tag:blogger.com,1999:blog-7546054676355588576.post2711190442606677751..comments2023-10-21T14:43:56.493+05:30Comments on सुज्ञ: दुर्गम पथ सदाचारसुज्ञhttp://www.blogger.com/profile/04048005064130736717noreply@blogger.comBlogger36125tag:blogger.com,1999:blog-7546054676355588576.post-32996476447310989602013-05-08T00:44:05.112+05:302013-05-08T00:44:05.112+05:30:)
:)<br />Smart Indianhttps://www.blogger.com/profile/11400222466406727149noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7546054676355588576.post-79439612898283474372011-07-02T12:40:16.841+05:302011-07-02T12:40:16.841+05:30यह हमारे सुविधाभोगी मानस की ही प्रतिक्रिया होती है...यह हमारे सुविधाभोगी मानस की ही प्रतिक्रिया होती है। हम कठिन प्रक्रिया से गुजरना ही नहीं चाहते। जबकि मानव में आत्मविश्वास और मनोबल की अनंत शक्तियां विद्यमान होती है। <br /><br />सटीक और सार्थक लेख ..संगीता स्वरुप ( गीत )https://www.blogger.com/profile/18232011429396479154noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7546054676355588576.post-65555696859711156482011-07-02T09:57:30.875+05:302011-07-02T09:57:30.875+05:30सही बात कही है सर!
सादरसही बात कही है सर!<br /><br />सादरYashwant R. B. Mathurhttps://www.blogger.com/profile/06997216769306922306noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7546054676355588576.post-18353450550148774532011-06-24T00:06:24.945+05:302011-06-24T00:06:24.945+05:30सुज्ञ जी आपके सुन्दर विचारों से पूर्ण सहमत हूँ.वास...सुज्ञ जी आपके सुन्दर विचारों से पूर्ण सहमत हूँ.वास्तव में ज्ञान के अर्जन से और अज्ञान के निवारण से स्वाभाविक रूप से मनोबल बढ़ता है <br />और सद मार्ग पर चलने की प्रेरणा व साहस भी अर्जित होता जाता है.Rakesh Kumarhttps://www.blogger.com/profile/03472849635889430725noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7546054676355588576.post-52157060584419133422011-06-17T13:14:26.384+05:302011-06-17T13:14:26.384+05:30बहुत सुन्दर शब्दों में उत्तम दर्शन व्यक्त हुआ है.बहुत सुन्दर शब्दों में उत्तम दर्शन व्यक्त हुआ है.Amit Sharmahttps://www.blogger.com/profile/15265175549736056144noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7546054676355588576.post-79506492386256513982011-06-15T11:01:03.924+05:302011-06-15T11:01:03.924+05:30जैसे प्राचीन योगियों ने जाना, हर पढ़ा-लिखा भारतीय ...जैसे प्राचीन योगियों ने जाना, हर पढ़ा-लिखा भारतीय आज जानता ही होगा कि गंगा, यमुना, ब्रह्मपुत्र (चीन में सांग्पो) आदि भारत की मुख्य नदियों के प्राणदायी जल का स्रोत (वायु के बाद दो नंबर पर) प्राचीन भारत, अथवा ' जम्बूद्वीप', के उत्तर में स्थित सागर के कोख से उत्पन्न हुई हिमालयी श्रंखला, (यानि जल के ठोस रूप ' हिम के घर') में वर्तमान चीन में स्थित कैलाश पर्वत/ मानसरोवर झील है... उसी प्रकार, उसके प्रतिरूप समान, प्राचीन योगियों ने किसी भी देश, धर्म आदि से सम्बंधित मानव शरीर में सर्वोच्च स्थान पर स्थित मन-रुपी मानसरोवर को (' सहस्त्रधारा' अथवा ' सहस्रार चक्र' को), अनंत बूंदों समान ' मूलाधार' अथवा ' मूलधारा' (सागर) से लेकर मस्तिष्क (आकाश) तक आठ चक्रों में भंडारित अनंत विचारों के स्रोत समान जाना...<br /><br />मानव मस्तिष्क की अद्भुत कार्यविधि, जैसे एक शब्द द्वारा ही मन को किसी भी समय किसी अन्य स्थान और काल में पहुंचा देने को ध्यान में रख 'मेरे' अन्य विषय द्वारा प्रेरित कुछ अन्य सम्बंधित विचार जानने के इच्छुक कुछ अन्य निम्नलिखित ब्लॉग भी देख सकते हैं -<br /><br />http://ghughutibasuti.blogspot.com/<br />http://mallar.wordpress.com/JChttps://www.blogger.com/profile/05374795168555108039noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7546054676355588576.post-59836531046618858012011-06-15T09:55:13.697+05:302011-06-15T09:55:13.697+05:30सुंदर विचार। पर पता नहीं क्यों यथार्थ में आते ही ...सुंदर विचार। पर पता नहीं क्यों यथार्थ में आते ही ये विचार हवा हो जाते हैं।<br /><br />---------<br /><a href="http://sb.samwaad.com/" rel="nofollow">ये शानदार मौका... </a><br /><b><a href="http://ts.samwaad.com/" rel="nofollow">यहाँ खुदा है, वहाँ खुदा है... </a></b>Dr. Zakir Ali Rajnishhttps://www.blogger.com/profile/03629318327237916782noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7546054676355588576.post-2997739549817486972011-06-14T19:56:46.697+05:302011-06-14T19:56:46.697+05:30बहुत प्रेरक विचार हैं,सुज्ञ जीबहुत प्रेरक विचार हैं,सुज्ञ जीKunwar Kusumeshhttps://www.blogger.com/profile/15923076883936293963noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7546054676355588576.post-81256469535153793842011-06-14T16:19:37.713+05:302011-06-14T16:19:37.713+05:30आदरणीय हंसराज भाई आप मेरे ब्लॉग को Follow कर रहे ह...आदरणीय हंसराज भाई आप मेरे ब्लॉग को Follow कर रहे हैं...मैंने अपने ब्लॉग के लिए Domain खरीद लिया है...पहले ब्लॉग का लिंक pndiwasgaur.blogspot.com था जो अब www.diwasgaur.com हो गया है...अब आपको मेरी नयी पोस्ट का Notification नहीं मिलेगा| यदि आप Notification चाहते हैं तो कृपया मेरे ब्लॉग को Unfollow कर के पुन: Follow करें...<br />असुविधा के लिए खेद है...<br />धन्यवाद....दिवसhttps://www.blogger.com/profile/07981168953019617780noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7546054676355588576.post-57519399797510105992011-06-14T14:03:40.138+05:302011-06-14T14:03:40.138+05:30बेहद सार्थक ....बहुत संवेदनशील चिंतन ..बेहद सार्थक ....बहुत संवेदनशील चिंतन ..Dr (Miss) Sharad Singhhttps://www.blogger.com/profile/00238358286364572931noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7546054676355588576.post-50353743286989779822011-06-14T11:02:01.149+05:302011-06-14T11:02:01.149+05:30क्षमा प्रार्थी हूँ कि ' अंदरूनी' के स्थान ...क्षमा प्रार्थी हूँ कि ' अंदरूनी' के स्थान पर ' बाहरी' दबाव लिखा गया (ऊपर से चौथी पंक्ति में)...<br /><br />गुरुत्वाकर्षण शक्ति पिंड को भीतर की ओर खींचती है जबकि अंदरूनी पदार्थ बाहर की ओर दबाव डालता है, पृथ्वी समान पिंडों का साकार रूप इन दो मुख्य शक्तियों द्वारा बना रहता है... इसे साधारणतया देखा/ दर्शाया जाता है बाल्टी में भरे पानी को हवा में जोर से घुमाने पर भी पानी बाहर नहीं गिरने से...JChttps://www.blogger.com/profile/05374795168555108039noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7546054676355588576.post-63233522106800933142011-06-14T10:20:15.729+05:302011-06-14T10:20:15.729+05:30पुनश्च - यहाँ पर याद दिलाना होगा कि वो अमेरिकेन भा...पुनश्च - यहाँ पर याद दिलाना होगा कि वो अमेरिकेन भारतीय वैज्ञानिक एस चंद्रशेखर थे, जिन्होंने ऐसे तारों की, जो ' रेड स्टेज' पर पहुँच चुके थे, उन पर अध्ययन कर पाया कि अपनी ' मृत्यु' के कगार पर जो पहुँच चुके होते हैं, उनका आकार बढ़ जाता है और वो ' रेड जाएंट ' कहलाते हैं और एक दिन उनकी गुरुत्वकार्शन शक्ति के बाहरी दबाव की तुलना में कम हो जाने से वो फट जाते हैं... <br /><br />सारा ' कूड़ा' शून्य में ही निकट में ही फ़ैल जाता है, किन्तु तभी गुरुत्वाकर्षण शक्ति भी काम करना आरम्भ कर देती है और कूड़े को उसके केंद्र की ओर दबाती ही चली जाती है, जब तक लगभग सारे भौतिक द्रव्य के गुरुत्वाकर्षण शक्ति में परिवर्तित हो जाने से वो आकार में शून्य अथवा लगभग शून्य रह जाता है और तीन में से एक, ' व्हाइट ड्वार्फ', ' पल्सर' अथवा ब्लाक होल, किसी एक नए रूप में उपस्थित हो जाता है... <br /><br />यदि उसका मूल भार हमारे सूर्य की तुलना में पांच गुना या उससे अधिक हो तभी वो ' ब्लैक होल' बन पाता है, जैसा एक अत्यंत शक्तिशाली ' कृष्ण' हमारी बीच में मोटी (लम्बोदर) और किनारे की ओर पतली तश्तरीनुमा ' मिल्की वे गैलेक्सी' के केंद्र में भी उपस्थित माना जाता है... और हमारा सौ-मंडल केंद्र से दूर इसकी बाहरी ओर विद्यमान पाया जाता है, वैसे ही जैसे दूध के मंथन से मक्खन बाहरी ओर चला जाता है...<br /><br />प्राचीन किन्तु ज्ञानी योगियों ने गैलेक्सी को सुदर्शन-चक्र समान दर्शाया, और इसकी उत्पत्ति को ' क्षीर-सागर मंथन' की मनोरंजक कहानी द्वारा दर्शाया, जिसका उद्देश्य देवताओं, यानि हमारे सौर-मंडल के सदस्यों की अमरत्व प्राप्ति दर्शाया और मानव शरीर को सर्वश्रेष्ट कृति, इन में से ९ सदस्यों के सार से बना पाया - जिसके १०० वर्ष +/- तक चलने को संभव दिखाया उसके प्रति रात्री निद्रावस्था में चले जाने से खोई शक्ति दुबारा प्रप्त करने से... और उसी प्रकार हमारी पृथ्वी पर हिमयुग आ जाने से...JChttps://www.blogger.com/profile/05374795168555108039noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7546054676355588576.post-35704592451788050142011-06-14T06:40:30.761+05:302011-06-14T06:40:30.761+05:30@ "...जैसे एड्वेन्चर का रोमांच हमें दुर्गम रा...@ "...जैसे एड्वेन्चर का रोमांच हमें दुर्गम रास्ते और शिखर सर करवा देता है। यदि यही तीव्रेच्छा सद्गुण अंगीकार करने में प्रयुक्त की जाय तो जीवन को मूल्यवान बनाना कोई असम्भव भी नहीं।..."<br /><br />द्वैतवाद अथवा अनंतवाद को ध्यान में रख जीवन का सत्य हमारे पूर्वज भी "हरी अनंत / हरी कथा अनंता... " द्वारा दर्शा गए... और उदाहरणतया, (' योगी' के दृष्टिकोण से ८४ लाख में से एक आत्मा और शरीर के योग द्वारा बने साकार रूप) परवाने के दीपक की लौ पर जल जाने द्वारा भी यदि सभी ' कवि' इसे दोनों के बीच अनंत काल से चले आ रहे प्रेम का द्योतक मानते हैं तो दूसरी ओर वैज्ञानिक इसे ' प्रकृति' का संकेत भी मान सकते हैं... यानि भौतिक संसार में सूर्य, ' अग्नि' अथवा ऊर्जा का स्रोत, जो लगभग स्थिर सूर्य और धरती की विभिन्न चालों से जनित काल के अनुसार लगभग साढ़े चार अरब वर्षों से उनके केंद्र में रह अन्य ग्रहों के अतिरिक्त ' हमारी' पृथ्वी को भी घुमाती प्रतीत होती है यदि किसी पल उसमें उबलब्ध हाईड्रोजन समाप्त होने पर सूर्य की शक्ति शिथिल हो जाए तो क्या होगा? <br />(वैज्ञानिकों के अनुसार एक ग्रह की 'मृत्यु' या तो उसके सूर्य अथवा गैलेक्सी के केंद्र में गिर हो सकती है अथवा उसके किसी अन्य ग्रह आदि से टकराकर कई टुकड़े होकर. जैसा संभवतः नन्हे- नन्हे ग्रहों का समूह ऐस्टेरौयड भी दर्शाते हैं)...<br /> <br />प्राचीन ' भारत' में किसी सत्यान्वेषी ने "सत्यम शिवम् सुन्दरम" कहा और किसी ने "जाकी कृपा पंगु गिरी लंघई..." कह किसी अदृश्य शक्ति रुपी जीव का हाथ देखा...JChttps://www.blogger.com/profile/05374795168555108039noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7546054676355588576.post-5454392606633847122011-06-13T20:48:40.754+05:302011-06-13T20:48:40.754+05:30@जीवन मूल्य ही हमें प्राणी से इन्सान बनाते है। जीव...@जीवन मूल्य ही हमें प्राणी से इन्सान बनाते है। जीवन मूल्य ही हमें शान्ति और संतुष्टि से जीवन जीने का आधार प्रदान करते है<br /><br />सही कहा...............पोस्ट पढ़ के आनंद आ गया :)एक बेहद साधारण पाठकhttps://www.blogger.com/profile/14658675333407980521noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7546054676355588576.post-88678334035354964562011-06-13T15:19:24.351+05:302011-06-13T15:19:24.351+05:30बिल्कुल सही कहा है आपने ।बिल्कुल सही कहा है आपने ।Anonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7546054676355588576.post-6064457803021858372011-06-12T07:04:37.159+05:302011-06-12T07:04:37.159+05:30@ Er. Diwas Dinesh Gaur जी, क्षमा प्रार्थी हूँ कहत...@ Er. Diwas Dinesh Gaur जी, क्षमा प्रार्थी हूँ कहते कि बुराई कहें या भलाई अनुमान कीजिये क्या होता यदि सागर जल ऊपर 'भलाई के मार्ग में' जा, बादल बन, 'बुराई के मार्ग' पर यानि नीचे आता ही नहीं, (जैसे अंतरिक्ष यान पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण क्षेत्र को पार कर जाता है), त्रिशंकु समान शून्य में ही लटक जाता ? <br /><br />यह हर 'आधुनिक सत्यान्वेषी' अर्थात 'वैज्ञानिक'/ 'विज्ञानं का विद्यार्थी' आज जानता है कि जहां तक भारत का प्रश्न है, पंचतत्वों के मिले-जुले प्रयास से सूर्य (देवताओं के राजा इन्द्र !) यानि अग्नि अथवा ऊर्जा के स्रोत द्वारा अरब सागर का जल, (मूल रूप से सातों महासागर का मानव के लिए 'विषैला', किन्तु अनंत जलचरों के लिए प्राणदायी जल, जो हिन्दू मान्यतानुसार 'वरुण देवता', यानि 'विष्णु'? के नियंत्रण में है), वाष्प में परिवर्तित हो, और गर्म/ ठन्डी वायु की प्रकृति के कारण, प्रतिवर्ष दक्षिण-पश्चिमी मॉनसून के रूप में उत्तर में स्थित पृथ्वी के एक ऊंचे बाँध समान हिमालयी श्रंखला की ओर अग्रसर हो जाता है... और पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण के कारण शुद्ध जल 'भारत' भूमि पर उस पर आधारित प्राणियों के जीवन-दायी वर्षा जल के रूप में प्रति वर्ष टपकता आ रहा है, यद्यपि अंततोगत्वा फिर से सागर जल में मिलने के उद्देश्य से नीचे की ओर बह,,, <br />यह जल-चक्र अनादि काल से हिमालय की, भूमि की कोख से ही जन्म ले, 'जम्बुद्वीप' के उत्तर में स्थित सागर को दक्षिण दिशा में स्थित सागर की ओर धकेल... <br /><br />प्राचीन ज्ञानियों ने जाना की 'पंचतत्व' अथवा 'पंचभूत' आवश्यक हैं किसी भी साकार रूप की बनावट में, और किसी भी साकार पिंड के मध्य में केन्द्रित गुरुत्वाकर्षण शक्ति पर निर्भर करता है उस पिंड का जीवन काल... और सीमित काल तक चलने वाले अस्थायी मानव शरीर की संरचना में हमारे लगभग साढ़े चार अरब वर्षीय सौर-मंडल के नौ सदस्यों (नवग्रह) के सार का उपयोग किया गया है...मानव को इस कारण ब्रह्माण्ड का प्रतिरूप कहा गया...<br /><br />और यह भी मान्यता है कि जो अनंत प्रतीत होता बाहरी ब्रह्माण्ड है उसका सार मानव शरीर के अन्दर भी है... किन्तु हर मानव शरीर, यानि भीतर कैद आत्मा को अपने सीमित जीवन-काल में ही 'परम सत्य' अजन्मे और अनंत शिव, परमात्मा की अनूभूति होनी आवश्यक है 'काल-चक्र से मुक्ति पाने' हेतु... हम मानें या ना मानें... जो काल की प्रकृति के कारण कलियुग में सबसे कठिन है क्यूंकि आज एक सोलह वर्षीय जवान भी पश्चिम की नक़ल कर गर्व से कहता है, "मैं भगवान् को नहीं मानता" ! (यानि मैं शैतान को ही मानता हूँ? और शनि को पश्चिम दिशा का राजा माना जाता आ रहा है...)JChttps://www.blogger.com/profile/05374795168555108039noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7546054676355588576.post-36071343547654643402011-06-12T01:21:54.534+05:302011-06-12T01:21:54.534+05:30अरे वाह भाई...बेहद सुन्दर शब्दों के साथ प्रस्तुति....अरे वाह भाई...बेहद सुन्दर शब्दों के साथ प्रस्तुति...<br />आपसे पूर्णत: सहमती...<br />बुराईयां ढलान का मार्ग होती है जबकि अच्छाईयां चढाई का कठिन मार्ग। इसलिए बुराई की तरफ ढल जाना सहज सरल आसान होता है जबकि अच्छाई की तरफ बढना अति कठिन श्रमयुक्त पुरूषार्थ।<br />उपरोक्त पंक्ति आलेख का श्रेष्ठ भाग है...दिवसhttps://www.blogger.com/profile/07981168953019617780noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7546054676355588576.post-66633684092990040452011-06-11T18:11:35.248+05:302011-06-11T18:11:35.248+05:30बेहद सार्थक चिन्तन्।बेहद सार्थक चिन्तन्।vandana guptahttps://www.blogger.com/profile/00019337362157598975noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7546054676355588576.post-54565373048413380902011-06-11T14:34:06.481+05:302011-06-11T14:34:06.481+05:30..........
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pranam...........<br />..........<br /><br />pranam.सञ्जय झाhttps://www.blogger.com/profile/08104105712932320719noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7546054676355588576.post-26549972709901263802011-06-11T13:59:13.696+05:302011-06-11T13:59:13.696+05:30‘इस पर चलना बड़ा कठिन है’। - यह हमारे सुविधाभोगी मा...‘इस पर चलना बड़ा कठिन है’। - यह हमारे सुविधाभोगी मानस की ही प्रतिक्रिया है। - सूक्ति सम <br />@ एक-एक वाक्य सूत्रवाक्य बन पड़ा है. पूरे का पूरा आलेख एक उत्तम प्रवचन भी है.प्रतुल वशिष्ठhttps://www.blogger.com/profile/00219952087110106400noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7546054676355588576.post-71861716762111317942011-06-11T12:53:31.171+05:302011-06-11T12:53:31.171+05:30सार्थक चिंतन ... धैर्य और सतत प्रयाससे बहुत कुछ हो...सार्थक चिंतन ... धैर्य और सतत प्रयाससे बहुत कुछ होता है .... <br />आपको बात से सहमत हूँ ....दिगम्बर नासवाhttps://www.blogger.com/profile/11793607017463281505noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7546054676355588576.post-23682179905860675652011-06-11T12:28:06.141+05:302011-06-11T12:28:06.141+05:30जो लोग यह कहते हैं कि आज के युग में सम्भव नहीं है...जो लोग यह कहते हैं कि आज के युग में सम्भव नहीं है, वे असत्य बोलकर खुद को ही धोखा दे रहे हैं। हमारा जीवन आज के पचास वर्ष की तुलना में अधिक सहज और आसान हुआ है। पहले हम गुलाम थे, कभी राजाशाही थी, परिवार और समाज के प्रतिबंध थे इसलिए कुछ मजबूरी हो सकती थी लेकिन आज हम चाहे जो निर्णय अपने बारे में ले सकते हैं। ऐसे लोगों को यह कहना चाहिए कि हम सुविधा भोगी हो गए हैं इसलिए इन्हें पाने के लिए हम सब कुछ करेंगे। आपने अच्छा आलेख लिखा है इसके लिए बधाई।अजित गुप्ता का कोनाhttps://www.blogger.com/profile/02729879703297154634noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7546054676355588576.post-2988081575322292852011-06-11T12:18:19.710+05:302011-06-11T12:18:19.710+05:30आभार
आभार आपका
सत्य, मानव जीवन का अर्थआभार <br />आभार आपका <br />सत्य, मानव जीवन का अर्थरविकर https://www.blogger.com/profile/00288028073010827898noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7546054676355588576.post-87732695314366619072011-06-11T11:04:37.426+05:302011-06-11T11:04:37.426+05:30सार्थक चिन्तन। हम अनजाने ही ढलान की ओर लुढक जाते ...सार्थक चिन्तन। हम अनजाने ही ढलान की ओर लुढक जाते हैं अगर कुछ पल किनारे पर रह कर सोचें तो शायद ऊँचाइयों को भी देख सकें\ शुभकामनायें।निर्मला कपिलाhttps://www.blogger.com/profile/11155122415530356473noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7546054676355588576.post-38644996389098719822011-06-11T09:13:37.673+05:302011-06-11T09:13:37.673+05:30मानव जीवन की मूर्खताओं का अच्छा उल्लेख किया है आपन...मानव जीवन की मूर्खताओं का अच्छा उल्लेख किया है आपने ! मगर अपनी भूल या बेवकूफियां हम मानते क्यों नहीं ...यह प्रश्न अनुत्तरित है...<br />एक बढ़िया लेख के लिए आपका आभार !Satish Saxena https://www.blogger.com/profile/03993727586056700899noreply@blogger.com