पिछ्ले आलेखों में पढा "क्रोध" और "मान" पर, अब प्रस्तुत है- "माया"-
मोह वश मन, वचन, काया की कुटिलता द्वारा प्रवंचना अर्थात् कपट, धूर्तता, धोखा व ठगी रूप मन के परिणामों को माया कहते है. माया व्यक्ति का वह प्रस्तुतिकरण है जिसमें व्यक्ति तथ्यों को छद्म प्रकार से रखता है. कुटिलता, प्रवंचना, चालाकी, चापलूसी, वक्रता, छल कपट आदि माया के ही रूप है. साधारण बोलचाल में हम इसे बे-ईमानी कहते है. अपने विचार अपनी वाणी अपने वर्तन के प्रति ईमानदार न रहना माया है. माया का अर्थ प्रचलित धन सम्पत्ति नहीं है, धन सम्पत्ति को यह उपमा धन में माने जाते छद्म, झूठे सुख के कारण मिली है.
माया वश व्यक्ति सत्य का भी प्रस्तुतिकरण इस प्रकार करता है जिससे उसका स्वार्थ सिद्ध हो. माया ऐसा कपट है जो सर्वप्रथम ईमान अथवा निष्ठा को काट देता है. मायावी व्यक्ति कितना भी सत्य समर्थक रहे या सत्य ही प्रस्तुत करे अंततः अविश्वसनीय ही रहता है. तथ्यों को तोडना मरोडना, झासा देकर विश्वसनीय निरूपित करना, कपट है. वह भी माया है जिसमें लाभ दर्शा कर दूसरों के लिए हानी का मार्ग प्रशस्त किया जाता है. दूसरों को भरोसे में रखकर जिम्मेदारी से मुख मोडना भी माया है. हमारे व्यक्तित्व की नैतिक निष्ठा को समाप्त प्रायः करने वाला दुर्गुण 'माया' ही है..
.
आईए देखते है महापुरूषों के कथनो में माया का यथार्थ..........
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“माया दुर्गति-कारणम्” – (विवेकविलास) - माया दुर्गति का कारण है..
“मायाशिखी प्रचूरदोषकरः क्षणेन्.” – (सुभाषित रत्न संदोह) - माया ऐसी शिखा है को क्षण मात्र में अनेक पाप उत्पन्न कर देती है..
“मायावशेन मनुजो जन-निंदनीयः.” – (सुभाषित रत्न संदोह) -कपटवश मनुष्य जन जन में निंदनीय बनता है..
"यदि तुम मुक्ति चाहते हो तो विषयों को विष के समान समझ कर त्याग दो और क्षमा, ऋजुता (सरलता), दया और पवित्रता इनको अमृत की तरह पी जाओ।" - चाणक्यनीति - अध्याय 9
"आदर्श, अनुशासन, मर्यादा, परिश्रम, ईमानदारी तथा उच्च मानवीय मूल्यों के बिना किसी का जीवन महान नहीं बन सकता है।" - स्वामी विवेकानंद.
"बुद्धिमत्ता की पुस्तक में ईमानदारी पहला अध्याय है।" - थॉमस जैफर्सन
"कोई व्यक्ति सच्चाई, ईमानदारी तथा लोक-हितकारिता के राजपथ पर दृढ़तापूर्वक रहे तो उसे कोई भी बुराई क्षति नहीं पहुंचा सकती।" - हरिभाऊ उपाध्याय
"ईमानदारी, खरा आदमी, भलेमानस-यह तीन उपाधि यदि आपको अपने अन्तस्तल से मिलती है तो समझ लीजिए कि आपने जीवन फल प्राप्त कर लिया, स्वर्ग का राज्य अपनी मुट्ठी में ले लिया।" - अज्ञात
"सच्चाई, ईमानदारी, सज्जनता और सौजन्य जैसे गुणों के बिना कोई मनुष्य कहलाने का अधिकारी नहीं हो सकता।" - अज्ञात
"अपने सकारात्मक विचारों को ईमानदारी और बिना थके हुए कार्यों में लगाए और आपको सफलता के लिए प्रयास नहीं करना पड़ेगा, अपितु अपरिमित सफलता आपके कदमों में होंगी।" - अज्ञात
"बुद्धि के साथ सरलता, नम्रता तथा विनय के योग से ही सच्चा चरित्र बनता है।" - अज्ञात
"मनुष्य की प्रतिष्ठा ईमानदारी पर ही निर्भर है।" - अज्ञात
वक्रता प्रेम और विश्वास की घातक है. कपट, बे-ईमानी, अर्थात् माया, शील और चरित्र (व्यक्तित्व) का नाश कर देती है. माया करके हमें प्रतीत होता है कि हमने बौद्धिक चातुर्य का प्रदर्शन कर लिया. सौ में से नब्बे बार व्यक्ति मात्र समझदार दिखने के लिए, बेमतलब मायाचार करता है. किंतु इस चातुर्य के खेल में हमारा व्यक्तित्व संदिग्ध बन जाता है. माया एक तरह से बुद्धि को लगा कुटिलता का नशा है.
कपट, अविद्या (अज्ञान) का जनक है. और अपयश का घर. माया हृदय में गडा हुआ वह शल्य है जो निष्ठावान बनने नहीं देता.
माया को आर्जव अर्थात् ऋजुता (सरल भाव) से जीता जा सकता है.
माया को शांत करने का एक मात्र उपाय है ‘सरलता’
दृष्टांत : मायवी ज्ञान
सच का भ्रम
दृष्टव्य : नीर क्षीर विवेक
जीवन का लक्ष्य
मोह वश मन, वचन, काया की कुटिलता द्वारा प्रवंचना अर्थात् कपट, धूर्तता, धोखा व ठगी रूप मन के परिणामों को माया कहते है. माया व्यक्ति का वह प्रस्तुतिकरण है जिसमें व्यक्ति तथ्यों को छद्म प्रकार से रखता है. कुटिलता, प्रवंचना, चालाकी, चापलूसी, वक्रता, छल कपट आदि माया के ही रूप है. साधारण बोलचाल में हम इसे बे-ईमानी कहते है. अपने विचार अपनी वाणी अपने वर्तन के प्रति ईमानदार न रहना माया है. माया का अर्थ प्रचलित धन सम्पत्ति नहीं है, धन सम्पत्ति को यह उपमा धन में माने जाते छद्म, झूठे सुख के कारण मिली है.
माया वश व्यक्ति सत्य का भी प्रस्तुतिकरण इस प्रकार करता है जिससे उसका स्वार्थ सिद्ध हो. माया ऐसा कपट है जो सर्वप्रथम ईमान अथवा निष्ठा को काट देता है. मायावी व्यक्ति कितना भी सत्य समर्थक रहे या सत्य ही प्रस्तुत करे अंततः अविश्वसनीय ही रहता है. तथ्यों को तोडना मरोडना, झासा देकर विश्वसनीय निरूपित करना, कपट है. वह भी माया है जिसमें लाभ दर्शा कर दूसरों के लिए हानी का मार्ग प्रशस्त किया जाता है. दूसरों को भरोसे में रखकर जिम्मेदारी से मुख मोडना भी माया है. हमारे व्यक्तित्व की नैतिक निष्ठा को समाप्त प्रायः करने वाला दुर्गुण 'माया' ही है..
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आईए देखते है महापुरूषों के कथनो में माया का यथार्थ..........
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“माया दुर्गति-कारणम्” – (विवेकविलास) - माया दुर्गति का कारण है..
“मायाशिखी प्रचूरदोषकरः क्षणेन्.” – (सुभाषित रत्न संदोह) - माया ऐसी शिखा है को क्षण मात्र में अनेक पाप उत्पन्न कर देती है..
“मायावशेन मनुजो जन-निंदनीयः.” – (सुभाषित रत्न संदोह) -कपटवश मनुष्य जन जन में निंदनीय बनता है..
"यदि तुम मुक्ति चाहते हो तो विषयों को विष के समान समझ कर त्याग दो और क्षमा, ऋजुता (सरलता), दया और पवित्रता इनको अमृत की तरह पी जाओ।" - चाणक्यनीति - अध्याय 9
"आदर्श, अनुशासन, मर्यादा, परिश्रम, ईमानदारी तथा उच्च मानवीय मूल्यों के बिना किसी का जीवन महान नहीं बन सकता है।" - स्वामी विवेकानंद.
"बुद्धिमत्ता की पुस्तक में ईमानदारी पहला अध्याय है।" - थॉमस जैफर्सन
"कोई व्यक्ति सच्चाई, ईमानदारी तथा लोक-हितकारिता के राजपथ पर दृढ़तापूर्वक रहे तो उसे कोई भी बुराई क्षति नहीं पहुंचा सकती।" - हरिभाऊ उपाध्याय
"ईमानदारी, खरा आदमी, भलेमानस-यह तीन उपाधि यदि आपको अपने अन्तस्तल से मिलती है तो समझ लीजिए कि आपने जीवन फल प्राप्त कर लिया, स्वर्ग का राज्य अपनी मुट्ठी में ले लिया।" - अज्ञात
"सच्चाई, ईमानदारी, सज्जनता और सौजन्य जैसे गुणों के बिना कोई मनुष्य कहलाने का अधिकारी नहीं हो सकता।" - अज्ञात
"अपने सकारात्मक विचारों को ईमानदारी और बिना थके हुए कार्यों में लगाए और आपको सफलता के लिए प्रयास नहीं करना पड़ेगा, अपितु अपरिमित सफलता आपके कदमों में होंगी।" - अज्ञात
"बुद्धि के साथ सरलता, नम्रता तथा विनय के योग से ही सच्चा चरित्र बनता है।" - अज्ञात
"मनुष्य की प्रतिष्ठा ईमानदारी पर ही निर्भर है।" - अज्ञात
वक्रता प्रेम और विश्वास की घातक है. कपट, बे-ईमानी, अर्थात् माया, शील और चरित्र (व्यक्तित्व) का नाश कर देती है. माया करके हमें प्रतीत होता है कि हमने बौद्धिक चातुर्य का प्रदर्शन कर लिया. सौ में से नब्बे बार व्यक्ति मात्र समझदार दिखने के लिए, बेमतलब मायाचार करता है. किंतु इस चातुर्य के खेल में हमारा व्यक्तित्व संदिग्ध बन जाता है. माया एक तरह से बुद्धि को लगा कुटिलता का नशा है.
कपट, अविद्या (अज्ञान) का जनक है. और अपयश का घर. माया हृदय में गडा हुआ वह शल्य है जो निष्ठावान बनने नहीं देता.
माया को आर्जव अर्थात् ऋजुता (सरल भाव) से जीता जा सकता है.
माया को शांत करने का एक मात्र उपाय है ‘सरलता’
दृष्टांत : मायवी ज्ञान
सच का भ्रम
दृष्टव्य : नीर क्षीर विवेक
जीवन का लक्ष्य
वक्रता से ऋजुता की ओर चलने में ही सच्चा आनंद है।
जवाब देंहटाएंतिरगुण फांस लिए कर डोले
बोले माधुरी बानी
माया
महाठगिनी हम जानी
(संत कबीर)
वक्र जमाने में ऋजुता का मोल बढ जाता है.
हटाएंसहमत हूँ कई अनावश्यक मायाचार करता है व्यक्ति .... जीवन सहज, सरल बना रहे इससे बेहतर क्या है ...
जवाब देंहटाएंमनुष्य पहले मायाजाल फैलाता है और फिर उसे सुलझाने में ही जीवन व्यर्थ कर देता है.
हटाएंकहा ही गया है माया महाठगिनी ! बहुत मुश्किल है माया को पहचानना , कई बार जो सरल लगता है , माया में घुला मिला होता है :(
जवाब देंहटाएंपहचानने की हालत तो यह है कि आजकल कोई स्वयं को यथार्थ,सरल और सहज प्रस्तुत कर दे तो सामने वाले को अपने दिमाग के सारे तंत्र को काम पर लगाना पडता है कि मामला इतना सरल नहीं हो सकता :)
हटाएं:)
हटाएंआजकल सरलता की मज़ाक बनायी जाती है भाई ..
जवाब देंहटाएंसच यही, स्वार्थ को नहीं भाती सज्जनता
हटाएंईर्ष्या ही सरलता को परिहास बनाती है.
सच में !
हटाएंसुन्दर विश्लेषण
जवाब देंहटाएंआभार, वंदना जी
हटाएंसच कहा आपने, केवल सरलता ही माया के पार जा सकती है।
जवाब देंहटाएंसरलता सहज ही माया को भेद सकती है.
हटाएं---ये सब जो कहे गए हैं ....माया के प्रभाव हैं ...माया नहीं ...माया आतंरिक वस्तु है किसी एक आत्मा द्वारा दूसरी आत्मा पट आरोपित भाव नहीं ...यह जादू व मिथ्या कृतित्व है जो माया के प्रभाव हैं ...मया क्या है ..
जवाब देंहटाएं-----माया शब्द संस्कृत के दो शब्दों मा और या से मिलकर बना है। ...मा का अर्थ होता है नहीं है और या का अर्थ होता है जो। इस तरह माया का अर्थ है जो वस्तु नहीं है। इस दुनिया में जो भी चीज अस्थायी या काल्पनिक है उसे माया कहा जाता है।
------अतः व्यवहार में माया का अर्थ , अज्ञान है| अज्ञान और माया को मिटाने के ज्ञान की जरूरत है|
-----किसी शख्स के संसार में उलझे रहने की वृत्ति का नाम माया है। माया की असली जगह इच्छा, वासना और अहंकार है। यह माया ही किसी शख्स को विकारों से ऊपर उठने नहीं देती।
-----माया का आश्रय तथा विषय ब्रह्म है.....माया(अज्ञान) की दो शक्तियां हैंजिनके द्वारा वह कार्य करती है .....१.आवरण २. विक्षेप.....
आवरण का अर्थ है पर्दा , जो दृष्टि में अवरोधक बन जाय| जिसके कारण वास्तविकता नहीं दिखायी दे..... माया की आवरण शक्ति सीमित होते हुए भी परम आत्मा के ज्ञान हेतु अवरोधक बन जाती है....... परमात्म को जानने वाली बुद्धि है, अज्ञान का आवरण बुद्धि और आत्मतत्त्व के बीच आ जाता है
विक्षेप शक्ति - माया की यह शक्ति भ्रम पैदा करती है| यह विज्ञानमय कोश में स्थित रहती है. आत्मा की अति निकटता के कारण यह अति प्रकाशमय है इससे ही संसार के सारे व्यवहार होते हैं, जीवन की सभी अवस्थाएं, संवेदनाएं इसी विज्ञानमय कोश अथवा विक्षेप शक्ति के कारण हैं,यह चैतन्य की प्रतिविम्बित शक्ति चेतना है.... यह विक्षेप शक्ति सूक्ष्म शरीर से लेकर ब्रह्मांड तक संसार की रचना करती है.
मुझे तो यह शब्दों का मायाजाल समझ नहीं आया इसका क्या अर्थ होता है, कुछ भी तो नहीं.....
हटाएंMaya kab aati hai
हटाएंयह शृंखला बहुत अच्छी और रोचक है।
जवाब देंहटाएंभारतीय नागरिक जी, प्रोत्साहन के लिए आभार!!
हटाएंआभार, यशोदा जी!!
जवाब देंहटाएंhttp://nayi-purani-halchal.blogspot.in
नई-पुरानी हलचल से लिंक करने के लिए
ब्लॉग बुलेटिन की ५०० वीं पोस्ट में स्थान देने के लिए आपका आभार!!
जवाब देंहटाएंReally you wrote awsome. Thank u
जवाब देंहटाएं