tag:blogger.com,1999:blog-7546054676355588576.post1191020760106216563..comments2023-10-21T14:43:56.493+05:30Comments on सुज्ञ: पर्यावरण का अहिंसा से सीधा सम्बंधसुज्ञhttp://www.blogger.com/profile/04048005064130736717noreply@blogger.comBlogger39125tag:blogger.com,1999:blog-7546054676355588576.post-37579382804416229612011-11-12T15:01:11.604+05:302011-11-12T15:01:11.604+05:30आपका स्वागत है, अंकुर जी,
इस प्रोत्साह के लिए आभा...आपका स्वागत है, अंकुर जी,<br /><br />इस प्रोत्साह के लिए आभार, आप स्वयं दर्शन शास्त्र के विद्यार्थी रहे है। आपकी तारीफ वास्तविक सम्बल है।सुज्ञhttps://www.blogger.com/profile/04048005064130736717noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7546054676355588576.post-123514933148172692011-11-12T14:33:31.254+05:302011-11-12T14:33:31.254+05:30सुज्ञ जी आपकी जितनी तारीफ की जाये कम है...बड़े ही ...सुज्ञ जी आपकी जितनी तारीफ की जाये कम है...बड़े ही ख़ूबसूरत ढंग से जो आप दर्शन के इतने गहन विषयों को हम तक पंहुचा रहे हैं वो काबिले तारीफ है...जिसमे जैनदर्शन के प्राण तत्व अनेकांत-स्यादवाद एवं सप्तनय का वर्णन तो कमाल है...हार्दिक साधुवादAnkur Jainhttps://www.blogger.com/profile/17611511124042901695noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7546054676355588576.post-65539921056779681412011-09-08T16:08:20.070+05:302011-09-08T16:08:20.070+05:30कथा बेहद पसंद आई ..इसके पीछे छिपे उद्देश्य को भी स...कथा बेहद पसंद आई ..इसके पीछे छिपे उद्देश्य को भी समझ लिया है!वीरेंद्र सिंहhttps://www.blogger.com/profile/17461991763603646384noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7546054676355588576.post-68156895173987180022011-09-06T16:52:55.207+05:302011-09-06T16:52:55.207+05:30सारी बुराइयाँ किसी न किसी के लिए पीड़ादायक हिंसा ब...सारी बुराइयाँ किसी न किसी के लिए पीड़ादायक हिंसा बनती है. अतः सभी सद्गुणों को अहिंसा में समाहित किया जा सकता है... यही धर्म है... यही प्रकृति का धर्म है और यही सुनियोजित जीवन का विधान है. अर्थात्, अहिंसा पर्यावरण का संरक्षण विधान है.<br />@ आपके पास आकर नैतिक खुराक मिलती है. आज का सत्संग 'प्रकृति धर्म' को पर्यावरण से जोड़ रहा है.... आपके सूत्रों से कई धार्मिक जटिलताएँ सहजता से सुलझ जाती हैं. ... आप ब्लॉगजगत के ऋषि हो गये हैं. ..."ऋषि हंसराज सुज्ञ" ........ आपके नाम के आगे ऋषि नाम सुशोभित भी होता है.प्रतुल वशिष्ठhttps://www.blogger.com/profile/00219952087110106400noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7546054676355588576.post-85037825259554581732011-09-06T12:43:24.865+05:302011-09-06T12:43:24.865+05:30नयी पोस्ट का इन्तजार ...............नयी पोस्ट का इन्तजार ...............एक बेहद साधारण पाठकhttps://www.blogger.com/profile/14658675333407980521noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7546054676355588576.post-55834890171093505022011-09-06T07:40:14.787+05:302011-09-06T07:40:14.787+05:30दर्पण में यदि किसी भी व्यक्ति को अपना चेहरा भद्दा ...दर्पण में यदि किसी भी व्यक्ति को अपना चेहरा भद्दा लगे (जैसे 'जादुई शीशे' में, उसकी बनावट के कारण) और क्रोधित हो शीशे को तोड़ दे / अथवा अपनी तस्वीर फाड़ दे तो क्या वह व्यक्ति (अर्थात आत्मा जो अमृत / अमर है) भी टूट / फट कर टुकड़े टुकड़े हो जायेगा ???JChttps://www.blogger.com/profile/05374795168555108039noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7546054676355588576.post-49525860896868400052011-09-05T23:38:23.374+05:302011-09-05T23:38:23.374+05:30पर्यावरण का हिंसा ही बहुत गहरा सम्बन्ध है. हमारे ह...पर्यावरण का हिंसा ही बहुत गहरा सम्बन्ध है. हमारे हिंसक और घातक कृत्य जब प्रकृति से सहन नहीं होते, तब प्रकृति संतुलन कायम करने के लिए अपना रौद्र रूप दिखाती है जिसका खामियाजा सभी को भुगतना पड़ता है.निशांत मिश्र - Nishant Mishrahttps://www.blogger.com/profile/08126146331802512127noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7546054676355588576.post-88304874576906255972011-09-03T19:00:33.523+05:302011-09-03T19:00:33.523+05:30प्रेरणादायक आलेख, धन्यवाद!प्रेरणादायक आलेख, धन्यवाद!Smart Indianhttps://www.blogger.com/profile/11400222466406727149noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7546054676355588576.post-24789585517338111042011-09-02T06:32:17.685+05:302011-09-02T06:32:17.685+05:30जब में स्कूल में ही था तो केरल के अग्रहारम सरीखे म...जब में स्कूल में ही था तो केरल के अग्रहारम सरीखे मकानों में १० + वर्ष रहने के पश्चात पिताजी को बड़ी कोठी मिल गयी... वहाँ पीछे आउट हाउसेस थे और एक बड़ा मैदान भी था... गर्मियों की छुट्टियों में दोस्तों से दूर आ खेलने के लिए साथी नहीं रह गए थे, जिस कारण पीछे खड़े खड़े देखा कि गिलहरियाँ खाने की तालाश में डर डर के घूम रही थीं - खतरा होने पर पेड़ पर चढ़ जाती थीं... <br /><br />मेरे मन में उनसे दोस्ती करने का विचार आया, उनका मनुष्य से, कम से कम मुझसे, भय हटाने का... मैं डबल रोटी लाया और घास में बैठ उसके छोटे छोटे टुकडे कर उनकी ओर फेंकने लगा स्वयं शांत बैठ, बिना हिले डुले... गिलहरी डर के आती और टुकड़ा ले भाग जाती... मैं धीरे धीरे दूरी कम करता गया, यहाँ तक कि अपने हाथ में एक टुकड़ा रख उसे घास में रख दिया, पंजा खुला आकाश की ओर...<br /><br />वो निकट आ पहले मेरी चारों उँगलियों को एक एक कर सूंघी,,, और फिर पंजे के बाजू में आ अगले दो में से केवल एक पैर रख डरते डरते रोटी का टुकड़ा उठा जल्दी से चली गयी... किन्तु दूसरी बार उसने दोनों पैर रखे और रोटी मुंह में उठा निर्भय हो चली गयी :)JChttps://www.blogger.com/profile/05374795168555108039noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7546054676355588576.post-53503202102121135612011-09-01T21:27:48.074+05:302011-09-01T21:27:48.074+05:30जे सी जोशी जी,
सही कह रहे है आप, मानव प्रकृति के ...जे सी जोशी जी,<br /><br />सही कह रहे है आप, मानव प्रकृति के प्रति न केवल अपने कर्तव्य से च्यूत हुआ। बल्कि उसका अंधाधुंध अपव्यय भी किया।सुज्ञhttps://www.blogger.com/profile/04048005064130736717noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7546054676355588576.post-6559678974215965222011-09-01T18:35:34.942+05:302011-09-01T18:35:34.942+05:30वैज्ञानिकों का मानना है कि केवल मानव ही है जो अपना...वैज्ञानिकों का मानना है कि केवल मानव ही है जो अपना निर्धारित कार्य नहीं जानता, जबकि पृथ्वी पर अन्य 'निम्न श्रेणी के प्राणी' अपना निर्धारित कार्य किये जा रहे हैं यदि प्राकृतिक शक्तियां सामान्य हों,,, जैसे लैक्टो बैसिलस सामान्यतया दूध का दही बना देगा, यदि बहुत ठण्ड न हो... किन्तु मानव ही ऐसा जीव है (वर्तमान में, या सत युग को छोड़ अन्य युगों में?) जिसको यह पता ही नहीं है कि वो यहाँ, पृथ्वी में, क्यूँ आया हुआ है? / किसके लिए आया हुआ है, आदि आदि ????!!!! जबकि हमारा इतिहास बताता है कि प्राचीन विदेशी सैलानियों ने भारत कि यह विशेषता दर्शाई कि यहाँ आम आदमी भी ऐसे विषय पर चर्चा करता था... <br /><br />गीता में यद्यपि हमारे पूर्वज कह गए कि उसका कार्य केवल निराकार ब्रह्म और उसके साकार रूपों को जानना है, न कि निज स्वार्थ पूर्ती करना, पश्चिम की नक़ल कर :(JChttps://www.blogger.com/profile/05374795168555108039noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7546054676355588576.post-57220336547443157732011-09-01T18:21:09.064+05:302011-09-01T18:21:09.064+05:30क्षमा प्रार्थी हूँ हंसराज जी, मेरी टिप्पणी छूट गयी...क्षमा प्रार्थी हूँ हंसराज जी, मेरी टिप्पणी छूट गयी थी!!! <br /><br />पर्यावरण की बात करें तो, तो यद्यपि 'हम' मानव को राजा मानते हैं, किन्तु क्या यह धारणा सही है?????<br />नीचे दिए लिंक से उद्घृत लाइनें दे रहा हूँ जो सहायता करे हमारी सोच को सही दिशा दिखाने में...JChttps://www.blogger.com/profile/05374795168555108039noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7546054676355588576.post-6149713566182574802011-09-01T18:17:49.811+05:302011-09-01T18:17:49.811+05:30From a population standpoint, insects rule our pla...From a population standpoint, insects rule our planet. Scientists have gotten around to naming almost 900,000 different species of insects, but some experts suggest that there may be as many as 30 million more species that haven't yet been christened [source: Smithsonian]. These same scientists estimate that about 10 quintillion--that's 10 with 18 zeroes behind it--insects are alive on Earth at this very minute...<br /><br />See link: <br />http://curiosity.discovery.com/topic/importance-of-biodiversity/10-most-important-insects.htm#mkcpgn=fbapl1JChttps://www.blogger.com/profile/05374795168555108039noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7546054676355588576.post-22900518668108638012011-08-31T23:52:33.122+05:302011-08-31T23:52:33.122+05:30मनोज जी,
चार शब्दों में आपने आलेख का सार ही प्रस्...मनोज जी,<br /><br />चार शब्दों में आपने आलेख का सार ही प्रस्तुत कर दिया।सुज्ञhttps://www.blogger.com/profile/04048005064130736717noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7546054676355588576.post-51353600062388080192011-08-31T23:41:04.535+05:302011-08-31T23:41:04.535+05:30पर्यावरण यानी जिससे हम चारों ओर से ढ़के हैं की रक्...पर्यावरण यानी जिससे हम चारों ओर से ढ़के हैं की रक्षा हमारा धर्म है और अहिंसा ही इसे सुरक्षित रख सकती है; अहिंसा यानी हरेक के प्रति प्रेम भाव!मनोज भारतीhttps://www.blogger.com/profile/17135494655229277134noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7546054676355588576.post-16431708229229471472011-08-31T17:59:29.759+05:302011-08-31T17:59:29.759+05:30आपके विचारों से सहमत होता हूँ और हमेशा कुछ सीखकर ह...आपके विचारों से सहमत होता हूँ और हमेशा कुछ सीखकर ही जाता हूँ..चला बिहारी ब्लॉगर बननेhttps://www.blogger.com/profile/05849469885059634620noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7546054676355588576.post-65998906463607487292011-08-31T10:32:45.615+05:302011-08-31T10:32:45.615+05:30'अहिंसा' सिनेमा में भी होती है... मनोज बाज...'अहिंसा' सिनेमा में भी होती है... मनोज बाजपाई को एक बार कहते सुना था टीवी के किसी कार्यक्रम में,,, कि 'शोले' (अथवा किसी अन्य फिल्म में?) उन्होंने 'अमिताभ बच्चन' अर्थात 'वीरू' को मरते देखा तो उनके मन में ऐसा प्रभाव पड़ा कि वो मानने को तैयार नहीं थे कि वे अमिताभ बच्चन हो सकते हैं जब उन्हें किसी और फिल्म में भी कालांतर में देखा :)<br /><br />'हिन्दू' मान्यतानुसार परमेश्वर शून्य काल और स्थान से सम्बंधित है - अकेला,,, और साकार ब्रह्माण्ड उनके मन में ही है, परन्तु क्यूंकि वो अनंत परमज्ञानी हैं, सर्वगुण संपन्न हैं, वो सक्षम हैं अनादि काल से अनंत काल तक 'योग माया' द्वारा रचित सृष्टि के विभिन्न रूपों के माध्यम से अनुभूति कर पाना, अनादि और अनंत काल से दृष्टा भाव से जैसे वो करते आ रहे हैं - वैसे ही जैसे उनके अस्थायी रूपों को भी - थोड़े से काल तक ही भले ही - नाटक देख पाना प्रतीत होता है और 'द्वैतवाद' के कारण, अज्ञानता वश, दुःख - सुख कि अनुभूति करते रहते हैं ... <br /><br />इस 'कृष्णलीला' को इसी कारण योगियों ने स्थित्प्रग्य हो (मुनि समान?) देखने का सुझाव दिया (वैसे ही जैसे 'हम' उनके प्रतिबिम्ब समान कोई फिल्म देखते हैं, चुप चाप अँधेरे हौल में, हाथ पर हाथ धर बैठ)...JChttps://www.blogger.com/profile/05374795168555108039noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7546054676355588576.post-5033825782249286492011-08-31T10:24:10.175+05:302011-08-31T10:24:10.175+05:30वाह,पर्यावरण तो मेरा प्रिय विषय है.
सुन्दर लिखा है...वाह,पर्यावरण तो मेरा प्रिय विषय है.<br />सुन्दर लिखा है आपने.<br /><br />जैसे ही आसमान पे देखा हिलाले-ईद.<br />दुनिया ख़ुशी से झूम उठी है,मनाले ईद.<br />ईद मुबारक<br />कुँवर कुसुमेशKunwar Kusumeshhttps://www.blogger.com/profile/15923076883936293963noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7546054676355588576.post-39316754896168672822011-08-31T06:16:50.064+05:302011-08-31T06:16:50.064+05:30सुंदर विश्लेषण ...पूरी तरह सहमत हूँ.....सुंदर विश्लेषण ...पूरी तरह सहमत हूँ..... डॉ. मोनिका शर्मा https://www.blogger.com/profile/02358462052477907071noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7546054676355588576.post-35953080439068751562011-08-30T17:13:21.250+05:302011-08-30T17:13:21.250+05:30मानव मस्तिष्क की कार्यप्रणाली विचित्र है, और उसका ...मानव मस्तिष्क की कार्यप्रणाली विचित्र है, और उसका नियंत्रक भी !... सन '८० फरवरी में मैं अपने चार अन्य पारिवारिक सदस्यों के साथ गुवाहाटी पहुँच गया...ब्रह्मपुत्र नदी के किनारे बसे होने से बहुत मच्छर थे वहाँ... एक दिन पत्र लिख रहा था तो एक मच्छर हाथ पर बैठ गया... और जैसा आम होता है, मेरा बांया हाथ उठ गया उसे मारने के लिए... किन्तु उस क्षण एक विचार मन में कौंधा, "एक 'वैज्ञानिक' होते हुए भी मैं मच्छर को क्यूँ मारता था, जबकि अपने तत्कालीन ४० + वर्ष की आयु तक मुझे मलेरिया कभी नहीं हुआ था! वो बेचारा तो 'पापी पेट' की खातिर थोडा सा रक्त पीता था!" यह सोच मेरा बांया हाथ नीचे अगया और मैंने उस से कहा "जितना पीना है पीले! मैं हाथ नहीं हिलाऊंगा, नहीं तो तू डर के उड़ जाएगा"... आश्चर्य हुआ जब वो आराम से अब आगे बढ़ ऊँगली पर पहुँच मेरी कलम को धक्का सा मारने लगा! जब मैंने हाथ से कलम नहीं छोड़ा तो अंगूठे के ऊपर पहुँच गया और एक स्थान चुन लगा खून पीने! मैंने सोचा था वो दो चार बूँद खों पी उड़ जाएगा,,, किन्तु जैसे मुफ्त की शराब काजी को भी हलाल होती है वो टंकी फुल करने लगा :) काफी समय निकल गया... फिर एक बार देखा की वो नीचे मेज़ पर उतर चूका था और आगे ऐसे बढ़ रहा था जैसे कोई शराबी चलता है :)<br /><br />मैंने सोचा था मेरा निमंत्रण केवल उस मच्छर के लिए था,,, किन्तु उसके बाद जो भी मच्छर आता उसी अंदाज़ से पीता था जैसे वो मेरा अतिथि था (और, 'अतिथि देवो भव'!)...JChttps://www.blogger.com/profile/05374795168555108039noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7546054676355588576.post-40696184031675898432011-08-30T15:12:02.342+05:302011-08-30T15:12:02.342+05:30पर्यावरण में अहिंसा का सन्दर्भ बहुत अच्छा लगा। एक...पर्यावरण में अहिंसा का सन्दर्भ बहुत अच्छा लगा। एक नया दृष्टिकोण मिला आज। आभार।ZEALhttps://www.blogger.com/profile/04046257625059781313noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7546054676355588576.post-51528202608685967752011-08-30T12:12:20.068+05:302011-08-30T12:12:20.068+05:30नीरज जी,
ब्लॉग प्रशंसा के लिए बहुत बहुत आभार!!नीरज जी,<br /><br />ब्लॉग प्रशंसा के लिए बहुत बहुत आभार!!सुज्ञhttps://www.blogger.com/profile/04048005064130736717noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7546054676355588576.post-56270478262613950432011-08-30T11:49:24.163+05:302011-08-30T11:49:24.163+05:30Arre haan...Aap ka Blog bahut hi sundar hai...beht...Arre haan...Aap ka Blog bahut hi sundar hai...behtariin shaliin sajawat...man bhavan.नीरज गोस्वामीhttps://www.blogger.com/profile/07783169049273015154noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7546054676355588576.post-7232754420956108132011-08-30T11:48:21.401+05:302011-08-30T11:48:21.401+05:30Bahut saargarbhit post.Badhai swiikarenBahut saargarbhit post.Badhai swiikarenनीरज गोस्वामीhttps://www.blogger.com/profile/07783169049273015154noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7546054676355588576.post-20030438946178647112011-08-30T11:20:19.401+05:302011-08-30T11:20:19.401+05:30सही कहा अजित जी,
हमें अब समस्त सृष्टि पृथ्वी, अग्...सही कहा अजित जी,<br /><br />हमें अब समस्त सृष्टि पृथ्वी, अग्नी(उर्ज़ा), हलन-चलन करते जीव,स्थूल वनस्पति, वायु और जल तक अहिंसक बन्धुत्व भाव स्थापित करने की आवश्यकता है। जब बन्धुत्व युक्त संरक्षण भाव समस्त सृष्टि तक विस्तृत होगा तो 'मानव बंधुत्व' अपने चरम लक्ष्य को स्वतः प्राप्त कर लेगा।सुज्ञhttps://www.blogger.com/profile/04048005064130736717noreply@blogger.com