतुल जी मेरा आशय वह नहीं है, मैं प्रदर्शन की बात नहीं कर रहा। मैं तो उल्टा कह रहा हूं अगर हम कुछ कम है तो स्वीकार करो, अधूरे है तो कहो यह अधूरा है, सम्पूर्ण सच्च का गोपन मत करो, हमारे अधूरे पालन को सम्पूर्ण का दिखावा न करो न मानो। और इमानदारी से बता दो सम्पूर्ण सत्य क्या है। व्याख्या करो बखान नहीं।सुज्ञhttps://www.blogger.com/profile/04048005064130736717noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7546054676355588576.post-68619025715826567252011-04-29T22:51:11.382+05:302011-04-29T22:51:11.382+05:30सुज्ञ जी,
आपने '१०० प्रतिशत का बखान करो' ...सुज्ञ जी, <br />आपने '१०० प्रतिशत का बखान करो' के पक्ष में बात कही. कुछ हद तक सहमत हूँ किन्तु <br />मेरी एक व्यंग्य कथा की व्यंग्य सीख है : "बीस हो तो अस्सी दिखो." क्या इस बात का समर्थन तो नहीं हो रहा. <br />मतलब कम योग्य होने पर भी पूरी योग्यता का प्रदर्शन करो. <br />क्षमतानुसार कम त्याग कर पाने का माद्दा हो तो भी बात सम्पूर्ण त्याग की करनी चाहिए.प्रतुल वशिष्ठhttps://www.blogger.com/profile/00219952087110106400noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7546054676355588576.post-84856868546064260552011-04-29T22:44:14.024+05:302011-04-29T22:44:14.024+05:30सुज्ञ जी
चाहता था आपसे बतिया लूँ लेकिन कौशलेन्द्र...सुज्ञ जी <br />चाहता था आपसे बतिया लूँ लेकिन कौशलेन्द्र जी को ध्यान से पढ़ गया अरे वे तो त्याग की आत्मा के दर्शन करा गये. <br />इतना सुन्दर विश्लेषण ...... कमाल है. इतना सूक्ष्म चिंतन ......... धन्य हुआ पढ़कर...प्रतुल वशिष्ठhttps://www.blogger.com/profile/00219952087110106400noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7546054676355588576.post-83950347594458700362011-04-29T22:42:11.860+05:302011-04-29T22:42:11.860+05:30कौशलेन्द्र जी,
जय हो, सुपरिभाषित!!कौशलेन्द्र जी,<br /><br />जय हो, सुपरिभाषित!!सुज्ञhttps://www.blogger.com/profile/04048005064130736717noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7546054676355588576.post-16266403384582412442011-04-29T22:33:09.136+05:302011-04-29T22:33:09.136+05:30सुज्ञ जी ! एवं वशिष्ठ जी !
पहले तो हम यह विचार कर...सुज्ञ जी ! एवं वशिष्ठ जी ! <br />पहले तो हम यह विचार करें कि लोग त्याग करते क्यों हैं ? उत्तर है प्रसन्नता के लिए...किन्तु इससे त्याग का स्वरूप स्पष्ट नहीं होता. <br />क्रोध करने से रक्तचाप का रोगी हो गया ....इस कारण वैकल्यता और बढ़ गयी ......चिकित्सक ने कहा क्रोध का त्याग करना पडेगा ...अन्यथा ब्रेन हेमरेज हो सकता है ......इस मनोविकार पर नियंत्रण के लिए क्रोध का त्याग कर दिया .......पर त्याग नहीं हुआ यह ......स्वलाभ हेतु ...स्व कल्याण हेतु किया गया एक आवश्यक कृत्य हुआ यह तो. <br />तम्बाखू खाने से मुहं का कैंसर होता है ...भयभीत हो कर तम्बाखू का त्याग कर दिया. यह त्याग नहीं ...एक कुटैव से पीछ छुड़ाना हुआ. इससे स्वयं का तो हित हुआ पर पड़ोसी का नहीं .....हो सकता है कि पड़ोसी की ही दूकान से लेता हो ...तो इस त्याग से पड़ोसी का घाटा हो गया. <br />भोजन अधिक बन गया ....बच गया .....सोचा .....फेकने से अच्छा है कि किसी ज़रुरतमंद को दान दे दिया जाय. यह भोजन की उपयोगिता का निर्णय हुआ..त्याग नहीं....दान भी नहीं. केवल भोजन से मोह के कारण उसकी सदुपयोगिता भर.<br />पत्नी से विवाद हो गया. क्रोध में आ कर घर का त्याग कर दिया.....नहीं....त्याग यह भी नहीं हुआ ....तात्कालिक बुद्धिनिर्णीत पारिवारिक समस्या का एक समाधान भर.<br />यह अब मेरे काम का नहीं रहा ......इसलिए त्याग कर दिया .....यह अनुपयोगी वस्तु से मुक्ति पाना हुआ ...त्याग नहीं. फिर आखिर किस त्याग की बात की जा रही है ? <br />विवाद हो रहा था पद को लेकर ..इसलिए राष्ट्र हित में पद का त्याग कर प्रतिद्वंदी को दे दिया ...जिस पर हमारा अधिकार था ...जो हमारे द्वारा अर्जित था ......वह दूसरे को दे दिया ......यह त्याग हुया. <br />जो हमारा अतिप्रिय है ...जिसके बिना हम एक पल रह नहीं सकते थे ...पर आज ....जिसकी आवश्यकता हम से अधिक दूसरे को है .....इसलिए प्रसन्नतापूर्वक दूसरे को दे दिया ..हाँ ! अब यह त्याग हुआ. त्याग में पहला घटक है - स्व उपार्जिता, दूसरा घटक है -जिसका त्याग किया जा रहा है उसके प्रतिप्रेम होना, तीसरा घटक हुआ स्वयं से अधिक दूसरे की आवश्यकता का विचार और चौथा घटक हुआ जनकल्याण का विचार.<br />तो इसका अर्थ यह हुआ कि त्याग की कई परिस्थितियाँ होती हैं .....परिस्थितियों के आधार पर उनकी कई कोटियाँ होती हैं और कोटियों के आधार पर उनकी श्रेष्ठता का निर्णय होता है.बस्तर की अभिव्यक्ति जैसे कोई झरनाhttps://www.blogger.com/profile/11751508655295186269noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7546054676355588576.post-35831540273226575732011-04-29T22:33:00.275+05:302011-04-29T22:33:00.275+05:30प्रतुल जी,
@... कोई राम, महात्मा बुद्ध, महावीर स्...प्रतुल जी,<br /><br />@... कोई राम, महात्मा बुद्ध, महावीर स्वामी, सीता आदि के जीवन को अपने आचरण में कैसे उतार सकता है... कुछेक बातों को ही अपना सकता है. <br />— एक झोपड़ी में रहने वाला राम, बुद्ध और महावीर की तरह राजपाट का त्याग नहीं कर सकता और न ही ऐश्वर्य में पल रहे बीबी-बच्चों को पलता देख अपने अभावग्रस्त बीबी-बच्चों को छोड़कर जा कसता है. कोई समझदार गरीब गृहस्थी भूलकर भी उनके गृह-त्याग को नहीं अपनाएगा.<br /><br />प्रतुल जी,<br /><br />राम जैसा चरित्र और मर्यादा कदाचित आज हम न अपना सकें, और आज बनते अनुसार किंचित अपनाएं। लेकिन जो शिथिल न्यून मर्यादा हमनें अंगीकार की हैं वह सर्वोत्तम श्रेष्ठ मर्यादा नहीं है यह स्वीकार करना और श्रेष्ठ कौनसी है तो वह राम सरीखी होती है यह स्थापित करते रहना। शुद्ध श्रेष्ठ गुणों का संरक्षण है। अन्यथा हमारी शिथिलता<br />उत्तम गुणों का क्षरण कर देगी।<br />राम के समकालिन ऐसा उत्तम चरित्र सहज होगा, आज हम मात्र यह कहते सर्वांग राम जैसा चरित्र नहीं अपनाया जा सकता, बस कुछ अपनाया जा सकता है। आने वाले समय में ऐसा होगा कि मर्यादापुरूषोत्तम? पूरी की पूरी गप्प ऐसा कोई हो भी सकता है भला? गुणों का क्षरण या पतन इसी भांति होता है।<br /><br />इसलिये मैं मानता हूँ, भले श्रेष्ठ गुण मैं अपना न सकुं, अपनी कमजोरी से पाल न सकुं, व्याख्या, प्रस्थापना और महिमामंडन तो मै श्रेष्ठ सर्वोत्तम गुणों का कर सकता हूँ, और मुझे करना भी चाहिए।<br /><br />जैसे मुझे हिंसा न मन से, न वचन से और न काया से। न करनी,न करवानी, न करने वाले का अनुमोदन करना। तभी पूर्ण अहिंसा है।<br />किन्तु मैं मात्र काया से छोड पाया, मन व वचन से त्याग नहीं कर पाया। और करना व करवाना छोड पाया कर अनुमोदन रोक नहीं पाया।<br />इतना अहिंसा का पालन करते हुए भी यदि कोई वास्त्विक अहिंसा का पूछे तो मेरी वाली अहिंसा सम्पूर्ण नहीं है यह स्वीकार करते हुए, मुझे उसे बताना ही चाहिए कि तीन करण तीन योग से पालन की गई अहिंसा ही सही अहिंसा है।सुज्ञhttps://www.blogger.com/profile/04048005064130736717noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7546054676355588576.post-84032440191350203172011-04-29T21:18:54.735+05:302011-04-29T21:18:54.735+05:30कौशलेन्द्र जी,
यह तो शानदार लघु-कथा है, थोडी और ...कौशलेन्द्र जी,<br /><br />यह तो शानदार लघु-कथा है, थोडी और ऊन्नत कर पोस्ट कर दिजिए।सुज्ञhttps://www.blogger.com/profile/04048005064130736717noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7546054676355588576.post-32372889159814961612011-04-29T21:04:54.196+05:302011-04-29T21:04:54.196+05:30ठीक है आप लोग आइये एक घंटे बाद ...तब तक मैं भी ईश्...ठीक है आप लोग आइये एक घंटे बाद ...तब तक मैं भी ईश्वर से लड़ कर आता हूँ ...ये क्या बात हुयी कि इतनी पूजा...अर्चना.....फूल-माला......मिठाई.....मनौती .....दान दक्षिणा के बाद भी भक्त का काम नहीं किया ?......सरासर बेईमानी ....हमारे छत्तीसगढ़ में आजकल यही होने लगा है ...पैसा देने के बाद भी काम नहीं होता. लोग शिकायत करेंगे ही. हमें ईश्वर के विरुद्ध आवाज़ उठानी होगी ......नहीं तो फिर आन्दोलन ...हड़ताल ...आत्मदाह ...सब करना होगा. <br />ईश्वर हमारे अधिकारी जी का नाम है और भक्त हमारे कम्पाउण्डर का .... ....बेचारा कई साल से परेशान है अभी तक रेग्युलर नहीं हुआ. भक्त बड़ा दुखी है ...ईश्वर भी दुखी है क्योंकि इतनी रिश्वत खोरी के बाद भी बीमार रहता है ....उसे डायबिटीज भी है.बस्तर की अभिव्यक्ति जैसे कोई झरनाhttps://www.blogger.com/profile/11751508655295186269noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7546054676355588576.post-74558288618450774832011-04-29T21:04:06.273+05:302011-04-29T21:04:06.273+05:30कौशलेन्द्र जी,
आप आए, बडी खुशी हुई! चलो दो से भले...कौशलेन्द्र जी,<br /><br />आप आए, बडी खुशी हुई! चलो दो से भले तीन! आनंद तिगुना।<br /><br />बडी मस्त बात कही…।<br /><br />पुस्तक तो वह पत्थर है जिस पर हमें बुद्धि को रगड़कर धारदार बनाना है. उससे अधिक उसका उपयोग नहीं ...बल्कि वही उसका एक मात्र उपयोग है।<br /><br />प्रतुल जी भी जानते है। मेरी नस नस ;))सुज्ञhttps://www.blogger.com/profile/04048005064130736717noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7546054676355588576.post-3648291958800934072011-04-29T20:49:40.424+05:302011-04-29T20:49:40.424+05:30प्रतुल जी उवाच -"जैसे मैंने दुर्गुण विशेष [क्...प्रतुल जी उवाच -"जैसे मैंने दुर्गुण विशेष [क्रोध] का त्याग किया. क्योंकि उसका आगमन मुझे अशांत कर देता है".<br /><br />विप्र गणों ! बड़ा ही अच्छ विषय उठाया है आपने ....एक विषय और मिल गया. <br />वशिष्ठ जी ! क्रोध का त्याग यदि हम नहीं करेंगे तो हमें उसका दंड भोगना पडेगा ....यह एक समझदार व्यक्ति की विवशता है कि उसे क्रोध त्यागना पडेगा. सुज्ञ जी ने जिस त्याग की बात की है उसमें कोई विवशता नहीं है.........कोई दबाव नहीं है .......उस त्याग में दूसरों के कल्याण की भावना निहित है.....क्रोध को त्यागने में तो हमारा स्वार्थ है ...परोपकार कहाँ ?<br />पुस्तक के पीछे मत पड़िए विप्र जी ! वह हमारे विचारों को बाँध देती है ...एक सीमा रेखा खींच देती है .....पुस्तक तो वह पत्थर है जिस पर हमें बुद्धि को रगड़कर धारदार बनाना है. उससे अधिक उसका उपयोग नहीं ...बल्कि वही उसका एक मात्र उपयोग है. कबीर अपने युग के अनेकों विद्वानों से बहुत आगे थे ......न पढ़े ...न लिखे .....फक्कड़ .........सुज्ञ जी की मंडली में फक्कड़ बन कर आना होगा.बस्तर की अभिव्यक्ति जैसे कोई झरनाhttps://www.blogger.com/profile/11751508655295186269noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7546054676355588576.post-58595928741373712672011-04-29T20:17:21.326+05:302011-04-29T20:17:21.326+05:30प्रतुल जी,
गुणों का अवमूल्यन कितना भी हो जाय, स्थ...प्रतुल जी,<br /><br />गुणों का अवमूल्यन कितना भी हो जाय, स्थापना तो श्रेष्ठ शुद्ध गुणो की ही करनी चाहिए।<br /><br />100 किलो उठाने की क्षमता थी, वृद्ध्त्व आया, शक्ति क्षीण हो गई, आज 20 किलो ही उठा पाते है, ठीक है, 20 किलो ही उठाओ, पर स्थापित तो यह करो कि मनुष्य की 100 किलो उठाने की क्षमता है। न कि हम स्वयं क्षीण है अतः सभी को क्षीणता-बोध से ग्रसित कर अपनी सहजता के लिये 20 किलो की स्थापना कर दें।<br /><br />अगर ऐसा मायावी कार्य किया तो भविष्य में राम, बुद्ध, महावीर कैसे होगा?सुज्ञhttps://www.blogger.com/profile/04048005064130736717noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7546054676355588576.post-42266814493568606912011-04-29T20:15:09.230+05:302011-04-29T20:15:09.230+05:30*बाड़ा = बाद ...*बाड़ा = बाद ...प्रतुल वशिष्ठhttps://www.blogger.com/profile/00219952087110106400noreply@blogger.com