tag:blogger.com,1999:blog-7546054676355588576.post544012675199539203..comments2023-10-21T14:43:56.493+05:30Comments on सुज्ञ: समतासुज्ञhttp://www.blogger.com/profile/04048005064130736717noreply@blogger.comBlogger21125tag:blogger.com,1999:blog-7546054676355588576.post-4104581187682548912012-08-28T11:58:39.168+05:302012-08-28T11:58:39.168+05:30समता रस का पान सुखद होता है। .बहुत सराहनीय प्रस्तु...समता रस का पान सुखद होता है। .बहुत सराहनीय प्रस्तुति.<br />बहुत सुंदर बात कही है इन पंक्तियों में. दिल को छू गयी. आभार !<br /><br />Madan Mohan Saxenahttps://www.blogger.com/profile/02335093546654008236noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7546054676355588576.post-26135841119601453692011-05-25T16:29:03.184+05:302011-05-25T16:29:03.184+05:30अती उत्तम लेखन ... पर ऐसे भाव लाना बहुत कठिन है .....अती उत्तम लेखन ... पर ऐसे भाव लाना बहुत कठिन है ... बहुत तपस्या करनी होती है ...दिगम्बर नासवाhttps://www.blogger.com/profile/11793607017463281505noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7546054676355588576.post-86348603925445784982011-05-25T13:35:10.339+05:302011-05-25T13:35:10.339+05:30बहुत ही सुन्दर भाव संजोये हैं !
मन को छू गया आपका ...बहुत ही सुन्दर भाव संजोये हैं !<br />मन को छू गया आपका लेख !ज्ञानचंद मर्मज्ञhttps://www.blogger.com/profile/06670114041530155187noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7546054676355588576.post-16895744660481731682011-05-25T12:09:19.872+05:302011-05-25T12:09:19.872+05:30समता की भावना लाना ही तो कठिन कार्य है ..सार्थक चि...समता की भावना लाना ही तो कठिन कार्य है ..सार्थक चिंतनसंगीता स्वरुप ( गीत )https://www.blogger.com/profile/18232011429396479154noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7546054676355588576.post-58783593277572307512011-05-24T23:42:16.367+05:302011-05-24T23:42:16.367+05:30हंसराज भाई बेहद सुन्दर अभिव्यक्ति...बहुत सार्थक चि...हंसराज भाई बेहद सुन्दर अभिव्यक्ति...बहुत सार्थक चिंतन...दिवसhttps://www.blogger.com/profile/07981168953019617780noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7546054676355588576.post-64730973663781062472011-05-24T23:03:24.484+05:302011-05-24T23:03:24.484+05:30समता की साधना से सारे अन्तर्द्वन्द्व खत्म हो जाते ...समता की साधना से सारे अन्तर्द्वन्द्व खत्म हो जाते है, क्लेश समाप्त हो जाते है। <br /><br />पर मन में ये समता का भाव लाना...बहुत ही मुश्किल है, अक्सर लोगो के मन में दूसरे से श्रेष्ठता की भावना आ जाती है...पर मन को सुकून देना है तो ये भाव विकसित करने ही होंगे.<br /><br />बहुत ही सार्थक चिंतनrashmi ravijahttps://www.blogger.com/profile/04858127136023935113noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7546054676355588576.post-46273970387807910382011-05-24T22:22:15.580+05:302011-05-24T22:22:15.580+05:30समता की साधना से सारे अन्तर्द्वन्द्व खत्म हो जाते ...समता की साधना से सारे अन्तर्द्वन्द्व खत्म हो जाते है, क्लेश समाप्त हो जाते है। उसका समग्र चिंतन समता में एकात्म हो जाता है। चित्त में समाधि भाव आ जाता है।<br /><br /><br />स्मार्ट इन्डियन जी की बात दोहरा रहा हूँ ......<br /><br />दुष्कर तो है, परंतु प्रयास करने में क्या हर्ज़ है? आप जैसे अच्छे लोग याद दिलाते रहेंगे तो काम और आसान हो जायेगा।एक बेहद साधारण पाठकhttps://www.blogger.com/profile/14658675333407980521noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7546054676355588576.post-92088427436892743162011-05-24T20:56:19.158+05:302011-05-24T20:56:19.158+05:30समता की साधना से सारे अन्तर्द्वन्द्व खत्म हो जाते ...समता की साधना से सारे अन्तर्द्वन्द्व खत्म हो जाते है, क्लेश समाप्त हो जाते है। उसका समग्र चिंतन समता में एकात्म हो जाता है। चित्त में समाधि भाव आ जाता है।<br /><br />Wonderful post !...Very useful one.<br /><br />Thanks and regards.<br /><br />.ZEALhttps://www.blogger.com/profile/04046257625059781313noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7546054676355588576.post-52984796385766841302011-05-24T13:05:22.942+05:302011-05-24T13:05:22.942+05:30समता का भाव आ जाये तो जीवन सफ़ल हो जाये।समता का भाव आ जाये तो जीवन सफ़ल हो जाये।vandana guptahttps://www.blogger.com/profile/00019337362157598975noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7546054676355588576.post-64606724242849852072011-05-24T11:53:35.842+05:302011-05-24T11:53:35.842+05:30बिल्कुल सच कहा है आपने ...इस प्रस्तुति में ।बिल्कुल सच कहा है आपने ...इस प्रस्तुति में ।सदाhttps://www.blogger.com/profile/10937633163616873911noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7546054676355588576.post-84464801480408908312011-05-24T10:22:23.819+05:302011-05-24T10:22:23.819+05:30राहुल सिंह जी नें मेल से अभिव्यक्ति दी………
'&#...राहुल सिंह जी नें मेल से अभिव्यक्ति दी………<br /><br />''भली बातें, भले विचार''सुज्ञhttps://www.blogger.com/profile/04048005064130736717noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7546054676355588576.post-11938411001075244652011-05-24T08:36:34.642+05:302011-05-24T08:36:34.642+05:30saarthak chintan..saarthak chintan..amit kumar srivastavahttps://www.blogger.com/profile/10782338665454125720noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7546054676355588576.post-66408922996679173922011-05-24T07:20:21.089+05:302011-05-24T07:20:21.089+05:30दुष्कर तो है, परंतु प्रयास करने में क्या हर्ज़ है?...दुष्कर तो है, परंतु प्रयास करने में क्या हर्ज़ है? आप जैसे अच्छे लोग याद दिलाते रहेंगे तो काम और आसान हो जायेगा।Smart Indianhttps://www.blogger.com/profile/11400222466406727149noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7546054676355588576.post-88162819753541165292011-05-24T01:10:24.306+05:302011-05-24T01:10:24.306+05:30-@"किन्तु मानसिक गुणों का क्या करें ! सत-रज-त...-@"किन्तु मानसिक गुणों का क्या करें ! सत-रज-तम गुण के आधार पर ही तो किसी का मेंटल कांस्टीट्यूशन निर्मित होता है ...और फिर वह अपनी इसी मानसवृत्ति के अनुरूप अपना जीवन पथ चुनता है."<br /><br />कौशलेन्द्र जी,<br />इस तरह निश्चय (फिक्स)व्यवहार नहीं हो सकता अन्यथा पुरूषार्थ महत्वहीन हो जायेगा। पुरूषार्थ से ही श्रेणि चढकर व्यक्ति तम से रज और रज गुण से सत गुण में प्रवेश पा सकता है। मनोवृत्ति में उत्थान के लिये ही तो पुरूषार्थ कहा गया है और ऐसे ही पुरूषार्थ का एक साधन है समता भाव। पुरूषार्थ सदैव दुष्कर होता है पर असम्भव नहीं।सुज्ञhttps://www.blogger.com/profile/04048005064130736717noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7546054676355588576.post-51228169827123011562011-05-23T23:13:11.131+05:302011-05-23T23:13:11.131+05:30@ परन्तु क्या वास्तव में धैर्य और समता का पथ दुष्क...@ परन्तु क्या वास्तव में धैर्य और समता का पथ दुष्कर है? <br /><br />सुज्ञ जी ! यह पथिक पर निर्भर करता है कि किस पथ पर चलने की ...कितनी क्षमता उसमें है . यह उसका आकलन है कि पथ कौन सा दुष्कर है. इसमें एकरूप सिद्धांत नहीं बनाया जा सकता ...क्योंकि यह व्यवहारवाद का विषय है. यद्यपि सत्य यही है कि स्थितिप्रज्ञता के भाव से किया गया अभिनय ही श्रेयस्कर पथ है. किन्तु मानसिक गुणों का क्या करें ! सत-रज-तम गुण के आधार पर ही तो किसी का मेंटल कांस्टीट्यूशन निर्मित होता है ...और फिर वह अपनी इसी मानसवृत्ति के अनुरूप अपना जीवन पथ चुनता है.बस्तर की अभिव्यक्ति जैसे कोई झरनाhttps://www.blogger.com/profile/11751508655295186269noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7546054676355588576.post-65108081505649119162011-05-23T21:32:38.657+05:302011-05-23T21:32:38.657+05:30आजकल समता के विषय में 'सेक्युलर' शब्द सुनन...आजकल समता के विषय में 'सेक्युलर' शब्द सुनने में आता है, जिसे कुछ 'सर्व धर्म सम भाव' द्वारा समझाते हैं... जैसा वर्तमान में भी देखने को मिलता है मूषक से पर्वत तक, जीव से निर्जीव तक, विभिन्न देवता की पूजा,,, <br /><br />प्राचीन 'भारत' में जब शायद 'हिन्दू' ही इस भूमि में रहते थे, स्वतंत्रता रही होगी आप को कि आप बिना रोक टोक किस प्रकार सर्वमान्य निराकार परमात्मा तक अंतर्मुखी हो किसी भी माध्यम द्वारा पहुँच सकते हैं (अथवा पहुँचने का प्रयास कर सकते हैं)... किन्तु इसे, द्वैतवाद को, भले-बुरे को, काल का प्रभाव ही माना गया मानव की अपने ही अंश आत्मा की परीक्षा हेतु निराकार ब्रह्म द्वारा रचित 'माया' के कारण... जिस कारण गीता में भी कृष्ण को कहते दर्शाया गया कि वो यद्यपि सभी साकार के भीतर विराजमान है किन्तु प्रत्येक मानव का कर्तव्य है कि वो दुःख- सुख में, सर्दी-गर्मी में एक सा ही व्यवहार करे, स्थितप्रज्ञ रहे और उसमें अपने सभी कर्मों को - सात्विक, राजसिक, तामसिक - आत्म-समर्पण कर दृष्टा भाव से जीवन यापन करे, क्यूंकि फल तो उसने पहले से ही निर्धारित किया हुआ है :)...किन्तु कलियुग में यदि 'हम' इसे कठिन समझते हैं तो यह भी स्वभाविक ही है, काल का ही प्रभाव है...काल-चक्र में प्रवेश पा आत्मा को विभिन्न कर्मों को करना ही पड़ेगा, किसी को भी छूट नहीं है :)JChttps://www.blogger.com/profile/05374795168555108039noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7546054676355588576.post-84847239150906788352011-05-23T19:53:21.345+05:302011-05-23T19:53:21.345+05:30कुछ लोग पूर्वाग्रह से ग्रसित होते हैं, वे मौका तला...कुछ लोग पूर्वाग्रह से ग्रसित होते हैं, वे मौका तलाशते हैं कि कैसे आपपर वार करें, लेकिन मै अधिकतर ऐसे प्रसंगों पर शान्त रहने का ही प्रयास करती हूँ। <br /><br />अजित जी,<br /><br />शान्त रहने के संघर्ष में चिंतन करें तो पाएंगे कि अधिक परेशानी तो वार करने वाले को हुई है। यह बात हमारे शान्त चित्त में योगदान देगी।सुज्ञhttps://www.blogger.com/profile/04048005064130736717noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7546054676355588576.post-19954037844586352112011-05-23T19:34:40.144+05:302011-05-23T19:34:40.144+05:30सुज्ञजी, समता भाव लाना बहुत ही दुष्कर कर्म है। जब...सुज्ञजी, समता भाव लाना बहुत ही दुष्कर कर्म है। जब कोई आप पर सीधे ही आक्रमण करदे तब भी आप समता रखें, बहुत कठिन हो जाता है। लेकिन जब यह भाव सधने लगता है जब अनावश्यक वाद-विवाद से आप बच जाते हैं। मैंने समता भाव को साधने का बहुत प्रयास किया है, मुझे स्वयं पर आश्चर्य भी होता है। लेकिन कभी-कभी अति होने पर धैर्य साथ छोड़ भी देता है। ब्लाग पर यह भाव बहुत काम आता है, कुछ लोग पूर्वाग्रह से ग्रसित होते हैं, वे मौका तलाशते हैं कि कैसे आपपर वार करें, लेकिन मै अधिकतर ऐसे प्रसंगों पर शान्त रहने का ही प्रयास करती हूँ।अजित गुप्ता का कोनाhttps://www.blogger.com/profile/02729879703297154634noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7546054676355588576.post-80870943158672532172011-05-23T19:15:13.287+05:302011-05-23T19:15:13.287+05:30सच कहा है आपने!
विवेक जैन vivj2000.blogspot.comसच कहा है आपने!<br /><a href="http://vivj2000.blogspot.com/" rel="nofollow"><b> विवेक जैन </b><i>vivj2000.blogspot.com</i></a>Vivek Jainhttps://www.blogger.com/profile/06451362299284545765noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7546054676355588576.post-5137147579787294182011-05-23T18:57:06.691+05:302011-05-23T18:57:06.691+05:30धैर्य जीवन की सफ़लता का राज है, सुंदर भावधैर्य जीवन की सफ़लता का राज है, सुंदर भावललित "अटल"https://www.blogger.com/profile/05909260328579234920noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7546054676355588576.post-65112375587012438502011-05-23T18:37:17.775+05:302011-05-23T18:37:17.775+05:30समता की साधना से सारे अन्तर्द्वन्द्व खत्म हो जाते ...समता की साधना से सारे अन्तर्द्वन्द्व खत्म हो जाते है, क्लेश समाप्त हो जाते है। उसका समग्र चिंतन समता में एकात्म हो जाता है। चित्त में समाधि भाव आ जाता है।<br />kitni achhi baat kahi hai ...vyavahaar me lana chahiyeरश्मि प्रभा...https://www.blogger.com/profile/14755956306255938813noreply@blogger.com