tag:blogger.com,1999:blog-7546054676355588576.post244289561147683635..comments2023-10-21T14:43:56.493+05:30Comments on सुज्ञ: क्रोध सुज्ञhttp://www.blogger.com/profile/04048005064130736717noreply@blogger.comBlogger52125tag:blogger.com,1999:blog-7546054676355588576.post-80720144128524487812013-05-08T12:27:29.801+05:302013-05-08T12:27:29.801+05:30 बहुत ही अच्छा लिखा आपने .बहुत ही सुन्दर रचना.बहु... बहुत ही अच्छा लिखा आपने .बहुत ही सुन्दर रचना.बहुत बधाई आपको Madan Mohan Saxenahttps://www.blogger.com/profile/02335093546654008236noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7546054676355588576.post-38340846824866140422013-05-08T12:02:44.639+05:302013-05-08T12:02:44.639+05:30आपको तो इच्छाशक्ति पर भरोसा है न? आपके लिए इच्छाशक...आपको तो इच्छाशक्ति पर भरोसा है न? आपके लिए इच्छाशक्ति दुर्लभ नहीं.....<br />सुज्ञhttps://www.blogger.com/profile/04048005064130736717noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7546054676355588576.post-43762825464238414942013-05-08T11:46:31.288+05:302013-05-08T11:46:31.288+05:30क्रोध का प्रारम्भ द्वेष से होता है और द्वेष और क्र...क्रोध का प्रारम्भ द्वेष से होता है और द्वेष और क्रोध की जड़ "मोह" है. इस लेख की प्रस्तावना और क्रोध की परिभाषा देखें, श्याम जी.<br /><br />प्रथम पोस्ट की टिप्पणीयाँ निहारें और दूसरी में व्याख्या, आप तो सम्यक् ज्ञान से सब कुछ समझने में सशक्त है....आपके लिए कहाँ अनसमझा अनजाना है.....सुज्ञhttps://www.blogger.com/profile/04048005064130736717noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7546054676355588576.post-66503731112333048912013-05-08T10:21:00.251+05:302013-05-08T10:21:00.251+05:30और क्रोध की जड़ ?और क्रोध की जड़ ?डा श्याम गुप्तhttps://www.blogger.com/profile/03850306803493942684noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7546054676355588576.post-38379190389012955372013-05-08T10:20:18.966+05:302013-05-08T10:20:18.966+05:30और क्रोध का प्रारम्भ .?
और क्रोध का प्रारम्भ .?<br />डा श्याम गुप्तhttps://www.blogger.com/profile/03850306803493942684noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7546054676355588576.post-5379962831636842502013-05-08T10:18:44.839+05:302013-05-08T10:18:44.839+05:30परमार्थ के अवसर तो पत्येक पल उपलब्ध रहते हैं ...दु...परमार्थ के अवसर तो पत्येक पल उपलब्ध रहते हैं ...दुर्लभ क्यों हैं ...बस इच्छाशक्ति होनी चाहिए..डा श्याम गुप्तhttps://www.blogger.com/profile/03850306803493942684noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7546054676355588576.post-52433303712815693582013-05-08T10:15:25.031+05:302013-05-08T10:15:25.031+05:30सही कहा धीरेन्द्र जी ...परन्तु प्रथम व अंतिम सोचन...सही कहा धीरेन्द्र जी ...परन्तु प्रथम व अंतिम सोचने की आवश्यकता नहीं , दुर्गुण व शत्रु प्रथम-अंतिम क्या सभी का शमन होना है ......वास्तव में किसी भी एक दुर्गुण के नियमन से प्रारम्भ कर दीजिये ...सभी दुर्गुण क्रमिकता से नियमन में आते जायेंगे ...हम कहीं से प्रारम्भ करें बस ....काम, क्रोध, मद ,लोभ .मोह कहीं से किसी भी एक से ....डा श्याम गुप्तhttps://www.blogger.com/profile/03850306803493942684noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7546054676355588576.post-11832649945498035202013-05-08T10:08:46.392+05:302013-05-08T10:08:46.392+05:30बिलकुल उचित कहा सुज्ञ जी ..पर विवेक कैसे प्राप्त ह...बिलकुल उचित कहा सुज्ञ जी ..पर विवेक कैसे प्राप्त हो कि क्रोध आये ही नहीं ...डा श्याम गुप्तhttps://www.blogger.com/profile/03850306803493942684noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7546054676355588576.post-39924628871182388522013-05-08T10:06:58.309+05:302013-05-08T10:06:58.309+05:30इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.डा श्याम गुप्तhttps://www.blogger.com/profile/03850306803493942684noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7546054676355588576.post-5813913173800323562013-05-08T09:54:39.150+05:302013-05-08T09:54:39.150+05:30-----निश्चय ही हरि में लीन हरि भक्त ..स्वयं हरि ही...-----निश्चय ही हरि में लीन हरि भक्त ..स्वयं हरि ही होजाता है ....<br />----इश्वरीय गुणों के वर्णन , ईश्वर वर्णन का अर्थ ही यह है कि मानव उनका पालन करे एवं उनसे तादाम्य स्थापित करके उन जैसा होजाय ..फिर आत्मा स्वयं परमात्मा का रूप ले लेती है ...यही हरि होना है .....इसी अवस्था में ही व्यक्ति पूर्ण-काम होकर क्रोध आदि पर विजय प्राप्त कर सकता है एवं क्षमत्व आदि गुण धारण करने योग्य हो सकता है ... डा श्याम गुप्तhttps://www.blogger.com/profile/03850306803493942684noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7546054676355588576.post-24536346720646977892013-05-07T18:40:59.226+05:302013-05-07T18:40:59.226+05:30उपरोक्त सूक्त क्रोधरत को ही सम्बोधित है कि "इ...उपरोक्त सूक्त क्रोधरत को ही सम्बोधित है कि "इतना ही तेरा क्रोध स्वभाविक और सहज है तो बता भला अपने क्रोध पर तुझे क्रोध क्यों नहीं आता? तो कहे कि क्रोध पर क्रोध तो व्यर्थ है तो फिर हर तरह का क्रोध व्यर्थ ही है, शुभ फलद्रुप नहीं!!<br /><br />बहुत ही महत्वपूर्ण पंक्ति.......<br />"दुर्गुण तो दुर्गुण ही है, कम हो या ज़्यादा, दिखे या छिपा रहे, अपना हो या पराया"सुज्ञhttps://www.blogger.com/profile/04048005064130736717noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7546054676355588576.post-53044493057931708682013-05-07T18:32:02.270+05:302013-05-07T18:32:02.270+05:30अनुराग जी,
निर्ममो निरहङ्कारः समदुःखसुखः क्षमी ॥ ...अनुराग जी,<br /><br />निर्ममो निरहङ्कारः समदुःखसुखः क्षमी ॥ <br /><br />अद्भुत!!सुज्ञhttps://www.blogger.com/profile/04048005064130736717noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7546054676355588576.post-29549456298419532362013-05-07T18:17:18.437+05:302013-05-07T18:17:18.437+05:30हरि कौन बन पाया है, लेकिन आदर्श तो उच्च रखा ही जा ...हरि कौन बन पाया है, लेकिन आदर्श तो उच्च रखा ही जा सकता है, हरिप्रिय बनाने की कोशिश तो की ही जा सकती है। गीता से भगवान के प्यारों के लक्षणों से दो-एक अंश:<br />अद्वेष्टा सर्वभूतानां मैत्रः करुण एव च ।<br />निर्ममो निरहङ्कारः समदुःखसुखः क्षमी ॥ <br /><br />समः शत्रौ च मित्रे च तथा मानापमानयोः ।<br />शीतोष्णसुखदुःखेषु समः सङ्गविवर्जितः ॥ <br /><br />क्रोध कमजोरी है, अहंकारवश उसे सही ठहराना भी कमजोरी है Smart Indianhttps://www.blogger.com/profile/11400222466406727149noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7546054676355588576.post-41992109445236209222013-05-07T18:03:14.121+05:302013-05-07T18:03:14.121+05:30आभार कविता जी,
मानव स्वभाव के साथ गाढे चिकनाई युक...आभार कविता जी,<br /><br />मानव स्वभाव के साथ गाढे चिकनाई युक्त जमे भाव होते है. एकदम उखड पडे, यह कठिन है. पर ऐसे चिंतन से उनका हिलना भी बहुत बडी उपलब्धि होती है.सुज्ञhttps://www.blogger.com/profile/04048005064130736717noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7546054676355588576.post-2167376636021687702013-05-07T18:01:32.956+05:302013-05-07T18:01:32.956+05:30जी, किसी भी समस्या के कारणों की पहचान सहायक है। ले...जी, किसी भी समस्या के कारणों की पहचान सहायक है। लेकिन साथ ही यह समझना भी ज़रूरी है कि बड़े लोग जो कहते-करते हैं कई बार हमारे लिए वह ठीक से समझ पाना आसान नहीं होता, उन जैसा बनना तो कठिन है ही। जब क्रोध पर क्रोध की उपमा देने की बात है, वह तब तक की ही बात है जब तक मन से क्रोध मिटा नहीं। क्रोध मानसिक परिपक्वता/उन्नति का व्युत्क्रमानुपाती है। जिसकी जितनी प्रगति होती जाती है, द्रोह, द्वेष, और क्रोध जैसे दुर्गुण उतने ही कम होते जाते हैं। परमार्थ की भावना जिस मन में हो उसमें क्रोध कैसे रहेगा, किस पर रहेगा? निस्वार्थ मन को क्रोध का कारण क्या? मन निरहंकार होने लगता है तो अपनी गलतियाँ स्पष्ट होने लगती हैं और उनके दमन की प्रक्रिया शुरू हो जाती है। इसके विपरीत जब मन में क्रोध और अहंकार दोनों हों तब हम अहंकारवश अपनी कमी को सही ठहराने के लिए उसे महिमामंडित करने लगते हैं। लेकिन दुर्गुण तो दुर्गुण ही है, कम हो या ज़्यादा, दिखे या छिपा रहे, अपना हो या पराया ... Smart Indianhttps://www.blogger.com/profile/11400222466406727149noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7546054676355588576.post-21865607863527670232013-05-07T17:52:20.082+05:302013-05-07T17:52:20.082+05:30क्रोध से कितना नुक्सान होता है सभी जानते हैं लेकिन...क्रोध से कितना नुक्सान होता है सभी जानते हैं लेकिन जब इस पर बस बहुत कम लोगों का चल पाता है ..बड़े बड़े महान लोगों की बाते हमें सतर्क करती हैं लेकिन हम आम इंसान अपनी फितरत से बाज नहीं आते .. ..<br />बहुत बढ़िया प्रेरक प्रस्तुति ..आभार कविता रावत https://www.blogger.com/profile/17910538120058683581noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7546054676355588576.post-74193165815651541622013-05-07T17:41:02.321+05:302013-05-07T17:41:02.321+05:30महेंद्र जी, आपका बहुत बहुत आभार!!महेंद्र जी, आपका बहुत बहुत आभार!!सुज्ञhttps://www.blogger.com/profile/04048005064130736717noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7546054676355588576.post-12044958085048633202013-05-07T16:26:10.951+05:302013-05-07T16:26:10.951+05:30bahut sundar post .... abhaar bahut sundar post .... abhaar समयचक्रhttps://www.blogger.com/profile/05186719974225650425noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7546054676355588576.post-32848515035790247402013-05-07T09:56:07.587+05:302013-05-07T09:56:07.587+05:30क्रोध उत्पत्ति के कारकों को तत्क्षण पहचान लेना ही ...क्रोध उत्पत्ति के कारकों को तत्क्षण पहचान लेना ही श्रेयष्कर है. परमार्थ के अवसर उपलब्ध होना दुर्लभ बहुत!!सुज्ञhttps://www.blogger.com/profile/04048005064130736717noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7546054676355588576.post-85104374181621592012013-05-07T09:38:26.153+05:302013-05-07T09:38:26.153+05:30इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.Smart Indianhttps://www.blogger.com/profile/11400222466406727149noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7546054676355588576.post-52530340393955949992013-05-07T09:36:00.799+05:302013-05-07T09:36:00.799+05:30जी, कालीपद जी
विवेक को सक्रिय रखने से क्रोध आता ही...जी, कालीपद जी<br />विवेक को सक्रिय रखने से क्रोध आता ही नहीं, और क्रोध के शमन के उपाय की भी आवश्यकता नहीं रहती.सुज्ञhttps://www.blogger.com/profile/04048005064130736717noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7546054676355588576.post-44315633658386944712013-05-07T09:32:23.346+05:302013-05-07T09:32:23.346+05:30जी, मुख्य कष्ट तो यह है, कोई स्वीकार करे या न करे,...जी, मुख्य कष्ट तो यह है, कोई स्वीकार करे या न करे, क्रोध बहुधा पश्चाताप पर समाप्त होता है.सुज्ञhttps://www.blogger.com/profile/04048005064130736717noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7546054676355588576.post-40344501345609992442013-05-06T23:07:49.454+05:302013-05-06T23:07:49.454+05:30क्रोध विवेक, वुद्धि को निष्क्रिय कर देता है.
डैश ब...क्रोध विवेक, वुद्धि को निष्क्रिय कर देता है.<br />डैश बोर्ड पर पाता हूँ आपकी रचना, अनुशरण कर ब्लॉग को <br />अनुशरण कर मेरे ब्लॉग को अनुभव करे मेरी अनुभूति को<br />latest post<a href="http://kpk-vichar.blogspot.in/2013/05/blog-post_6.html#links" rel="nofollow">'वनफूल'</a><br />कालीपद "प्रसाद"https://www.blogger.com/profile/09952043082177738277noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7546054676355588576.post-69290609945320213012013-05-06T22:34:46.339+05:302013-05-06T22:34:46.339+05:30क्या कहा है संजय भाई...
क्षमा बड़ेंन को चाहिए छोटन ...क्या कहा है संजय भाई...<br />क्षमा बड़ेंन को चाहिए छोटन के अपराध <br />का रहीम हरी को घटो जो ब्रिगु मारी लात |....और इसके लिए आपको हरि तो बनाना ही पडेगा ...नहीं तो आप क्षमा करते ही रह जायेंगे और वे आपको पीट जायेंगे ...जैसे पाकिस्तान व चीन आपको पीट रहे हैं जाने कब से....डा श्याम गुप्तhttps://www.blogger.com/profile/03850306803493942684noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7546054676355588576.post-2241018728638418122013-05-06T22:29:12.237+05:302013-05-06T22:29:12.237+05:30क्या बात है अनुराग जी ...सुन्दर ...अर्थात क्रोध पर...क्या बात है अनुराग जी ...सुन्दर ...अर्थात क्रोध पर क्रोध किया जाना चाहिए कि वह क्यों आता है .... और उसका मूल कामनाओं को खोज कर उनका शमन करना चाहिए ...अर्थात परमार्थ में क्रोध अनावश्यक नहीं ..डा श्याम गुप्तhttps://www.blogger.com/profile/03850306803493942684noreply@blogger.com