tag:blogger.com,1999:blog-7546054676355588576.post5832412141888533718..comments2023-10-21T14:43:56.493+05:30Comments on सुज्ञ: सत्य का भ्रमसुज्ञhttp://www.blogger.com/profile/04048005064130736717noreply@blogger.comBlogger37125tag:blogger.com,1999:blog-7546054676355588576.post-13463858899084669802013-04-13T19:05:17.527+05:302013-04-13T19:05:17.527+05:30आभार देवेन्द्र जी,
आपने सही कहा, धूर्तता हमेशा ही...आभार देवेन्द्र जी,<br /><br />आपने सही कहा, धूर्तता हमेशा ही आभासी सत्य, मनभावन व प्रलोभन के स्वरूप में ही आती है। नीर क्षीर विवेक, तथ्य विश्लेषण बुद्धि और दृष्टिकोण सतर्कता ही यथार्थ पर पहूँचाती है।सुज्ञhttps://www.blogger.com/profile/04048005064130736717noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7546054676355588576.post-67094577214113661772013-04-13T15:57:50.949+05:302013-04-13T15:57:50.949+05:30सुंदर कथा का सुंदर प्रयोग।
कभी-कभी मामला उलट भी ह...सुंदर कथा का सुंदर प्रयोग।<br /><br />कभी-कभी मामला उलट भी होता है। अहंकारी व्यक्ति इसी कथा को सुनाकर अपनी गलत बात को सही और दूसरों की सही बात को भी गलत कह सकता है। समझदारी इसी में है कि सिक्के के दोनो पहलुओं की खूब जांच पड़ताल कर ली जाय।देवेन्द्र पाण्डेयhttps://www.blogger.com/profile/07466843806711544757noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7546054676355588576.post-69342318869465632472013-04-13T11:48:02.734+05:302013-04-13T11:48:02.734+05:30बहुत आभार आपका!!
तो यह ठग कथा भी देखिए………
अस्थिर...बहुत आभार आपका!!<br /><br />तो यह ठग कथा भी देखिए………<br /><a href="http://shrut-sugya.blogspot.in/2011/03/blog-post_22.html" rel="nofollow"> अस्थिर आस्थाओं के ठग</a>सुज्ञhttps://www.blogger.com/profile/04048005064130736717noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7546054676355588576.post-40377089697043789212013-04-12T19:22:33.191+05:302013-04-12T19:22:33.191+05:30बहुत सुन्दर रोचक प्रस्तुति ....
मुझे तो ठगों का कह...बहुत सुन्दर रोचक प्रस्तुति ....<br />मुझे तो ठगों का कहानी पढने में बड़ा मजा आता है .. शुक्रिया ...कविता रावत https://www.blogger.com/profile/17910538120058683581noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7546054676355588576.post-13819128859613973002013-04-10T23:40:02.042+05:302013-04-10T23:40:02.042+05:30बहुत ही आभार सलिल जी,आप जैसे स्नेहीजन के सत्संग का...बहुत ही आभार सलिल जी,आप जैसे स्नेहीजन के सत्संग का प्रभाव है.सुज्ञhttps://www.blogger.com/profile/04048005064130736717noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7546054676355588576.post-36771506027425938322013-04-10T23:37:12.080+05:302013-04-10T23:37:12.080+05:30प्रोत्साहन के लिए बहुत बहुत आभार राजेंद्र जी
नव स...प्रोत्साहन के लिए बहुत बहुत आभार राजेंद्र जी<br /><br />नव संवत्सर की बधाई ! और मंगलकामनाएं!!!सुज्ञhttps://www.blogger.com/profile/04048005064130736717noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7546054676355588576.post-53827799131999172932013-04-10T23:20:54.196+05:302013-04-10T23:20:54.196+05:30ऐसी नीति-कथाएं वस्तुतः कालजयी हैं..!! आपने तो इसे ...ऐसी नीति-कथाएं वस्तुतः कालजयी हैं..!! आपने तो इसे और भी सामयिक बना दिया!!चला बिहारी ब्लॉगर बननेhttps://www.blogger.com/profile/05849469885059634620noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7546054676355588576.post-75577853383581677622013-04-10T02:26:58.634+05:302013-04-10T02:26:58.634+05:30नव संवत् का रवि नवल, दे स्नेहिल संस्पर्श !
पल प्रत...<b> </b><br /><b> </b><br /><b><a href="http://shabdswarrang.blogspot.com/" rel="nofollow"><br />नव संवत् का रवि नवल, दे स्नेहिल संस्पर्श !<br />पल प्रतिपल हो हर्षमय, पथ पथ पर उत्कर्ष !!</a></b><br /><b> </b><br /><b> </b><br /><b> </b>सुंदर और प्रेरक बोधकथा है <b><i>आदरणीय सुज्ञ जी ! </i></b> <br /><b> </b>बचपन में पढ़ी-सुनी हुई है... <br /><br />सही कहा आपने -<b>कमियों की स्मृति में ही डूबे रहना, उन्हें विकराल स्वरूप में पेश करना, समझना और उसी में शोक संतप्त रहना, आशाविहीन अवसाद में जांना है। <br />शोक कितना भी हृदय विदारक हो, आखिर उससे उबरने में ही जीवन की भलाई है। </b><br /><b> </b> <br />श्रेष्ठ पोस्ट के लिए आभार !<br /><br />आपको सपरिवार <b>नव संवत्सर की बहुत बहुत बधाई !<br />हार्दिक शुभकामनाएं-मंगलकामनाएं... </b> <br />-राजेन्द्र स्वर्णकार <br /><b> </b><br /><b> </b><br /><b> </b>Rajendra Swarnkar : राजेन्द्र स्वर्णकारhttps://www.blogger.com/profile/18171190884124808971noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7546054676355588576.post-89290942722722998592013-04-09T09:21:10.028+05:302013-04-09T09:21:10.028+05:30निसंदेह सुधार के लिए अपने अपने स्तर पर प्रण लेना स...निसंदेह सुधार के लिए अपने अपने स्तर पर प्रण लेना समाधान का मार्ग बना सकता है.किंतु प्रण भी तभी टिकते है जब प्रण धारण करने वाला पात्र शुभचिंतन के प्रति सुनियोजित और सुदृढ हो. सार्थक चिंतन, सात्विक विचार और अनुकम्पा भाव उस पात्र को धारण करने व निभाने योग्य अनुकूलता और सामर्थ्य प्रदान करता है.<br /><br />और ऐसे पुरूषार्थ करने के लिए आत्मबल का मजबूत होना बेहद जरूरी है. हताश निर्बल मनोबल साहस नहीं करता अतः सर्वप्रथम मनोबल को गिरने से बचाना भी जरूरी है.<br /><br />अपनी गलतियोँ का रोना रोते रहना, कुरेद कुरेद कर अपनी असफलताओँ को याद करना, त्रृटियों की सूची ही अपडेट करते रहना, तिल को ताड का स्वरूप देना और दिलो-दिमाग पर राई का भी पहाड सम भार धरे रहना, मनो-मस्तिक्ष को कमियों कमजोरियोँ के सतत संदेश देना, मनोबल पतन के पर्याप्त कारण है.<br /><br />सत्य के नाम पर अपवाद व अंधेरे पक्ष को अतिशय उभार कर दर्शाने से,आत्मग्लानी का प्रसार भी सामूहिकता में होता है,और मनोबल भी सामूहिक धराशायी होते है. अच्छाई का मार्ग उँचाई का होता है और चढाई मेँ श्रम व पुरूषार्थ लगता है जबकि बुराई का मार्ग ढलान वाला होता है और फिसलते न श्रम लगता है न समय. जैसे कपडा सहज संयोगो से फट तो सकता है लेकिन सांयोगिक सहज ही सिल नहीं जात,सिलने के लिए विशेष श्रम की आवश्यकता होती है.सुज्ञhttps://www.blogger.com/profile/04048005064130736717noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7546054676355588576.post-23167423180978931542013-04-09T06:40:17.432+05:302013-04-09T06:40:17.432+05:30जी, सही कहा, और विवेक टिकाए रखने के लिए सात्विक सक...जी, सही कहा, और विवेक टिकाए रखने के लिए सात्विक सकारात्मक धरातल होना आवश्यक है.सुज्ञhttps://www.blogger.com/profile/04048005064130736717noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7546054676355588576.post-47071336458953061732013-04-08T23:57:35.501+05:302013-04-08T23:57:35.501+05:30विवेक का प्रयोग इसीलिये आवश्यक है.विवेक का प्रयोग इसीलिये आवश्यक है.भारतीय नागरिक - Indian Citizenhttps://www.blogger.com/profile/07029593617561774841noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7546054676355588576.post-66029113198427570022013-04-08T17:24:53.683+05:302013-04-08T17:24:53.683+05:30कमियों का सतत चिंतन ना छूटे तो आत्मग्लानी का सवार ...कमियों का सतत चिंतन ना छूटे तो आत्मग्लानी का सवार होना निश्चित है. आत्मगर्व की प्रेरणा ही सकारात्मक ध्येय प्रदान कर सकती है.सुज्ञhttps://www.blogger.com/profile/04048005064130736717noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7546054676355588576.post-65536722491764692692013-04-08T17:21:03.031+05:302013-04-08T17:21:03.031+05:30बात आपकी सही है, विवेक के प्रति सजग रहना बहुत कठिन...बात आपकी सही है, विवेक के प्रति सजग रहना बहुत कठिन होता है.<br /><br />आपका आभार जीसुज्ञhttps://www.blogger.com/profile/04048005064130736717noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7546054676355588576.post-38566476190716937892013-04-08T16:47:29.619+05:302013-04-08T16:47:29.619+05:30भले सारा सकारात्मक न दिखाया जाय, लेकिन जो दिखाया ज...भले सारा सकारात्मक न दिखाया जाय, लेकिन जो दिखाया जाय वह नकारात्मक का भँडार ही तो ना हो, सच है इसलिए भी दिखाना चाहते हो तब भी अच्छा बुरा जिस रेश्यो में है उसी रेश्यो में दोनो को दिखाओ. यह भी क्या बात हुई कि छाँट छाँट कर मात्र बुराईयोँ को ही दिखाया जाय, काले पक्ष को इतना बढा चढा दिया जाय कि उसकी प्रगाढता में सफेद लाख प्रयासों के बाद भी कभी नजर ही न आए.<br /><br />सादर आभार!!सुज्ञhttps://www.blogger.com/profile/04048005064130736717noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7546054676355588576.post-28021807387986924522013-04-08T16:21:50.520+05:302013-04-08T16:21:50.520+05:30सही है लेकिन निरंतर चोटें लोहे का स्वरूप बदलने में...सही है लेकिन निरंतर चोटें लोहे का स्वरूप बदलने में भी समर्थ हो जाती है.<br /><br />jai baba....सुज्ञhttps://www.blogger.com/profile/04048005064130736717noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7546054676355588576.post-60687079056507427472013-04-08T16:14:09.125+05:302013-04-08T16:14:09.125+05:30भ्रम स्थितप्रज्ञ बना देता है, सोच कुँद हो जाती है....भ्रम स्थितप्रज्ञ बना देता है, सोच कुँद हो जाती है.सुज्ञhttps://www.blogger.com/profile/04048005064130736717noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7546054676355588576.post-49096286169892321242013-04-08T16:12:34.929+05:302013-04-08T16:12:34.929+05:30दुःख का ताउम्र मातम, रोज रूदालियोँ के रूदन में जीव...दुःख का ताउम्र मातम, रोज रूदालियोँ के रूदन में जीवन व्यतीत करने जैसा ही है.<br /><br />आपका आभार!!सुज्ञhttps://www.blogger.com/profile/04048005064130736717noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7546054676355588576.post-52108513197940410942013-04-08T16:07:19.122+05:302013-04-08T16:07:19.122+05:30आत्म विश्वास कम होते जाना और हीनता बोध का जडेँ जमा...आत्म विश्वास कम होते जाना और हीनता बोध का जडेँ जमाना सहज सामान्य होते जाता है.<br /><br />बहुत बहुत आभार!! कालिपद जीसुज्ञhttps://www.blogger.com/profile/04048005064130736717noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7546054676355588576.post-32275405200268276392013-04-08T16:01:17.039+05:302013-04-08T16:01:17.039+05:30रसरी आवत जात के सील पर परत निसान!!भ्रम विवेक को सु...रसरी आवत जात के सील पर परत निसान!!भ्रम विवेक को सुला देता है और बुद्धि को भ्रमित कर देता है.<br /><br />आपका आभार!!सुज्ञhttps://www.blogger.com/profile/04048005064130736717noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7546054676355588576.post-53433727544683791112013-04-08T15:55:47.245+05:302013-04-08T15:55:47.245+05:30टिप्पणी का उद्देश्य ठगी है यह बकरी का मालिक को पहल...टिप्पणी का उद्देश्य ठगी है यह बकरी का मालिक को पहले ज्ञात हो जाय तो ठग अपने प्रयोजन में सफल ही न हो...सुज्ञhttps://www.blogger.com/profile/04048005064130736717noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7546054676355588576.post-45114614923887427782013-04-08T15:50:24.946+05:302013-04-08T15:50:24.946+05:30सही कहा आपने...."मनुष्य अगर मन में भी कोई भाव...सही कहा आपने...."मनुष्य अगर मन में भी कोई भाव बार-बार लेकर आ रहा है तो उसका असर उसकी मानसिकता पर पढता है।"<br /><br />वस्तुतः मानस इसी तरह हताश होता है, आत्मश्रद्धाएँ बिखर जाती है और पुनः गौरव युक्त कर्म का साहस ही समाप्त हो जाता है.सुज्ञhttps://www.blogger.com/profile/04048005064130736717noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7546054676355588576.post-78382775604738079692013-04-08T15:39:26.825+05:302013-04-08T15:39:26.825+05:30'सोच का अपहरण' ही कह सकते है.
आभार!!'सोच का अपहरण' ही कह सकते है.<br /><br />आभार!!सुज्ञhttps://www.blogger.com/profile/04048005064130736717noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7546054676355588576.post-36814834831497004992013-04-08T15:36:33.457+05:302013-04-08T15:36:33.457+05:30समस्या दिखाना ही वे अपना पेशा अपना कर्तव्य समझते ह...समस्या दिखाना ही वे अपना पेशा अपना कर्तव्य समझते है ठीक उस तरह जैसे कोई पत्रकार दुर्घटना मेँ घायल के तडपने की फिल्म बनाने में ही लगा रहता है, उसको तत्काल स्वास्थ्य सुविधा पहूँचाना उसके कर्तव्य में नहीँ आता.सुज्ञhttps://www.blogger.com/profile/04048005064130736717noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7546054676355588576.post-74984974527535037752013-04-08T15:26:59.278+05:302013-04-08T15:26:59.278+05:30सार सार को गेहि रहे,थोथा देय उडाय....सूप का यह सुल...सार सार को गेहि रहे,थोथा देय उडाय....सूप का यह सुलक्षण है लेकिन सूप धारक जब थोथा का ही प्रदर्शन करता है और सार को व्यर्थ फैक देता है तो वही सुलक्षण, कुलक्षण में रूपांतरित हो जाता है.<br /><br />आभार आपका!!!सुज्ञhttps://www.blogger.com/profile/04048005064130736717noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7546054676355588576.post-30916665267969019352013-04-07T13:21:23.169+05:302013-04-07T13:21:23.169+05:30अपने कमियों के चिंतन छोड़ उसे सुधरने का यत्न करनी ...अपने कमियों के चिंतन छोड़ उसे सुधरने का यत्न करनी चाहिये.बेहतरीन रचना.Rajendra kumarhttps://www.blogger.com/profile/00010996779605572611noreply@blogger.com