tag:blogger.com,1999:blog-7546054676355588576.post2654980384536702384..comments2023-10-21T14:43:56.493+05:30Comments on सुज्ञ: यौनविकारों का बढता प्रदूषण, जिम्मेदार कौन?सुज्ञhttp://www.blogger.com/profile/04048005064130736717noreply@blogger.comBlogger56125tag:blogger.com,1999:blog-7546054676355588576.post-8011048988223925312013-05-05T15:12:32.513+05:302013-05-05T15:12:32.513+05:30देश लुट रहा है, हम लोग कवितायें व लेख लिख रहे हैं ...देश लुट रहा है, हम लोग कवितायें व लेख लिख रहे हैं . या फिर वाह वाह व शब्दों की बखियां उखेड़ रहे हैं, क्योंकि भले आदमी को लगता है मैं इसके इलावा कुछ कर ही नहीं सकता ...<br />मेरा क्या योगदान हो सकता है यह सोच का विषय है... SURESHhttps://www.blogger.com/profile/11413232746048073150noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7546054676355588576.post-735144753745827482013-04-29T19:05:51.099+05:302013-04-29T19:05:51.099+05:301- मेरे कथ्य संस्कारों का आशय कर्मकाण्ड परम्परा वा...1- मेरे कथ्य संस्कारों का आशय कर्मकाण्ड परम्परा वाले संस्कारों से नहीं है. यहां संस्कारों का अर्थ है विवेक युक्त सम्यक प्रकार के सद्विचार, शिष्टाचार, सदाचरण. <br />2- क्या यह पूरे समाज का कथन है-"तेरी बहन है क्या जो विरोध कर रहा है" अब असंस्कारियों या दुराचारियों के कथन से समग्र समाज की सोच निर्धारित होगी? बहन दीदी कहना ढाल नहीँ है सज्जन का उद्देश्य सम्मान का दर्जा महसुस करवाना है बाकि दुर्जन तो इस शब्द का उपयोग चाल की तरह कर सकता है. सामान्यतया समाज का प्रतिनिधित्व सज्जन ही करते है, दुर्जन की सोच में तो वह समाज की वैसे भी ऐसी तैसी कर देता है. उसका समाज से कुछ भी लेना देना नहीं फिर उसके कृत्यों से समाज पर आरोप क्यों?<br /><br />3- यहां फिर आपने मर्यादा का गलत अर्थ लिय. मर्यादा शब्द का अर्थ भी सीमा है और यहां भावार्थ भी सीमा है दोनो तरह के रिश्तों की मानसिकता में एक सीमारेखा होती है. भाई-बहन कितने भी बोल्ड हो जाय, खुले दिलो-दिमाग से सम्वाद मनोरंजन करे,उनमें यदि रिश्तों के प्रति आदर है तो सीमोलंघन नहीं करते. "बिना अमर्यादित हुए" बस यही शालीनता,पवित्रता, सीमा, मर्यादा या फिर माँ-बहन सम्बोधन का सम्मान रखना है.<br />4-नहीं, प्रभावित तो मनुष्य निजी रूप से है लेकिन प्रभावोत्पादकता बाहरी है.यदि सुधार में बाहरी प्रेरणा असरदार हो सकती है तो कुमार्ग में बाहरी असर क्यों न पडेगा?सुज्ञhttps://www.blogger.com/profile/04048005064130736717noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7546054676355588576.post-15122123019117595862013-04-29T18:24:29.265+05:302013-04-29T18:24:29.265+05:30आभार,बंधुआभार,बंधुसुज्ञhttps://www.blogger.com/profile/04048005064130736717noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7546054676355588576.post-32585681637389791612013-04-29T14:58:17.791+05:302013-04-29T14:58:17.791+05:30@संस्कारों में महिला पुरूष का भेद नहीं होता
पूरी... @संस्कारों में महिला पुरूष का भेद नहीं होता<br /><br /> पूरी तरह असहमत , ये किसने कह दिया की संस्कारो में पुरुष स्त्री में भेद नहीं होता है , मेरी ज्यादा जानकारी नहीं है आप को पता होगा की एक पुत्र के लिए कितने उत्सव संस्कारो का प्रचलन है और पुत्री के लिए कितना , भरे पड़े है इन भेदों से हमारे संस्कार , स्त्री को पुरुष से निचे बताने वाले, स्त्री को घरो में कैद करने वाले , और स्त्री धर्म केवल पति , पिता सेवा तक सिमित करने वाले सस्कारो परमपराओ में आप को कोई भेद नहीं नजर आता है , स्त्री घर की इज्जत और उसका एक भी समाज विरोध काम पुरे परिवार पर बट्टा लगाता है और पुरुष को हर काम की छुट , दोनों के लिए नैतिकता के अलग अलग मानदंड आप कैसे कह सकते है की ये हमारे संस्कारो में परम्पराव में नहीं है , ये उसी का परिणाम है की बलात्कारी सोचता है की पीड़ित और उसका परिवार अपना मुंह छुपायेगा जुर्म सामने ही नहीं आने देगा , फिर सजा क्या खाक होगी । <br /><br /><br />@ "प्रत्येक महिला को अपनी माँ बहन समझो, उनकी रक्षा करो" अभिप्राय:यह नहीं जो आपने अर्थ लगा लिया. <br /><br />अर्थ मै नहीं लगा रही हूँ ये पुरे समाज की सोच है , वरना विरोध करने पर कोई ये न पूछता की तेरी बहन है क्या जो विरोध कर रहा है , किसी को ज्यादा सम्मान देने के लिए बहन दीदी जैसे संबोधन देने की जरुरत ही नहीं होती जैसा आप मुझे कह रहे है, मात्र मेरे नाम के आगे जी लगा देना और बिना अप्शंदो के सामान्य बातचीत करना भी उसे दर्शा देता है , ये बहन दीदी कहने वाला ढाल क्यों, और कई ऐसे भी संस्कारी लोग देखे है जो मन के हिसाब से दीदी कहते है और कभी नहीं कहते है और जब चाहे आप के खिलाफ गलत बात भी कह देते है , ऐसी मनमौजी भाई बहन वाला व्यवहार उचित है क्या । <br /><br />@ जिस तरह प्रेयसी या पत्नी के साथ व्यवहार करते हुए आप खुलकर अमर्यादित हो लेते है जबकि माँ-बहन के साथ व्यवहार में एक शालीन मर्यादा होती ही है.<br /><br />लीजिये अब आप इन शब्दों के साथ पत्नी और प्रेमिका से अमर्यादित होने की छुट दे रहे है , या फिर आप उनके बिच होने वाली कुछ निजी बातो को अमर्यादित कह रहे है जो ठीक नहीं है , और आप को बता दू की जिन मुद्दों को आप अमर्यादित कह रहे है आज के समय में उनमे से कुछ पर भाई बहन भी बात करते है , जो कभी गंभीर तो कभी मनोरंजन के लिए होते है , यहाँ न जाने कितने अनजान लोगो से हम किन किन मुद्दों पर बात कर लेते है बिना अमर्यादित हुए । <br /><br />@ विकार का प्रभाव मनुष्य मनुष्य पर भिन्न भिन्न प्रभाव डाल सकता है. <br /><br />वही तो मै कह रही हूँ की इसमे मनुष्य का दोष निजी है कोई बाहरी कारण नहीं , पूरी तरह से अपराधी वो है कोई अन्य कारण नहीं । और हा सहमत हूँ की अपराधियों में लिंगभेद नहीं करना चाहिए । <br />anshumalahttps://www.blogger.com/profile/17980751422312173574noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7546054676355588576.post-76522777791646644872013-04-26T21:12:07.519+05:302013-04-26T21:12:07.519+05:30सही कहा सुब्रमनियम जी, यही विडम्बना है.सही कहा सुब्रमनियम जी, यही विडम्बना है.सुज्ञhttps://www.blogger.com/profile/04048005064130736717noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7546054676355588576.post-56776388510773886032013-04-26T20:56:56.396+05:302013-04-26T20:56:56.396+05:30सार्थक प्रस्तुति. घर के संस्कार से अधिक वाह्य जगत्...सार्थक प्रस्तुति. घर के संस्कार से अधिक वाह्य जगत् अधिक प्रभावी है. P.N. Subramanianhttps://www.blogger.com/profile/01420464521174227821noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7546054676355588576.post-22266399846007461642013-04-26T17:18:59.433+05:302013-04-26T17:18:59.433+05:30तापते है पराई आग चुप चाप,
पहूँचेगी पाँवों में तब स...तापते है पराई आग चुप चाप,<br />पहूँचेगी पाँवों में तब समझेगें||सुज्ञhttps://www.blogger.com/profile/04048005064130736717noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7546054676355588576.post-17346197452093598572013-04-26T13:52:55.133+05:302013-04-26T13:52:55.133+05:30लोग आखिर ये बात कब समझेंगे |
बदले शहर के हालात, कब...लोग आखिर ये बात कब समझेंगे |<br />बदले शहर के हालात, कब समझेंगे |<br /><br />ये है तमाशबीनों का शहर यारो,<br />कोई न देगा साथ, कब समझेंगे |<br /><br />जांच करने क़त्ल की कोई न आया,<br />हैं माननीय शहर में आज, कब समझेंगे|<br /><br />चोर डाकू लुटेरे पकडे नहीं जाते,<br />सुरक्षा-चक्र में हैं ज़नाब, कब समझेंगे |<br /><br />कब से खड़े हैं आप लाइन में बेंक की,<br />व्यस्त सब पीने में चाय, कब समझेंगे |<br /><br />बढ़ रही अश्लीलता सारे देश में,<br />सब सोरहे चुपचाप, कब समझेंगे |<br /><br />श्याम, छाई है बेगैरती चहुँ ओर,<br />क्या निर्दोष हैं आप, कब समझेंगे ||<br />डा श्याम गुप्तhttps://www.blogger.com/profile/03850306803493942684noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7546054676355588576.post-26593947539089085982013-04-26T11:24:18.566+05:302013-04-26T11:24:18.566+05:30बहुत सटीक बातें कही हैं आपने आदरणीय सुज्ञ सर। पूरी...बहुत सटीक बातें कही हैं आपने आदरणीय सुज्ञ सर। पूरी तरह से व्यावहारिक हैं।<br /><br />कृपया मेरे ब्लॉग पर भी आयें। पसंद आनेपर शामिल हो अपना स्नेह अवश्य दें.......KUMMAR GAURAV AJIITENDUhttps://www.blogger.com/profile/04830538217618001873noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7546054676355588576.post-83071463550292137892013-04-25T23:25:21.182+05:302013-04-25T23:25:21.182+05:30अनुराग भैया,
सप्ताह भर पहले ही ऐसे ही एक मासूम बच्...अनुराग भैया,<br />सप्ताह भर पहले ही ऐसे ही एक मासूम बच्ची के साथ हुये रेप के बाद उसके पिता का इंटरव्यू आया था जिसमें उसने बताया कि वो रोज खाने कमाने वाला आदमी है और उस त्रासदी के बाद हर तरफ़ से उस पर मुसीबत टूट रही थी। रिपोर्टर ने और कुरेदा तो उसने बताया कि थाने वालों ने अपने पास से पैसे इकट्ठे करके उसकी मदद की है। इस मामले में मामला उलटा हो गया। <br />मैं किसी को क्लीनचिट नहीं दे रहा लेकिन हरदम पुलिस और सेना को भी टार्गेट करके लोग उनके साथ भी अन्याय करते हैं। <br />सुधार अपने से शुरू हो और बाहर की तरफ़ जाये तो शायद ज्यादा उचित होगा।संजय @ मो सम कौन...https://www.blogger.com/profile/14228941174553930859noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7546054676355588576.post-14525207996868539182013-04-25T21:41:07.831+05:302013-04-25T21:41:07.831+05:30जी!! मनन और अब उस दिशा में प्रयास होने चाहिए... नै...जी!! मनन और अब उस दिशा में प्रयास होने चाहिए... नैतिक जीवनमूल्यों का प्रसार होना चाहिए....सुज्ञhttps://www.blogger.com/profile/04048005064130736717noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7546054676355588576.post-2848439663960914542013-04-25T21:38:25.361+05:302013-04-25T21:38:25.361+05:30समस्या के कारकों और उसके मूल को चिन्हित किए बिना आ...समस्या के कारकों और उसके मूल को चिन्हित किए बिना आनन फानन का समाधान भी किस काम का? समाधान तो समग्र जनमानस में नैतिक मूल्यों के दृढ स्थापन में है. बहुत श्रमसाध्य है.सुज्ञhttps://www.blogger.com/profile/04048005064130736717noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7546054676355588576.post-31823524333725021892013-04-25T21:20:27.342+05:302013-04-25T21:20:27.342+05:30कालीपद जी,
आपकी बात में यथार्थ है, आखिर धन-प्रलोभन...कालीपद जी,<br />आपकी बात में यथार्थ है, आखिर धन-प्रलोभन में मदमस्त,मीडिया और इन्टरनेट के कामप्रेरक कृत्यों को क्यों बक्शा जा रहा है.उनके अच्छे कार्यों का स्वागत लेकिन उनके दुष्प्रभावी कार्यों पर दृष्टि का लक्ष क्यों भटके.सुज्ञhttps://www.blogger.com/profile/04048005064130736717noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7546054676355588576.post-85055056007181630692013-04-25T20:49:41.048+05:302013-04-25T20:49:41.048+05:30वाणी जी,
बिलकुल यथार्थ कहा है. शिक्षित वर्ग में भद...वाणी जी,<br />बिलकुल यथार्थ कहा है. शिक्षित वर्ग में भद्रता स्थापित हो जाती है. विद्या सम्पन्न वर्ग में नैतिक मूल्यों के महत्व के प्रति आदर होता है. निम्नवर्ग में माकूल शिक्षा और माहौल में अभाव के साथ अधिकांश बार यह मानसिकता होती है कि नैतिकताएँ आदि अभिजात्य वर्ग के चोंचले होते है.<br /><br />किंतु नैतिक निष्ठा जिसे संस्कार कहते है को निम्नवर्ग तक प्रवाहित करने की जिम्मेदारी शिक्षित वर्ग पर है.संस्कारों का ऐसा आदर स्थापित होना चाहिए कि हर वर्ग को प्रिय लगे. संस्कारों के औचित्य को क्षति पहूंचाए बिना उसके महिमावर्धन के प्रयास होने चाहिए. इससे नैतिकताओं के प्रति जनमानस में आदर स्थापित होता है.<br /><br />दान का महत्व इसलिए होता है कि कोई अभाव ग्रस्त विद्रोही न बने, आज सारा विश्व इस महत्व को समझ रहा है. उसी तरह सदाचार का भी महत्व बनना चाहिए कि कोई कदाचारी बनना न चाहे.<br /><br />जिस तरह सम्पन्न और अभिजात्य वर्ग का निम्न वर्ग द्वारा अनुसरण होता है, धन-सम्पन्न वर्ग के धन प्रदर्शन कार्यों का दिखावे के लिए ही सही निम्न वर्ग अनुसरण कर कीर्ति को लालायित रहता है. ठीक उसी तरह शिक्षितों के नैतिक आदर्शों के अनुसरण की अभिलाषा जगनी चाहिए.वह तब होगा जब नैतिक मूल्यों को समुचित आदर और बहुमान से देखा जाएगा. जिनके पास संस्कार है वे उन संस्कारों को कल्याण भाव से प्रसारित करने का भी उद्यम करेंगे, उन्हे मान देंगे. सुज्ञhttps://www.blogger.com/profile/04048005064130736717noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7546054676355588576.post-42125520045838854352013-04-25T19:56:48.030+05:302013-04-25T19:56:48.030+05:30बहुत सार्थक विवेचन..हम सब को ही इस पर मनन करना होग...बहुत सार्थक विवेचन..हम सब को ही इस पर मनन करना होगा..Kailash Sharmahttps://www.blogger.com/profile/12461785093868952476noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7546054676355588576.post-81372543969558278392013-04-25T19:34:52.116+05:302013-04-25T19:34:52.116+05:30सलिल जी,
आपने सही कहा, दोनो पहलू पर मनन आवश्यक है...सलिल जी,<br /><br />आपने सही कहा, दोनो पहलू पर मनन आवश्यक है. जडें जो इस तरह की घटनाओं को जन्म देती हैं, पहचानना और चिन्हित करना भी जरूरी है.एक बार पहचान हो जाय तो उस विकार युक्त अंग का ईलाज सम्भव हो सकता है.<br /><br />वे सभी क्षेत्र, चाहे फिर स्वार्थवश पतन मार्ग को प्रेरित करने वाला जनसामान्य का प्रलोभी वर्ग, प्रशासन, विधि-नियंता हो या न्याय व्यवस्था. इस समस्या के मूल में हम साफ साफ "नैतिक निष्ठा" की कमी को देख सकते है. इस कैंसर को बकायदा चिन्हित कर सकते है. इसलिए शासन प्रशासन न्यायव्यवस्था और जनसामान्य, सभी जगह 'नैतिकता के प्रति निष्ठा' की पुनर्स्थापना ही उपाय है.सुज्ञhttps://www.blogger.com/profile/04048005064130736717noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7546054676355588576.post-9934005234679487222013-04-25T18:09:24.482+05:302013-04-25T18:09:24.482+05:30@ अब दूसरा पहलू यह है कि दोषी के साथ (कारण कुछ भी ...@ अब दूसरा पहलू यह है कि दोषी के साथ (कारण कुछ भी हो, दोषी दोषी है) क्या किया जाए.. उसे कैसी सज़ा दी जाए.. और न्याय कितनी जल्दी और सुलभ हो..<br /><br />- सत्य वचन,क्या विचरवान लोग कभी प्रशासन का भाग बन पाएंगे? Smart Indianhttps://www.blogger.com/profile/11400222466406727149noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7546054676355588576.post-48391792257341094852013-04-25T18:07:41.018+05:302013-04-25T18:07:41.018+05:30संतजन तो अपनी ओर से प्रयास कर ही रहे होंगे लेकिन प...संतजन तो अपनी ओर से प्रयास कर ही रहे होंगे लेकिन पुलिस का काम तो पुलिस को ही करना पड़ेगा। देश को यह समझना चाहिए कि पुलिस का काम निर्दोष नागरिकों पर लाठी भाँजना, अपराधियों से रिश्वतें लेना और आतंकवादियों से गोली खाना मात्र नहीं है। इसी प्रकार प्रशासन की भी बड़ी ज़िम्मेदारी बनती है। Smart Indianhttps://www.blogger.com/profile/11400222466406727149noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7546054676355588576.post-55213009338623794302013-04-25T18:03:54.998+05:302013-04-25T18:03:54.998+05:30प्रभावी और ईमानदार न्याय व्यवस्था स्थिति मे आमूलचू...प्रभावी और ईमानदार न्याय व्यवस्था स्थिति मे आमूलचूल परिवर्तन ला सकती है Smart Indianhttps://www.blogger.com/profile/11400222466406727149noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7546054676355588576.post-81670307883799381982013-04-25T17:58:37.151+05:302013-04-25T17:58:37.151+05:30जिम्मेदार हम सब, लेकिन सबसे बड़ी ज़िम्मेदारी प्रशासन...जिम्मेदार हम सब, लेकिन सबसे बड़ी ज़िम्मेदारी प्रशासनिक अव्यवस्था की जहां अपराधियों को पकड़ने के बजाय पीड़ितों को सताया जाता है और यदि मामला सामने आ ही जाए तो रिश्वतें देने के प्रयास होते हैं, जहां लाशें कुत्ते खा लेते हैं और दरोगा थाने की सीमा पर बहस करते हैं, जहां ट्रक का परमिट, लाइसेन्स नहीं, हफ्ते की कितबिया चैक होती है, जहां विधि-विधान का पालन करने वाले दर-बदर भटकते हैं और आतंकवादियों के उत्थान के लिए सरकारी धन से पैकेज बनाते हैं। जिस व्यवस्था मे ईमानदारी से एक ज़िंदगी गुज़ारना कठिन ही नहीं असंभव बनाने पर सारा बल लगा हो वहाँ व्यवस्था से बड़ा जिम्मेदार कौन हो जाता है? Smart Indianhttps://www.blogger.com/profile/11400222466406727149noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7546054676355588576.post-18379075273406130782013-04-25T17:31:39.680+05:302013-04-25T17:31:39.680+05:30sushil sir ne sahi kaha... kya wakai me koi samadh...sushil sir ne sahi kaha... kya wakai me koi samadhan hai, ya bas ham vicharon ka aadan pradan ya dosharopan hi karte rah jayenge....मुकेश कुमार सिन्हाhttps://www.blogger.com/profile/14131032296544030044noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7546054676355588576.post-10100894033925659372013-04-25T09:46:37.318+05:302013-04-25T09:46:37.318+05:30एक उम्र के बाद बच्चे घर में कम बाहर ज्यादा समय बित...एक उम्र के बाद बच्चे घर में कम बाहर ज्यादा समय बिताता है. अत ; उसपर बाहर का प्रभाव पड़ना स्वाभाविक है. उसके उवर मीडिया और इन्टरनेट ने वातावरण को कामातुर बना दिया हैइ स सन्दर्भ आपका लेख सटीक और सामयिक है.कालीपद "प्रसाद"https://www.blogger.com/profile/09952043082177738277noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7546054676355588576.post-14155150400778642292013-04-25T06:48:01.952+05:302013-04-25T06:48:01.952+05:30सामान्य परिवारों में संस्कार पढ़े लिखे लोग तो दे ...सामान्य परिवारों में संस्कार पढ़े लिखे लोग तो दे सकते हैं मगर घृणित अपराधों में बड़ी भागीदारी रखने वाले निम्न स्तरीय जीवन जीने वालों को संस्कार कहाँ से प्रदान किये जाए , यह सोचना भी अत्यंत आवश्यक है क्योंकि ना इनके परिवारों में अच्छा माहौल है . ना इनके लिए माकूल शिक्षा उपलब्ध है . इन बस्तियों में कोई आधुनिक गुरु जाना भी पसंद नहीं करेंगे जबकि सबसे अधिक नैतिक शिक्षा की जरूरत इस तबके में है . वाणी गीतhttps://www.blogger.com/profile/01846470925557893834noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7546054676355588576.post-24239522557462019102013-04-24T23:14:24.092+05:302013-04-24T23:14:24.092+05:30सही कहा, भारद्वाज जी!!सही कहा, भारद्वाज जी!!सुज्ञhttps://www.blogger.com/profile/04048005064130736717noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7546054676355588576.post-2401456540410841002013-04-24T23:11:55.752+05:302013-04-24T23:11:55.752+05:30आभार दिलबाग विर्क जी!!आभार दिलबाग विर्क जी!!सुज्ञhttps://www.blogger.com/profile/04048005064130736717noreply@blogger.com